सरोकार : पार्क व सड़कें कब होंगी औरतों के लिए सुरक्षित!
वेल्स में कुछ महिला धावकों ने कोविड-19 लॉकडाउन के बुरे नतीजों का खुलासा किया है।
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उनका कहना है कि कोविड के कारण वे खेल परिसरों में नियमित प्रशिक्षण नहीं कर पा रही थीं, इसलिए जब उन्होंने सड़कों और पार्कों में प्रशिक्षण की शुरुआत की, तो लोगों की अपमानजनक टिप्पणियों की शिकार हुई। एक ने तो यहां कहा कि एक बार तो उस पर एक शख्स ने शराब का खाली कैन तक फेंका था। यह सब तब हुआ, जब वेल्स प्रशासन ने लॉकडाउन के नियमों में ढिलाई दी, लेकिन इसका परिणाम हुआ कि इक्का-दुक्का लोग सड़कों और पार्कों में पहुंचे और खिलाड़ियों पर तंज कसने की शुरुआत हुई। किसी पर व्यायाम के चुस्त कपड़े पहनने पर फब्तियां कसी गई तो किसी के देह विन्यास पर लोलुप निगाहें फेरी गई।
वैसे सिर्फ महिला धावकों के लिए ही नहीं, हर महिला के लिए सड़कें और पार्क असुरक्षित हैं। वेल्स की राजधानी कार्डिफ के अलावा बाकी दुनिया में महिलाओं को ऐसे ही अनुभव होते हैं। इसीलिए यह अकेले खेल जगत का मसला नहीं। हाल में भारत में संयुक्ता हेगड़े नाम की अदाकारा को बेंगलुरु में ऐसे वाकये से रूबरू होना पड़ा था। संयुक्ता पार्क में वर्कआउट वाले कपड़ों में हूला हूपिंग कर रही थीं। तभी एक महिला और उसके कुछ जानने वालों ने उन्हें कोसना शुरू किया। उसे संयुक्ता के कपड़ों स्पोर्ट्स ब्रा और पैंट्स पर ऐतराज था। इस पर किसी ने चुटकी ली कि क्या आप वर्कआउट के लिए चादर लपेट कर पार्क में पहुंचेंगी। वैसे एक धावक ने इससे मिलता-जुलता काम किया भी। हना ब्रेयर नामक ब्रिटिश स्प्रिंटर ने दौड़ने के लिए ढीले-ढाले कपड़े पहनने शुरू कर दिए क्योंकि सड़कों पर प्रशिक्षण के दौरान उसे एक बुरा अनुभव हुआ था। एक गाड़ी वाला लगातार उसका पीछा करता रहा था।
सार्वजनिक स्थल अकेली औरतों के लिए अक्सर खासे असुरक्षित होते हैं जबकि इन्हें सुरक्षित बनाने की पूरी जिम्मेदारी किसी भी जगह प्रशासन की होती है। संयुक्ता और बेंगलुरु की बात चली तो अहमदाबाद की भी याद हो आई। 2017 में अहमदाबाद के बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम-जनमार्ग के एक अध्ययन में कहा गया था कि औरतें सुनसान रास्तों से बचने के लिए अक्सर लंबे रूट लेना पसंद करती हैं। बसें कम होने या खाली होने की वजह से ऑटोरिक्शा लेना पसंद करती हैं। अगर ऑटोरिक्शा का भाड़ा ज्यादा होता है, तो कोशिश करती हैं कि सहेलियों या परिचितों के साथ लिफ्ट ले लें। इसके बाद भी प्रशासक न जागें तो क्या कहा जाए। ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना ने इस सिलसिले में एक उदाहरण पेश किया है। इस शहर की योजना बनाने से पहले एक अध्ययन किया गया, जिसमें कहा गया कि शहरों में पुरु षों के मूवमेंट के पैटर्न का अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन औरतों के मूवमेंट का पैटर्न उनकी दिनभर की जिम्मेदारियों के हिसाब से तय होता है। अध्ययन से यह भी पता चला कि औरतें सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल आदमियों से ज्यादा करती हैं और आदमियों के मुकाबले पैदल भी ज्यादा चलती हैं। इसे देखते हुए योजनाकारों ने पैदल यात्रियों के हिसाब से शहर की योजना बनाई। महिलाओं के लिए रात को पैदल चलाना आसान हो, इसके लिए सड़कों पर अतिरिक्त लाइटें लगवाई। शहरों को महिलाओं के हिसाब से तैयार करने से उन्हें सुरक्षित बनाना आसान हो जाएगा है। खासकर कोविड-19 के बाद के शहर, भले ही वे किसी भी देश के हों। आखिर, पब्लिक स्पेस औरतों का भी अधिकार है।
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