बतंगड़ बेतुक : फिर उसी मोड़ पर कलाकार
छोटे-बड़े परदे के एक प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता ने हाल में एक साक्षात्कार में कहा है, ‘पिछले डेढ़ वर्षो से मुझे न ढंग से कोई काम मिला है और न ही पैसा।
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आर्थिक संकट से मैं टूट चुका हूं, इसीलिए मुझे यह कहने पर मजबूर होना पड़ा है।’ कोरोना संकट के कारण टीवी और फिल्म उद्योग का बुरा हाल है। उनकी तरह कई कलाकार आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं। कुछ महीने पहले ऐसी खबरें भी आई थीं कि मुंबई जैसे महानगर में रहने का खर्च न उठा पाने वाले ऐसे कई कलाकारों ने गृहनगर का रुख कर लिया था और वहां कुछ दूसरे काम करने लगे थे।
छह माह से अधिक समय बाद पटरी पर आ रहे जीवन को कोरोना की दूसरी लहर ने बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। पिछले एक माह से जो स्थिति हुई है, वह पिछले वर्ष से अधिक भयावह है। बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में आए हैं। काफी लोगों को अस्पतालों में जगह भी नहीं मिल पा रही। एंबुलेंस नहीं पहुंच पा रही हैं, ऑक्सीजन खत्म हो रही है। कम दिनों में ही काफी लोग हमसे बिछड़ गए हैं, जिनमें कई लेखक, पत्रकार, अभिनेता, संगीतकार जैसे संस्कृतिकर्मी भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। घोषित और अघोषित बंदी की मजबूरी में कामकाज फिर ठप हो गया है और रोज कमाई करने वाले लोगों के सामने फिर आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ है, लेकिन कलाकारों का संकट भी इससे जुड़ा है और थोड़ा अलग भी है। कोई समारोह या प्रदर्शन अचानक से नहीं हो जाता, उसके पीछे लंबी तैयारी होती है। पिछले वर्ष सितम्बर के आखिर में जब कम दर्शकों की उपस्थिति में आयोजनों की अनुमति मिलनी शुरू हुई थी तो लगा था कि करीब छह-सात महीने के अंतराल के बाद धीरे-धीरे सब ठीक होने लगेगा। कलाकारों ने फिर कमर कसी थी, तैयारियों में जुटे, बीच-बीच में व्यवधान के बीच कुछ कार्यक्रम भी होने लगे, लेकिन थोड़े ही महीनों के बाद एक बार फिर सब कुछ ठप हो गया है। एक माह से कलाकारों के सामने जीवन को बचाने के साथ ही जीवन को चलाने का प्रश्न फिर उठ खड़ा हुआ है। सवाल यह भी है कि कोरोना का यह दूसरा काल आने वाले कितने महीनों तक उन्हें अपने काम से विरत रखेगा? यह प्रश्न उनकी कला और जीवन यापन, दोनों का ही है। देश में बड़ी संख्या में दृश्य कलाओं, ललित कलाओं, संगीत, रंगमंच जैसी मंच कलाओं, लोक कलाओं से जुड़े ऐसे कलाकार हैं, जिनके पास आय के निश्चित स्रोत नहीं हैं। कलाकारों का बहुत छोटा प्रतिशत ही शिक्षा संस्थानों, आकाशवाणी-दूरदर्शन या अन्य स्थानों पर सेवारत है।
बड़ी संख्या में कलाकार स्वतंत्र हैं जो विभिन्न प्रदर्शनों, समारोहों, प्रदर्शनियों, कार्यक्रमों या निजी तौर पर कक्षाएं लेकर जीवन यापन करते हैं। आकाशवाणी, दूरदर्शन या विभिन्न संस्थानों की रिकॉर्डिग भी कभी उनका या उनके परिवारों का सहारा बनती है। कोरोना काल में पहले भी ये सब कुछ बंद हो गया था और एक बार फिर एक माह से बंद है। पिछली बार जब यह सब कुछ हुआ था तो उन संस्थाओं की आलोचना भी खूब हुई थी, जो कला और कलाकारों के हित के लिए लाखों-करोड़ों का बजट लेकर चलती हैं। राज्यों और केंद्र की कई संस्थाएं, अकादमियां विभिन्न कला विधाओं को ध्यान में रखकर बनी हैं। संस्कृति विभाग भी हैं। सांस्कृतिक केंद्र हैं, स्वायत्तशासी संस्थाएं हैं, जिन्हें सहायता मिलती है। आकाशवाणी और दूरदर्शन हैं, लेकिन ऐसी मुश्किल घड़ी में सभी कलाकारों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं, कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आता। संस्कृति विभागों की योजनाएं रुक जाती हैं क्योंकि महीनों तक उनकी बैठकें नहीं हो पाती हैं और जिस समय कलाकारों को मदद की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, उस समय उनकी मदद नहीं हो पाती है। सरकारी विभाग, संस्थान या अकादमियां चाहें तो मुश्किल घड़ी में कलाकारों की सहायता के नये रास्ते निकाल सकती हैं।
पिछली बार वेबिनार और सोशल मीडिया पर प्रदर्शनों के डिजिटल मंच खूब बन गए थे। संभव है कि इस बार भी ऐसा हो, लेकिन इस मंच का उपयोग कलाकारों की मदद और मानदेय के अवसर के रूप में किया जाना चाहिए। पिछली बार ऐसा ज्यादा कुछ बिना मानदेय के ही हुआ था और इस बेगारी का कई कलाकारों ने विरोध भी किया था। आकाशवाणी और दूरदर्शन अपने स्टूडियो की रिकॉर्डिग न हो पाने की स्थिति में कलाकारों से ऑडियो-वीडियो क्लिप मंगाकर मानदेय दे सकते हैं। रंगमंच और संगीत जैसी मंच कलाओं से जुड़ी संस्थाएं डिजिटल मंच पर कार्यक्रम कराकर कलाकारों को पारिश्रमिक दे सकती हैं। दृश्य कला की संस्थाएं डिजिटल मंच पर कलाकार शिविर का आयोजन कर सकती हैं। डिजिटल मंच पर टिकट लगाकर मंच कलाकारों के समारोह आयोजित किए जा सकते हैं, लेकिन यह सब कुछ तब होगा जब कलाकारों की चिंता और उनके लिए कुछ करने की इच्छाशक्ति होगी। क्या निश्चित समय पर हर माह बड़ा वेतन पाने वाले कलाओं से जुड़े संस्थानों के अधिकारी इन स्वतंत्र कलाकारों के दर्द को महसूस कर सकेंगे!
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