बतंगड़ बेतुक : सरकार हटाओ किसान व लोकतंत्र बचाओ

Last Updated 07 Feb 2021 12:25:31 AM IST

झल्लन आते ही बोला, ‘ददाजू, इस सरकार से हलकान हो गये हैं, सूझ नहीं रहा कि करें तो क्या करें, न करें तो क्या न करें?’


बतंगड़ बेतुक : सरकार हटाओ किसान व लोकतंत्र बचाओ

हमने कहा, ‘सरकार ने तेरा कुछ छीन लिया है या तेरे घर से कुछ बीन लिया है?’ झल्लन बोला, ‘सरकार न तो हमारा कुछ छीन पाएगी न कुछ बीन पाएगी। हम तो सरकार से दो गज की दूरी बनाए रखते हैं और सरकार घर में घुस न आये इसलिए दरवाजे पर कुंडी चढ़ाए रखते हैं।’ हमने कहा, ‘तो फिर काहे फालतू की बातें परोस रहा है, काहे सरकार को कोस रहा है?’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, सरकार ने सारे किसानों की शांति को भंग कर दिया है, पूरे देश का माहौल हिंसक और अशांतिमय कर दिया है।’ हमने कहा, ‘अशांति तो किसान पैदा कर रहे हैं, जहां देखो वहां चक्का जाम कर रहे हैं। अब देख, गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में कैसा बवाल मचा दिया था, लाल किले पर तिरंगे की जगह निशान लहरा दिया था, फिर चाहे बैरीकेड हो या पुलिस, जिसने भी उन्हें रोकने की कोशिश की उस पर ट्रैक्टर चढ़ा दिया था। अशांति और उपद्रव तो किसानों की ओर से हो रहे हैं पर तेरे पेट में मरोड़ें सरकार को लेकर हो रहे हैं। अब देख, किसानों की वजह से बार्डर जाम हो रखे हैं और आने-जाने वाले लोग बुरी तरह हलकान हो रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप किसानों पर झूठी तोहमत लगा रहे हैं, किसान तो बेचारे एकदम शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे हैं। आने-जाने वाले लोगों को परेशान नहीं होना चाहिए, किसानों की शांति में अपनी शांति मिलाकर जिधर से रास्ता मिले उधर से निकल जाना चाहिए। और सच बात तो ये है कि आम लोगों का यातायात सरकार की वजह से रुक रहा है, किसान तो बेचारा शांतिप्रिय प्राणी है जो शांति के संस्कार के आगे झुक रहा है और आप जो गणतंत्र दिवस की बात कर रहे हैं तो किसानों ने तो अपना परेड अभियान बहुत शांति से चलाया था और जो भी उत्पात मचाया था वह सरकार ने मचाया था। किसानों ने अपनी राजधानी में आने के लिए बहुत ही शांति से बैरीकेड तोड़े, न उन्होंने कहीं डाइनामाइट लगाया, न कहीं बम फोड़े। अगर उन्होंने तलवारें लहराई तो बहुत शांतिपूर्ण तरीके से लहराई, अगर कहीं पुलिसवालों को कुछ चोटें भी आयीं तो वे भी बहुत शांति से आयीं। सैकड़ों पुलिसवाले घायल हुए तो बहुत शांति से घायल हो लिये पर सरकार ने अशांति-हिंसा के सारे आरोप किसानों पर जड़ दिये। इसीलिए हमको सरकार की किसान नीति पच नहीं रही है और सरकार की हिंसा हमें जच नहीं रही है।’

हमने कहा, ‘पर झल्लन, सरकार तो कह रही  है कि उसने जो कानून बनाए हैं वे किसान हित में हैं, किसानों को बहुत लाभ पहुंचाएंगे, इनसे किसानों की आमदनी दुगुनी हो जाएगी और उनके दिन बहुर जाएंगे। दूसरे, यह विधि विधान से बहुमत से चुनकर आयी सरकार है, कानून बनाना और लागू कराना उसका संवैधानिक अधिकार है।’ झल्लन झुंझलाया, ‘हमें नहीं मालूम था कि आप सरकार के चमचे हो जाएंगे, सरकार की बात पर भरोसा कर लेंगे और सरकार के अधिकार की बात इस तरह उठाएंगे। अरे, इस सरकार को किसने अधिकार दिया कि वह चुनाव में चुनकर आये और बहुमत से सरकार बनाए? इस सरकार को किसने हक दिया कि वह संसद में विधेयक लाये, उसे पारित कराके कानून बना ले और फिर उसे लागू भी करा ले? ऐसी सरकार तो किसान विरोधी ही नहीं लोकतंत्र विरोधी भी होती है और देश पर बोझ होती है।’ हमने कहा, ‘झल्लन, तू लोकतंत्र में रह रहा है फिर भी ऐसी जहालतभरी बात कह रहा है। अगर कोई सरकार पसंद नहीं है, सरकार का कोई काम पसंद नहीं है तो अगले चुनाव में जाओ, जीतकर आओ, वर्तमान सरकार को हटाओ, अपनी सरकार बनाओ और अपने हिसाब से अपनी रुचि के कानून बनाओ और उन्हें अपनी तरह से लागू करवाओ। यह कोई लोकतंत्र थोड़े ही है कि कुछ लोग अपने भीड़ बल से अपनी अक्खड़ जिद पर अड़ जाएं और सरकार को ब्लैकमेल करके अपनी बात जबर्दस्ती मनवाएं।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, कैसी बेतुकी बात बना रहे हो जो किसानों के मामले में चुनाव की बात उठा रहे हो। चुनाव में ही तो सबसे बड़ा दंगा है, चुनाव जीतना ही तो सबसे बड़ा पंगा है। सबसे ज्यादा अशांति चुनाव पैदा करते हैं इसीलिए हमारे शांतिप्रिय किसान भाई चुनावी जीत के चक्कर से बचते हैं। वे लोकतंत्र बचाने के लिए चुनावी जीत से दूर भागते हैं और उन्हें जो कुछ चाहिए वो बिना चुनाव के तुरत-फुरत मांगते हैं।’ कहकर झल्लन उठ लिया और चल दिया। हमने कहा, ‘ये क्या हुआ तुझे, क्यों अचानक उठ लिया और कहां चल दिया?’
वह बोला, ‘यहां से हम सीधे किसान भाइयों के आंदोलन में जाएंगे, उन्हें समझाएंगे और बताएंगे कि चुनी हुई सरकार हिंसा और अशांति फैलाती है, अहिंसक शांतिपूर्ण किसानों की दुश्मन हो जाती है और लोकतंत्र पर खतरा बनकर मंडराती है। इसलिए नया नारा लगाओ कि सरकार नाम की चील को उड़ाओ, इसके पंजे से कबूतर किसानों को बचाओ और देश में सरकारविहीन लोकतंत्र लाओ।’

विभांशु दिव्याल


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