सेनाओं में महिलाओं से दोयम दर्जे का बर्ताव

Last Updated 03 Apr 2021 11:44:51 PM IST

दुनिया भर के देशों की सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं को अक्सर लिंगभेद का सामना करना पड़ता है। जैसा कि पिछले दिनों एक फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि मदरे की दुनिया मदरे के बनाए नियम-पैमाने, मदरे के हिसाब के ही हैं।


सेनाओं में महिलाओं से दोयम दर्जे का बर्ताव

यूं कई देश इसे दुरु स्त करने की भी कोशिश कर रहे हैं। एक कोशिश स्विट्जरलैंड की तरफ से हो रही है। यह हास्यास्पद है लेकिन सच है कि अब तक स्विस सशस्त्र सेनाओं में महिला रिक्रूट्स को पुरु षों के अधोवस्त्र पहनने पड़ते थे। बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वहां सेना में रिक्रूट्स को ‘पुरु षों के लूज फिटिंग वाले अंडरवियर दिए जाते हैं, जो आकार में काफी बड़े होते हैं।’ अब स्विस सेना ने कहा है कि महिलाओं को अधोवस्त्रों के दो सेट्स दिए जाएंगे-एक गर्मिंयों, दूसरा सर्दियों के लिए। कई स्विस महिला सैनिकों का कहना है कि पुरु षों के अधोवस्त्रों के कारण उन्हें काफी दिक्कतें आती हैं। दरअसल, पहले के जमाने में यूनिफॉर्म्स औरतों के हिसाब से बनती ही नहीं थीं। आने वाले दिनों में दूसरे कपड़ों जैसे कॉम्बैट के कपड़े, बैकपैक्स और प्रोटेक्टिव वेस्ट्स को भी बदला जाएगा। ये भी पुरु षों के शरीर के हिसाब से ही तैयार किए जाते हैं। सेना को उम्मीद है कि इस कदम से आगामी दशक में महिला रिक्रूट्स की संख्या 1 से 10 फीसद बढ़ेगी।
वैसे कई देशों की सेनाओं में महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। इस साल मार्च में अमेरिका के मैरीन कॉर्प्स ने घोषणा की थी कि वह अपने पुरु ष रिक्रूट्स को अंडरवियर रिप्लेसमेंट अलाउंस देना बंद कर देगा। कपड़ों की बदली के लिए यह भत्ता सिर्फ  पुरु ष रिक्रूट्स को मिलता है। महिला रिक्रूट्स को नहीं मिलता। गवर्नमेंट एकाउंटेबिलिटी ऑफिस का कहना है कि महिला रिक्रूट्स औसतन साल भर में कपड़ों की बदली के लिए करीब आठ हजार खर्च करती हैं जबकि पुरु ष रिक्रूट्स अपने भत्ते को पूरा खर्च नहीं कर पाते। दरअसल, औरतों के यूनिफॉर्म आइटम्स महंगे हैं।

इस सिलसिले में भारत का जिक्र भी जरूरी है। एक साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय थल सेना से कहा था कि वह शॉर्ट सर्विस कमीशन वाली महिलाओं को परमानेंट कमीशन दे। लेकिन फिर भी यह मौका बहुत सी औरतों को नहीं मिला। परमानेंट कमीशन न पाने वाली 17 महिला अधिकारियों ने एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की। पिछले महीने ही न्यायालय ने सेना को हिदायत दी है कि करीब 650 औरतों को दो महीने के अंदर-अंदर परमानेंट कमीशन दे। भारत में महिलाएं थल सेना में कॉम्बैट पदों पर नहीं रखी जातीं। जिन विभागों में उन्हें रखा जाता है, उनमें भी वे कुछ ही सालों तक काम कर सकती हैं। इसे शॉर्ट सर्विस कमीशन कहा जाता है। फिर पिछले साल अदालत ने सेना से कहा कि अपने 10 विभागों में महिलाओं को परमानेंट कमीशन दे। इसके बाद महिला सैन्य अधिकारियों ने पाया कि सेना में परमानेंट कमीशन के लिए फिटनेस का जो पैमाना तैयार किया गया है, वह लिंगभेद भरा है। पुरु षों को पांच साल की नौकरी के बाद परमानेंट कमीशन के लिए जिस पैमाने से गुजरना पड़ता है, उसी पैमाने से 15 साल नौकरी कर चुकी महिला अधिकारियों को भी गुजारना पड़ रहा है। ऐसे में औरतों के लिए उस पैमाने पर खरा उतरना संभव नहीं। नतीजतन, बहुत सी औरतों को परमानेंट कमीशन नहीं मिल रहा। अब अदालत ने इस व्यवस्था को दुरु स्त करने की निर्देश दिया है।

माशा


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