वैश्विकी : वैक्सीन और नोबेल पुरस्कार

Last Updated 14 Feb 2021 12:13:35 AM IST

कोरोना वायरस महामारी पर विजय हासिल करने की जद्दोजहद में लगे वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को अब सम्मानित करने का अवसर है।


वैश्विकी : वैक्सीन और नोबेल पुरस्कार

पिछले वर्ष महामारी के कारण ठप पड़ गए जनजीवन को इस वर्ष यदि फिर सामान्य बनाने में सफलता मिलती है तो इसका श्रेय इन्हीं लोगों को जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हीं लोगों के लिए हमारे बीच रहने वाले सजीव भगवान की संज्ञा दी थी।
विश्व बिरादरी इन लोगों के उपकार का ऋण चुकता नहीं कर सकती। यह जरूर है कि लोगों की उपलिब्धयां आंकने के लिए जो परिपाटी इस दुनिया में है, उसके आधार पर वे सर्वोच्च पुरस्कार के अधिकारी हैं। वर्ष 2021 के शांति के लिए नोबेल पुरस्कार के वास्तविक अधिकारी यही लोग हैं। विश्व बिरादरी की यह जिम्मेदारी है कि वह इस वर्ष के शांति नोबेल पुरस्कार के लिए उन्हें नामित करे और इस पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया जाए। कोई जरूरी नहीं है कि यह पुरस्कार कुछ लोगों या कुछ संस्थानों को दिया जाए। यह एक सामूहिक रूप से दिया जाने वाला पुरस्कार भी बन सकता है। शांति नोबेल पुरस्कार पर जिन व्यक्तियों या संस्थाओं का अधिकार बनता है, उनमें भारत के फाम्रेसी उद्योग की बड़ी दावेदारी है। वास्तव में भारत इन इने-गिने देशों में शामिल हैं जिन्होंने राजनीतिक निर्णय जनता की स्वयं अनुशासित जीवनशैली वैक्सीन विकसित करने से लेकर वैक्सीन उत्पादन तक में हर मोच्रे पर असाधारण क्षमता का परिचय दिया है।

जहां तक वैक्सीन उत्पादन का सवाल है भारत की उत्पाद क्षमता का दुनियाभर में लोहा माना जाता है। दुनिया में जहां भी वैक्सीन विकसित की गई है, उनके उत्पादन की जिम्मेदारी भारतीय कंपनियों को ही सौंपी गई है। विव्यापी टीकाकरण अभियान अभी अपने प्रारंभिक दौर में है, लेकिन भारत की वैक्सीन उत्पादन इकाइयों ने विश्व मांग को पूरा करने के लिए कमर कस ली है। दुनिया के सौ से अधिक देशों ने भारत से वैक्सीन हासिल करने के लिए अनुरोध किया है। पड़ोसी देशों सहित अफ्रीका और दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के छोटे-बड़े देशों को भारत या तो सहायता स्वरूप निशुल्क वैक्सीन भेज रहा है अथवा व्यावसायिक आधार पर इसका निर्यात किया जा रहा है। भारत की विदेश नीति में ‘चिकित्सा कूटनीति’ का नया आयाम जुड़ गया है। ‘चिकित्सा कूटनीति’ के जरिये भारत पड़ोसी देशों के साथ छोटे-मोटे मनमुटाव दूर कर रहा है, दूरदराज के देशों में अपनी साख मजबूत बना रहा है तथा आलोचक देशों की सद्भावना अर्जित कर रहा है।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को टेलीफोन करके वैक्सीन आपूर्ति की गुहार लगाना इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। ट्रूडो ने पिछले दिनों भारत को लोकतांत्रिक विरोध आंदोलन के बारे में नसीहत दी थी। उनके कथन को किसान आंदोलन को शह देने वाला माना गया था। वैसे भी कनाडा में खालिस्तान समर्थक तत्व मौजूद हैं और राजनीतिक सत्ता तक उनकी पहुंच है। ट्रूडो ने कनाडा के टीकाकरण अभियान की मजबूरी के कारण भारत के सामने गुहार लगाई। कूटनीतिक मानदंडों के कारण इसे भारत के सामने घुटना टेकने की बात नहीं की गई, लेकिन वास्तव में हुआ ऐसा ही था। भारत जब कनाडा को वैक्सीन की आपूर्ति करेगा तो भारत की यह स्वाभाविक मांग होगी कि कनाडा खालिस्तान तत्वों की नकेल कसे।
भारत के मानवतावादी रुख पर सबसे मार्मिक टिप्पणी दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप के छोटे से देश डोमेनिकन रिपब्लिक के प्रधानमंत्री रूजवेल्ट स्केरिट ने की है। उन्होंने बाइबिल को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘तुम मांगोगे वह तुम्हें मिलेगा। बीमार को चंगाई मिलेगी।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि वह एक श्रद्धावान ईसाई हैं तथा बाइबिल के हर शब्द में उनका विश्वास है, लेकिन फिर भी वह कहना चाहेंगे कि उन्हें यह भरोसा नहीं था कि जब वह अपने एक लाख से कम आबादी वाले देश के लिए वैक्सीन मांगेंगे तो वह इतनी जल्दी उन्हें मिल जाएगी। प्रधानमंत्री स्केरिट भारत से वैक्सीन लाने वाले वायुयान की अगवानी करने के लिए स्वयं हवाईअड्डे पर मौजूद थे। उसी परिसर में उन्होंने तरंगे और अपने देश के ध्वज की पृष्ठभूमि में भारत और प्रधानमंत्री मोदी की भावपूर्ण शब्दों में प्रशंसा की। वास्तव में एक छोटे देश की भारत के प्रति ऐसी सद्भावना किसी नोबेल पुरस्कार से कम नहीं है।

डॉ. दिलीप चौबे


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