बतंगड़ बेतुक : छलकन लागीं जब छलिया आंखें

Last Updated 14 Feb 2021 12:10:53 AM IST

झल्लन आया और चुपचाप बगल में बैठ गया। हमने कहा, ‘काहे झल्लन, काहे दुखी लग रहा है, क्या मन में कोई कष्ट पल रहा है?’


बतंगड़ बेतुक : छलकन लागीं जब छलिया आंखें

झल्लन बोला, ‘अब क्या कहें ददाजू, प्रधानमंत्री की बातें मन में बार-बार भावुकता बो रही हैं और हमारी आंखें छलकने-छलकने को हो रही हैं।’ हमने कहा, ‘ये क्या अजूबा है झल्लन, आखिर ऐसा क्या कह दिया प्रधानमंत्री ने जो तेरे जैसा निंदक उनका प्रशंसक हो गया है और उनकी याद में इतना दुखी हो गया है?’ झल्लन बोला, ‘का ददाजू, आप भी न जाने कहां पड़े रहते हैं, अपनी संसद में क्या हो रहा है इसकी खबर तक नहीं रखते हैं। देखिए, अपने घोर विपक्षी आलोचक की तारीफ करते-करते हमारे प्रधानमंत्री की आंखें भर आयीं, बस, बड़प्पन वाली उनकी यही अदा हमें खींचकर उनके निकट ले आयी।’
हमने कहा, ‘पर झल्लन, इक्का-दुक्का छोड़, बाकी विपक्षी तो प्रधानमंत्री के आंसुओं को उनका नाटक बता रहे हैं। उनका कहना हैं कि तारीफ करके वे संसद से रिटायर हुए सबसे बड़ी निंदक पार्टी के बड़े नेता को पटा रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘सुनो ददाजू, हम उनमें नहीं हैं जो एक बार विपक्षी हुए तो सिर्फ विपक्ष के ही रह जाएंगे और एक बार जो खडूसिया जिद पकड़ ली तो फिर उसी पर अड़ जाएंगे। अगर विपक्ष की बात सुहाती है तो विपक्ष की कहेंगे और अगर प्रधानमंत्री की बात सुहाती है तो प्रधानमंत्री की सुनेंगे, पर पार्टीबाज नेताओं की तरह अपना दिमाग गिरवी नहीं रखेंगे और न उनकी तरह काले को सफेद और सफेद को काला कहेंगे।’ हमने मुस्कुराकर कहा, ‘तो तुझे प्रधानमंत्री की कौन-सी बात सुहा गयी जो तुझे कटु विपक्षी से कट्टर सरकारी बना गयी?’

जवाब में झल्लन भी मुस्कुराया, फिर बोला, ‘देखिए ददाजू, आप हम पर तोहमत लगा रहे हैं और जो हम नहीं हैं हमें वही बता रहे हैं। हम उदार मानुष हैं सो न कभी कटु होते हैं, न कट्टर होते हैं, अपनी समझ बिना बेचे, बिना छल-कपट के बाहर भी वही होते हैं जो अंदर से होते हैं। रही प्रधानमंत्री की बात सुहानी लगने की और प्रधानमंत्री के लिए हमारी सहानुभूति जगने की, तो सुनिए, इधर प्रधानमंत्री ने संसद में जो कुछ कहा वह हमें ईमानदार और सुच्चा लगा और उसके विरुद्ध विपक्ष का रवैया निहायत ही टुच्चा लगा।’
हमने कहा, ‘प्रधानमंत्री कहते हैं कि उनकी सरकार और उनके कानून किसानों के हित में हैं, किसानों को लाभ पहुंचाएंगे, किसानों की भलाई उनकी प्राथमिकता में है इससे वह कभी मुंह नहीं चुराएंगे।’ झल्लन बोला, ‘हमें तो लगता है कि प्रधानमंत्री ओछी राजनीति नहीं कर रहे हैं और जो कह रहे हैं वह कर रहे हैं। और ददाजू, हम यह भी मानते हैं कि किसानों के पवित्र आंदोलन में आंदोलनकारियों के बीच परजीवी आंदोलनजीवी घुस आये हैं, वही लोग किसानों को बरगलाए हैं और इन्हीं की करतूतों के चलते किसानों की समस्या के हल नहीं निकल पाये हैं।’ हमने कहा, ‘कभी-कभी हमें भी यही लगता है झल्लन कि ऐसे ही तत्वों की वजह से किसान वार्ता की मेज से उठ जाते हैं और अपनी जिद को लेकर जहां बैठे हैं वहीं बार-बार बैठ जाते हैं।’ झल्लन बोला, ‘वही तो ददाजू, प्रधानमंत्री की बात में पूरी नहीं तो कुछ तो सच्चाई है, उनकी यही सच्चाई हमें उनके निकट ले आयी है। और देखिए, विपक्ष उन्हें रक्तजीवी, चंदाजीवी और क्रोनीजीवी बता रहा है और विपक्ष का यह जहरीला अंदाज हमें बिल्कुल नहीं भा रहा है, हमारे मन में जुजुप्सा जगा रहा है।’
हमने कहा, ‘झल्लन, इन हालात को लेकर हमारे मन में भी बड़ी कचोट है और हमारी समझ से पक्ष और विपक्ष दोनों में ही खोट है। दोनों ही एक-दूसरे को झूठा, गलत और लोकतंत्र विरोधी बता देते हैं और अगला चाहे जितना नेक-नीयत और ईमानदार हो उसे देश का गद्दार बना देते हैं। दोनों के बीच संशय और अविश्वास की खाई बहुत गहरी हो गयी है और पक्ष-विपक्ष के शत्रुवत व्यवहार के कारण असामाजिक तत्वों और देशविरोधियों की चांदी हो गयी है। इस झगड़े का फायदा वे उठाना चाहते हैं जो देश की व्यवस्था को तोड़कर उसे मिटाना चाहते हैं।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, हमें तो विपक्ष ही ज्यादा कसूरवार लगता है क्योंकि जब उसे जागना चाहिए तब वह सोता है और जब सोना चाहिए तब जगता है।’ हमने कहा, ‘बात तो तेरी भी सही है झल्लन, लोकतंत्र में सरकार की कमियों-खामियों से निपटने के लिए एक मजबूत, ईमानदार विपक्ष बहुत जरूरी होता है लेकिन दृष्टिविहीन, नाकारा और निस्तेज विपक्ष लोकतंत्र की मजबूरी होता है। ऐसा विपक्ष स्वयं कोई सार्थक योगदान तो दे नहीं पाता है बल्कि जो सार्थक होता है उसमें भी पलीता लगा जाता है। इस समय विपक्ष सिर्फ यही काम कर रहा है, उसे इस बात की चिंता नहीं है कि इससे यह देश मर रहा है।’
झल्लन बोला, ‘ठीक कहे हो ददाजू, सरकार की गलतियों पर एक मजबूत, विचारवान विपक्ष लगाम लगा देता है लेकिन आज के जैसा विचारविहीन, सिद्धांतविहीन और विवेकहीन विपक्ष अपनी करतूतों से सरकार को अधिक उद्दंड बना देता है। सरकार तब तक मनमानी करेगी जब तक विपक्ष मजबूत नहीं हो जाएगा और मजबूत विपक्ष तब तक नहीं उभरेगा जब तक कि मौजूदा विपक्ष पूरी तरह मर नहीं जाएगा।’

विभांशु दिव्याल


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