एससी-एसटी : उपेक्षित रह गई हिस्सेदारी

Last Updated 12 Feb 2021 02:58:31 AM IST

भारत विश्व का इकलौता देश है, जहां सामाजिक व्यवस्था का आधार जाति है। लोग जातियों में बांटे गए हैं। इसी वर्गीकरण के आधार पर ही संसाधनों का बंटवारा है।


एससी-एसटी : उपेक्षित रह गई हिस्सेदारी

फिर चाहे वह अनुसूचित जनजाति के लोग हों, या अनुसूचित जाति के हों, या विमुक्त व घुमंतू जनजातियां (डीएनटी) या फिर पिछड़ा वर्ग के लोग। इनमें धार्मिंक अल्पसंख्यकों को भी शामिल किया जाना चाहिए। ये सभी मिलकर समाज के बड़े हिस्सेदार बन जाते हैं और इनकी हिस्सेदारी को लेकर राजनीति भी की जाती है। इसके बावजूद सरकारी योजनाओं और नीतियों में इनकी चिंता बहुत कम ही की जाती है।
यह कोई एक सरकार की बात नहीं है। आजादी के बाद का इतिहास देखें तो यह शीशे की तरह पारदर्शी है। यहां तक कि वर्तमान सरकार के एजेंडे में भी उपरोक्त वर्ग के लोग हाशिए पर हैं। यह इसके बावजूद कि सरकार ने कई अवसरों पर कबूला है कि ये वर्ग अपेक्षित रूप से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। इसकी पुष्टि हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजटीय संबोधन में भी की जब वे इन वगरे के लिए कुछ खास आंकड़ों और सरकार की कुछ योजनाओं की चर्चा कर रही थीं, जबकि मंत्रालयवार बजटीय आवंटनों को देखें तो बात एकदम विपरीत है।

सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह कि पूर्व में पंचवर्षीय व वार्षिक योजनाओं में एससी व एसटी के लिए उपयोजनाएं हुआ करती थी, जिसे अब समाप्त कर दिया गया है। अब केंद्रीय बजट में एससी व एसटी के कल्याण से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए विभिन्न मंत्रालयों को आवंटित धनराशि का विवरण (विवरण 10अ व 10ब) अलग से दिया जाता है।
वहीं विमुक्त समुदायों को संविधान में एक अलग समूह के रूप में चिह्नित नहीं किया गया है। यद्यपि सरकार ने हाल में उनके विकास के लिए डीएनटी बोर्ड का गठन किया है। केंद्रीय बजट में वंचित वगरे की उपेक्षा किस तरीके से की गई है। मसलन सामाजिक न्याय व अधिकारिता को वित्तीय वर्ष 2020-21 में 10103.57 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। इस बार इस मंत्रालय के लिए अनुमानित आवंटन 10517.62 रु पये है। यही हाल आदिवासी मामलों के मंत्रालय का है। पिछली इसके लिए 7411 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। इसबार इसमें अत्यंत ही मामूली वृद्धि कर 7524.87 करोड़ रु पये किया गया है।  स्पष्ट है कि वंचितों से संबद्ध मंत्रालयों के बजटीय आवंटन में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभागों (जो कि सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय का भाग हैं) के बजट में नाममात्र की वृद्धि की गई है। आदिवासी मामलों के मंत्रालय के बजट में भी मामूली बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं एससी और एसटी के लिए तो नये शब्दजाल बुने गए हैं। विकास पर विमर्श में पहले ‘कल्याण’ शब्द का प्रयोग किया जाता था।
इसके बाद ‘विकास’ और तत्पश्चात ‘सशक्तिकरण’ की परिकल्पना आई। परन्तु योजना और उपयोजना की व्यवस्था समाप्त होने के बाद, भारत सरकार ने एससी व एसटी के वास्ते अपने कार्यक्रमों और योजनाओं के विवरण को ‘एससी कल्याण के लिए आवंटन’ और ‘एसटी कल्याण के लिए आवंटन’ शीषर्क देने का निर्णय लिया है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो सालों में दोनों समुदायों के लिए आवंटित बजट में मामूली वृद्धि हुई है (बजट अनुमान 2019-20 और 2020-21)। वित्तीय वर्ष 2019-20 में हुआ वास्तविक व्यय आवंटन से कम था। आवंटित और वास्तविक व्यय में अंतर एससी के मामले में करीब 20 प्रतिशत और एसटी के मामले में लगभग 11 प्रतिशत था। इस साल दोनों श्रेणियों के लिए आवंटन में वृद्धि हुई है। एससी से संबंधित योजनाओं के लिए आवंटन 83.24 हजार करोड़ रु पये से बढ़कर 1.26 लाख करोड़ रु पये हो गया है जब कि एसटी में मामले में यह 53.65 हजार करोड़ रुपये से बढ़ कर 79.94 हज़ार करोड़ रु पये हो गया है।
यह वृद्धि इसलिए नहीं हुई है क्योंकि किसी या किन्हीं मंत्रालयों ने एससी अथवा एसटी कल्याण योजनाओं के लिए आवंटन में इजाफा किया है बल्कि यह इसलिए नजर आ रही है क्योंकि इस साल से कुछ नये मंत्रालयों ने एससी अथवा एसटी के लिए अपने आवंटनों का अलग से विवरण देना प्रारंभ कर दिया है। वहीं सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत विमुक्त, घुमंतू और अर्धघुमंतू समुदायों के लिए विकास एवं कल्याण बोर्ड है। इस बोर्ड का स्थापना बजट, 2020-21 में 1.24 करोड़ रु पये था, जिसे नये वित्त वर्ष में बढ़ा कर पांच करोड़ रु पये कर दिया गया है। इसी तरह, विमुक्त घुमंतू जनजातियों के विकास के लिए योजना के लिए इस वर्ष 10 करोड़ रु पये का आवंटन किया गया था, परन्तु 2021-22 के लिए मंत्रालय के विस्तृत बजट में इस योजना के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। पिछड़े वगरे की बात करें तो केवल प्री और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की योजनाओं को लेकर बजट में चर्चा है, जबकि करीब 54 फीसद आबादी वाले इस वर्ग के हालात अत्यंत ही विषम हैं।
बहरहाल, यह तो साफ है कि भारत के बहुसंख्यकों-जिनमें बड़ी हिस्सेदारी पिछड़ा वर्ग और विमुक्त व घुमंतू जातियों की है-को उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से बजट में भागीदारी नहीं दी गई है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी संभव है कि देश में उनके संबंध में सरकार के पास कोई निश्चित आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है। यह तभी संभव है जब सरकार जातिगत जनगणना कराए। यदि ऐसा होता है तभी इस वर्ग की वास्तविक स्थिति के बारे में सरकार को जानकारी मिलेगी और तब उनके लिए बजट और नीतियां दोनों बनाने में उसे सहायता मिलेगी।

नवल किशोर कुमार


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