आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस : संपूर्ण क्रियाकलाप का कायाकल्प
मनुष्य सहित सभी प्राणियों को विधाता से मिली है- प्राकृतिक बुद्धि। मनुष्य से मशीनों को मिली है- कृत्रिम बुद्धि जिसका प्रचलित नाम है- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस : संपूर्ण क्रियाकलाप का कायाकल्प |
आज हमारे लिए सोचने- विश्लेषण करने से लेकर याद रखने तक का काम यंत्र कर रहे हैं। स्मार्ट फोन को ही लीजिए। ये अब केवल परस्पर बातचीत का माध्यम नहीं रहे। हमारी निजी टेलीफोन डायरेक्टरी बन गए हैं। हम इनसे ऑनलाइन खरीद करते हैं, बिलों का भुगतान करते हैं, गेम खेलते हैं, मूवी देखते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से मशीनें हमारे लिए प्लानिंग, लर्निग, लेंग्वेज प्रोसेसिंग और प्रजेंटेशन कर रही हैं। कारखानों में रोबोटिक आर्म्स एक्यूरेट और फास्ट मैन्युफैक्चरिंग कर रहे हैं। सीसीटीवी हम सबकी जासूसी कर रहे हैं। ड्रोन्स सुरक्षा के नये उपकरण बन गए हैं। टीवी होम थिएटर बन गए हैं। सेल्फ ड्राइविंग मोटर कारें सड़कों पर दौड़ने लगी हैं। बिना ड्राइवर की मेट्रो ट्रेन तो हमारे देश में भी आ गई है।
कोरोना महामारी के दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने हम सबके लिए घरों को दफ्तर तो बच्चों की क्लास बना दिया। अब हम ड्राईग रूम में बैठकर बिजनेस मीटिंग्स में हिस्सा लेने लगे हैं। हमारे निजी और सार्वजनिक जीवन में तकनीक से हो रहे बदलावों की सूची बहुत लंबी है। टेक्नोलॉजी का विरोध किया जा सकता है, इसे कुछ देर के लिए टाला जा सकता है पर रोका नहीं जा सकता। यह बदलाव की ऐसी प्रचंड आंधी है, जो संसार को बदल देती है। प्रथम और द्वितीय औद्योगिक क्रांति ने केवल मैन्युफैक्चरिंग को बदला था पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तो मनुष्य के संपूर्ण क्रियाकलाप का कायाकल्प करने लगी है। संयोग से आज भारत के पास प्रतिभाशाली टेक्नोक्रेट्स हैं। उन्हें मौका मिलता है तो वे क्या कमाल कर सकते हैं, इसकी ताजा मिसाल है-कोरोना वैक्सीन। दुनिया के विकासशील देशों में भारत अकेला देश है, जिसने नौ माह में एक से ज्यादा कोरोना वैक्सीन बना लीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि दुनिया को टीकाकरण के लिए 70 फीसदी डोज भारत से मिलेंगे।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ही देश को कम लागत का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाएगी जिससे बनेगा भारत एशिया का सुपर पॉवर। डिजिटल इण्डिया अब केवल नारा नहीं रहा, बल्कि देश के भविष्य से जुड़ा संकल्प बन गया है। इसे साकार करने के लिए हमें देश के हर कोने में टेक्नोलॉजी पार्क विकसित करने चाहिए। सॉफ्टवेयर का वैसे ही लेखन और पुर्नेखन होना चाहिए जैसे देश के कोने-कोने से अखबार हर रोज छपते और घर-घर पहुंचते हैं। पचास-साठ के दशक में हम ब्रेनड्रेन यानी देश से प्रतिभा पलायन नहीं रोक पाए थे पर अब जो राज्य और शहर अपने टेक्नोक्रेट्स की कद्र करेंगे, वे आगे बढ़ेंगे। वे ही समृद्धि और विकास के नये केंद्र बनेंगे। अब भविष्य केवल उनका है, जो समय के साथ बदलेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने अंसतुलित विकास का खतरा पैदा किया है। टेक्नोलॉजी मानव श्रम की जरूरत घटाती है, जिससे बेरोजगारी बढ़ रही है। आज जॉब मार्केट में मनुष्य से मनुष्य का नहीं, बल्कि मनुष्य से मशीनों का मुकाबला है। वे मशीनें जो चौबीस घंटे काम करती हैं, एक्यूरेट काम करती हैं, तेजी से काम करती हैं, ना-नुकर नहीं करतीं। मशीनों को वे ही मनुष्य हरा रहे हैं, जो हुनरमंद हैं। शेष सब पिछड़ रहे हैं।
जॉबलेस ग्रोथ ने रोजगार के अवसर घटाए हैं पर स्व-रोजगार बढ़ाया है। अब विरासत में मिला पैसा या यूनिर्वसटिी की भारी-भरकम डिग्री अमीर नहीं बनाती। लीक से हटकर सोच और उसे साकार करने के संकल्प, साहस और सूझबूझ के साथ स्टार्टअप स्थापित करने वाले युवा अमीर बन रहे हैं। पेटीएम के विजयकिशोर शर्मा से लेकर जेनेरिक आधार ब्रांड नेम से मेडिसिन की फ्रेंचाइजी श्रृंखला स्थापित करने वाले किशोर उम्र के अर्जुन देशपांडे इसके उदाहरण हैं। भारत का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मार्केट पैंतालिस हजार करोड़ रु पये से ज्यादा का हो गया है। देश में आज दो हजार से ज्यादा एआई स्टार्टअप्स और नब्बे हजार से अधिक आर्टिफिशियल इंटे. प्रोफेशनल्स हैं। नीति आयोग ने जिन क्षेत्रों के विकास के लिए एआई को चिह्नित किया और नेशनल टास्क फोर्स का गठन किया है, वे हैं-हेल्थकेयर, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट सिटी इंफ्रास्ट्रक्चर, मोबिलिटी और परिवहन। संक्षेप में कहें तो संसार को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने बदलाव की दहलीज पर खड़ा कर दिया है। इस बदलाव को न रोका जा सकता है, और न ही इसकी गति को थामा जा सकता है। बदलाव के इस भूचाल के साथ चलना ही अब हमारी नियति है। यही भविष्य है।
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