हमारे जननायक को रिहा करो
झल्लन आया और मुंह-ही-मुंह कुछ बुदबुदाया। हमने कहा, ‘क्या बड़बड़ा रहा है, लगता है तेरा दिमागी ढर्रा गड़बड़ा रहा है।’
हमारे जननायक को रिहा करो |
झल्लन बोला, ‘ददाजू, हमें आप पर गुस्सा है, आप अच्छा नहीं किये, कल अपनी बैठकी में हमारे जननायक की निंदा कर दिये।’ हमने हैरानी से झल्लन की ओर देखा और कहा, ‘देख झल्लन, हम निंदा करते हैं तो थोड़ा सोच-समझकर करते हैं, किसी जननायक पर ऐसे ही निंदा की उंगली नहीं रखते हैं।’ झल्लन बोला, ‘यही तो ददाजू, आप निंदा भी कर दिये और बचकर भी निकल लिये। आप भरी महफिल में हमारे जननायक सचिन वाझे पर तमाम निराधार आरोप लगा रहे थे और एक महान व्यक्ति को अपराधी बता रहे थे। इत्ता तो आपको भी मालूम होना चाहिए कि सचिन वाझे मात्र एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक पूरी संस्था है और इस लोकतंत्र की पूरी व्यवस्था है। सचिन वाझे इस देश की रग-रग में व्याप्त है इसीलिए सचिन वाझे को भगवान का दर्जा प्राप्त है। कण-कण में मौजूद ऐसे व्यक्ति की अगर आप निंदा करेंगे तो पक्का मानिए कि नरक कुंड में जा गिरेंगे।’
हमने कहा, ‘हम समझ गये कि तू क्या कह रहा है और किस बिना पर सचिन वाझे को भगवान बता रहा है। अपराध की व्याप्ति का मतलब यह नहीं है कि अपराधी को देवता बना दो और उसकी प्रशस्ति में झंडा उठा दो।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप बार-बार यहीं तो मात खा जाते हो, जमाने के हिसाब से थोड़ा सुधर क्यों नहीं जाते हो? खैर, आप सुधरो या मत सुधरो, हम आपको सुधारने पर ज्यादा जोर नहीं लगाएंगे पर अपने जननायक सचिन वाझे को जरूर बचाएंगे, हम उसके पक्ष में आंदोलन चलाएंगे और एक महान व्यक्ति को अपराधी की तरह गिरफ्तार करने वाली एजेंसी के चंगुल से छुड़ाएंगे। हम ऐसा इसलिए करेंगे क्योंकि सचिन वाझे हमारे लोकतंत्र की आत्मा है, वह लोकतंत्र के हर अंग-उपांग में पैठा हुआ परमात्मा है। साधु-संतों के बिना लोकतंत्र चल सकता है पर सचिन वाझे के बिना नहीं चल सकता इसलिए यह देश सचिन वाझे जैसी महाप्रवृत्ति को ज्यादा देर जेल में नहीं रख सकता।’ हमने कहा, ‘पर ये बता, तू अपने इस कण-कण व्याप्त परमात्मा को कैसे बचाएगा, कैसे उसके पक्ष में आंदोलन चलाएगा और आंदोलन चलाएगा तो नारे क्या लगाएगा?’
झल्लन बोला, ‘हम जानते थे कि आप घूम-फिरकर इसी मुद्दे पर आओगे और नारों का सवाल जरूर उठाओगे, सो हम नारे बना लिये हैं और सचिन वाझे के बिरादरी बंधुओं को अच्छी तरह दिखा लिये हैं। हम जो नारे लिखकर लाये हैं उन्हें जोर-शोर से लगाएंगे और आप सुनो या मत सुनो पर आपके कानों में घुसाकर जाएंगे।’ हमने कहा, ‘ये क्या बात हुई कि तू नारे लगाएगा, हम सुनें न सुनें पर तू हमें जबर्दस्ती सुनाकर जाएगा। खैर बता, क्या नारे बना लाया है जो हमें सुनाने चला आया है?’ झल्लन बोला, ‘सुनिए ददाजू, हमारा पहला नारा है-जननायक सचिन वाझे का यह अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान; हमारा दूसरा नारा है- हमारा सचिन वाझे महान है, आधुनिक भारत की पहचान है; और तीसरा नारा है-नेता लोगों शर्म करो, शर्म करो, लोकतंत्र की जान सचिन वाझे को रिहा करो, रिहा करो।’
हमने कहा, ‘सुन झल्लन, अगर तू एक अपराधी के पक्ष में ऐसे नारे लगाएगा तो रहा-बचा लोकतंत्र भी नाली की राह बह जाएगा।’ झल्लन बोला, ‘आप गलत सोचे हो ददाजू, सचिन वाझे के बिना लोकतंत्र नहीं चल पाएगा, सचिन वाझे को हटा लो तो आपका यह लोकतंत्र झटके में चरमराकर गिर जाएगा। ईमानदारी से बताओ ददाजू, आपके इस लोकतंत्र का ऐसा कौन-सा हिस्सा है जहां सचिन वाझे नहीं पल रहा हो और जो सचिन वाझे के बिना चल रहा हो? विधायिका सचिन वाझे के बल पर चल रही है, कार्यपालिका सचिन वाझे के बल पर चल रही है, न्यायपालिका सचिन वाझे की गोद में पल रही है, रही कॉरपोरेट की बात, तो सचिन वाझे का यहां भरपूर प्रवेश है और सचिन वाझे में पूंजी का बहुत बड़ा निवेश है। जब समूची व्यवस्था जिस सचिन वाझे के सहारे चल रही है उसे हम फालतू में अपराधी क्यों ठहराएंगे, उसके पक्ष में नारे नहीं लगाएंगे तो किसके पक्ष में लगाएंगे? और वैसे भी ददाजू, मुबंई के एक सचिन वाझे को पकड़कर आप क्या दिखाना चाहते हैं, उसे बलि का बकरा बनाकर क्या पाना चाहते हैं? हिम्मत है तो इस लोकतंत्र की नसों में बह रहे सचिन वाझे को निकालकर दिखाइए, तब हमारे जननायक सचिन वाझे के विरुद्ध कोई आवाज उठाइए।’ हमने कहा, ‘तू कुछ भी कह झल्लन, तेरा नायक सचिन वाझे बच नहीं पाएगा, उसने खुद को जिस तरह फंसा लिया है उससे निकल नहीं पाएगा।’
झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, आप जो सोच रहे हो वह झूठ है, अपनी व्यवस्था पर हमारा भरोसा अटूट है। सबसे अच्छी बात यह है कि जैसे हमारा सचिन वाझे अपने सुकर्म की जांच खुद कर रहा था वैसे ही महाराष्ट्र की सरकार भी अपने सुकर्म की जांच खुद कर रही है, यही बात सचिन वाझे के पक्ष में हमारे मन में विश्वास भर रही है। जब तक ऐसी सरकारें रहेंगी तब तक सचिन वाझे कहीं नहीं जाएंगे, अगर एक सचिन वाझे जाएगा तो लाख सचिन वाझे आ जाएंगे।’
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