वैश्विकी : विदेश मंत्रालय के नये तेवर

Last Updated 07 Feb 2021 12:27:41 AM IST

किसान आंदोलन के बारे में कुछ विदेशी हस्तियों की टिप्पणी पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने जिस तरह की तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की उससे भारतीय कूटनीति का एक नया रूप उभरा है।


वैश्विकी : विदेश मंत्रालय के नये तेवर

सामान्य हालात में पॉप सिंगर रिहाना, मियां खलीफा, ग्रेटा थनबर्ग और अमेरिकी उपराष्ट्रपति की भांजी मीनाक्षी हैरिस को विदेश मंत्रालय नजरअंदाज कर देता। गैर सरकारी व्यक्ति ही नहीं बल्कि विदेशी सरकारें और उनकी संस्थाओं की आलोचना को विदेश मंत्रालय खास तवज्जो नहीं देता। पहले का अनुभव बताता है कि ऐसी आलोचनात्मक टिप्पणियों के बारे में विदेश मंत्रालय का प्रवक्ता दो-तीन पंक्तियों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता रहा है। यह पंक्तियां इस प्रकार होती थी-भारत एक जीवंत लोकतांत्रिक देश है। इसकी लोकतांत्रिक प्रणाली और संस्थाएं विधि के शासन के अनुरूप मामले से निपटने में सक्षम है। साथ ही प्रवक्ता टिप्पणीकर्ता को यह सलाह भी देता था कि वह भारत के घटनाक्रम के बारे में तथ्यों की सही जानकारी हासिल करे, लेकिन इस बार ऐसी औपचारिकता से अलग हटकर विदेश मंत्रालय ने एक विस्तृत बयान जारी किया, जो बहुत तल्ख था।
कूटनीति के जानकार विदेश मंत्रालय के इस रुख की समीक्षा कर रहे हैं। क्या वास्तव में विदेश मंत्रालय द्वारा ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का कोई औचित्य था? विदेश मंत्रालय के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों और पूरी सरकार का ‘इंडिया टुगेदर’ और ‘इडिया अगेंस्ट प्रोपेगैंडा’ जैसे हैशटैग के साथ जोड़ना क्या जरूरी था? सरकारी तौर पर इस बात का खुलासा नहीं किया गया कि भारत ने इतने बड़े पैमाने पर इतनी गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त क्यों की? एक कारण यह हो सकता है कि सरकार को विदेशों में स्थित अपने दूतावासों और वहां तैनात विदेश खुफिया एजेंसी रॉ के अधिकारियों से किसी भारत विरोधी मुहिम की जानकारी हासिल हुई होगी। ग्रेटा थुनबर्ग ने अपने ट्विटर हैंडल पर खालिस्तान समर्थक संगठन का जो दस्तावेज पोस्ट किया, वह ऐसी ही भारत विरोधी इस मुहिम का हिस्सा माना जा सकता है।

इतना ही नहीं यह भी संभव है कि सरकार के पास ऐसी जानकारी पहुंची हो कि कुछ विदेशी सरकारें किसान आंदोलन के बहाने भारत की अंदरूनी राजनीति में हस्तक्षेप करने में संलग्न हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत के मामलों में इस तरह की दखलंदाजी करते रहते हैं, लेकिन अब लगता है कि पाकिस्तान के अलावा भी कुछ ऐसे देश और विदेशी संस्थाएं हैं, जो भारत में अस्थिरता पैदा करने की फिराक में हैं।
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार और उसकी हिन्दुत्वादी विचारधारा पश्चिमी देशों के सरकारी और गैर सरकारी प्रतिष्ठानों की आंख में किरकिरी रही है। प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक शख्सियत और विश्व राजनीति में भारत के बढ़ते असर के कारण भारत को सीधे निशाना बनाना बहुत मुश्किल हो गया है। फिर भी भारत की घरेलू राजनीति में और समाज जीवन में अनेक ऐसी दरारें हैं, जिनका उपयोग असंतोष को हवा देने के लिए किया जा सकता है। ऐसा लगता है कि सरकार ने रिहाना और कुछ अन्य हस्तियों के बयानों को एक बड़े अभियान का प्रारंभिक या छोटा दिखने वाला संकेत माना हो। विदेश मंत्रालय ने अपनी सख्त प्रतिक्रिया के जरिये परदे के पीछे बैठी सरकारी और गैर सरकारी विदेशी ताकतों को यह संदेश दिया है कि यह उसे बर्दाश्त नहीं है। यह संदेश कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो को सीधे रूप से मुखातिब है तो इसमें अमेरिका के नये जो बाइडेन प्रशासन के लिए भी साफ संदेश है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विदेश मंत्रालय के बयान के बाद एक ट्वीट के जरिये कुछ ही शब्दों में नये भारत के नये तेवर का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि निहित स्वाथरे से प्रेरित भारत विरोधी मुहिम का भारत प्रतिकार करेगा। उन्होंने विश्व समुदाय को दो टूक शब्दों में बता दिया कि यह आत्मविश्वास से भरा नया भारत है जो माकूल जवाब देने का माद्दा रखता है।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों की दृष्टि से कमला हैरिस की भांजी मीनाक्षी हैरिस के ट्वीट का ही कोई कूटनीतिक असर हो सकता है। यह सही है कि हैरिस के भारत विरोधी ट्वीट के लिए उनकी मौसी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस जिम्मेदार नहीं है। फिर भी हैरिस सरनेम के कारण मीनाक्षी की टिप्पणियां मौसी के लिए सिरदर्द साबित हो सकती हैं।

डॉ. दिलीप चौबे


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