मीडिया : ट्विटर, मीडिया और धोखा
कहते हैं कि अमेरिकी पॉप सिंगर रिहाना को उस एक ‘ट्वीट’ के ढाई लाख डॉलर (अठारह करोड़ रुपये) मिले।
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इस ‘ट्वीट’ को ‘स्काईरॉकेट’ ने बनाया। ‘स्काईरॉकेट’ कनाडा के खालिस्तानपरस्त किन्हीं धालीवाल के ‘पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन’ के लिए काम करने वाली एजेंसी है। उसके प्रबंधकों में एक ‘पर्यावरण की ग्लोबल दुकान’ चलाने वाली कथित सोशल एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग है, जिसने भारत में ‘किसान आंदोलन चलाने के लिए’ एक ‘टूलकिट’ तैयार किया। छब्बीस जनवरी को दिल्ली में जो हुआ इसी टूलकिट के उकसावे पर हुआ बताया जाता है।
एक राष्ट्रवादी चैनल ने इस ‘टूलकिट टेररिज्म’ का भंडाफोड़ किया। फिर बाकी चैनलों ने आगे बढ़ाया कि ‘टूलकिट’ देश की एकता-अखंडता को तोड़ने की ‘खालिस्तानी साजिश’ थी और है। इस पर सरकार ने गूगल से ‘टूलकिट’ निर्माता का पता पूछा और गूगल ने संकेत दिया कि उसे उसी के मंच से किसी ने बनाया है। रिहाना और ‘टूलकिट’ का हमला एक साथ हुआ। पहले रिहाना ने अपने ट्वीट से ‘किसानों की परेशानियों पर सोचने के लिए’ दुनिया का आह्वान किया। उसके साथ ही ग्रेटा ने ‘टूलकिट कांड’ ऑनलाइन किया तो भारत के राष्ट्रवादी मीडिया ने इसे खतरनाक बताया जबकि किसानवादियों ने इसे ‘आपत्तिरहित’ बताया और यह तर्क तक दिया कि जब आपके बड़े नेता यहां से ट्रंप को जिताने के लिए बोल सकते हैं, तो रिहाना और ग्रेटा किसान आंदोलन के पक्ष में क्यों नहीं बोल सकते, लेकिन जब ‘पेड ट्वीट’ का और ‘पेड टूलकिट’ का षड्यंत्री चेहरा बेनकाब हुआ तो ऐसे लोग कहने लगे कि ऐसी स्थिति आपने क्यों आने दी कि कोई बाहर वाला बोले।
इसे कहते हैं चित्त भी मेरी पट भी मेरी और टैंया मेरे बाप का! लेकिन यहां हम ‘ट्विटर’ की नैतिकता की जगह एक मीडिया के रूप में ‘ट्विटर’ की उस ताकत की चरचा करना चाहते हैं, जिसने रिहाना के दस करोड़ से अधिक फोलोअर्स को ग्लोबल स्तर पर आंदोलित किया और भारत की राजनीति को भी विचलित किया। सेलीब्रिटीज की ऐसी सटीक टाइमिंग वाली ‘माइक्रोब्लॉंिगंग’ (ट्वीट) ऐसा ‘तेज मीडिया खेल’ है, जो कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक लोगों को ‘हिट’ करता है। सब जानते हैं कि ‘ट्विटर’ एक बार में अधिकतम 280 अक्षरों का माध्यम है। मुख्यधारा के मीडिया में आजकल यही सबसे बड़ा ‘न्यूज प्रोवाइडर’ है। अफसोस कि सेलीब्रिटीज व नेताओं के ट्विटर हैंडल-‘जितने अधिक फोलाअर्स, उतने ही अधिक कीमती’-के तर्क से काम करते हैं।
कहने की जरूरत नहीं कि रिहाना ने अपने दस करोड़ लोगों को, उनको बताए बिना, धालीवाल की ‘पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन’ के पैसे के बदले बेचा, उधर ग्रेटा ने अपने फोलाअर्स के लिए उपद्रवकारी ‘किसान टूलकिट’ बेचा। इसी क्रम में ‘पोर्न स्टार’ मियां खलीफा का भी नाम मीडिया में आया। नतीजतन किसान आंदोलन के मुद्दे न केवल ग्लोबल हो गए, बल्कि सेक्सी भी हो गए। यही इस आंदोलन का ‘उत्तर आधुनिक’ क्षण था, जिसे ‘अंधराष्ट्रवाद’ से परास्त नहीं किया जा सकता। यह बात ‘अंधराष्ट्रवादियों’ को समझनी चाहिए कि आज के ‘उत्तर आधुनिक दौर’ की ‘इंटरनेट तकनीक’ राष्ट्रों की सीमाएं नहीं मानती। ‘राष्ट्र पर खतरा है’ चिल्ला कर आप ऐसे ग्लोबल हल्लों को रोक नहीं सकते और हल्ला करने वाले भी गांठ बांध लें कि वे ‘क्षणिक कौंध’ के अतिरिक्त कुछ नहीं होते क्योंकि देश या राष्ट्र मिट्टी के लौंदें नहीं होते जो कुछ ‘छींटों’ से गल जाएं! और जैसा कि हमने देखा, दो दिन के हल्ले के बाद रिहाना और ग्रेटा का अभियान ठंडा हो गया और जैसे ही सरकार ने गूगल से पूछा कि ग्रेटा का ‘टूलकिट’ कहां बना तो गूगल को जवाब देना पड़ा कि वह उसी मंच से बना है।
उपद्रवकारी ‘टूलकिट’ के लिए कौन जिम्मेदार है? सवाल का जवाब जब मिले, तब मिले, यहां इतना ही कहना पर्याप्त है कि ऐसी घटनाओं में लिप्त होकर एक मीडिया के रूप में ‘ट्विटर’ ने अपने को ‘और अधिक अविसनीय’ बनाया है। सीमित अक्षरों में मार करने वाले ‘ट्विटर’ का स्वभाव ‘आत्मरतिवादी’ है। उसके जरिए आप ‘भड़क’ पैदा कर सकते हैं, ट्रोलिंग कर सकते हैं, ‘फेक न्यूज’ का बाजार गर्म कर सकते हैं, और ‘उपद्रवकारी’ हो सकते हैं। इसके साथ ही ट्विटर की ‘पोल’ भी जान लें कि आम लोग ट्विटर को भले अपने हाथ से मैनेज करते हों, लेकिन सेलीब्रिटीज के ट्िवटर को संभालने के लिए पीआर एजेंसियां होती हैं, और जो सेलीब्रिटीज को समझाती हैं कि अपने फोलोअर्स को बताए बिना आप उनको बेच कर करोड़ों कमा सकते हैं। बताइए ये ‘ट्विटर’ मीडिया है, या धोखा या कि वो दोनों?
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