विश्लेषण : समग्र राष्ट्र निर्माण का बजट

Last Updated 05 Feb 2021 12:10:24 AM IST

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 का बजट प्रस्तुत करते हुए गुरु रविंद्रनाथ टैगोर की यह पंक्ति सुनाई-उम्मीद ऐसी चिड़िया है जो अंधेरे में भी चहचहाती है।


विश्लेषण : समग्र राष्ट्र निर्माण का बजट

पूरे वर्ष में कोरोना के संकट ने जिस ढंग से दुनिया सहित भारत की अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचाया उसके कारण समाज के हर तबके के मनोविज्ञान में चिंता और निराशा सघन हुई। इन परिस्थितियों में बजट ऐसा चाहिए था जो लोगों के अंदर उनके और संपूर्ण देश के बेहतर भविष्य की उम्मीद पैदा करे, समस्याओं और चुनौतियां का वास्तविक मूल्यांकन कर उनसे निपटने और सामना करने के लिए साहसपूर्ण व्यावहारिक प्रभावी कदम उठाने का जोखिम ले..।
क्या मोदी 2 सरकार के इस दूसरे बजट को हम इस कसौटी पर खरा पा सकते हैं? तीन दिनों पूर्व संसद में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने बजट की दिशा का संकेत दे दिया था। साफ था गरीबों,किसानों के कल्याण, आम आदमी के जेब में खरीद के लिए धन आने, विकास के पथ पर सरपट दौड़ने का रास्ता तैयार करने और साहस के साथ जोखिम भरे सुधार सरकार के मूल लक्ष्य होंगे। इस समय कृषि कानून के विरोध में राजधानी में किसान संगठनों का एक आंदोलन चल रहा है। बड़े वर्ग का ध्यान इस ओर रहा होगा कि कृषि और किसानों से संबंधित क्या घोषणाएं होती हैं। विस्तार से समस्त प्रावधानों का यहां उल्लेख संभव नहीं है, लेकिन कृषि और ग्रामीण आधारभूत संरचना, कृषि के लिए कर्ज की राशि, फसल के न्यूनतम मूल्य, कृषि से संबंधित उद्योगों को प्रोत्साहित करने, नष्ट होने वाले 22 फसल को ऑपरेशन ग्रीन में शामिल करने आदि बातें निश्चय ही आकषर्क हैं।

यह पहली बार है जब कृषि आधारभूत संरचना के धन का उपयोग कृषि उत्पाद बाजार समिति यानी एपीएमसी के लिए भी किया जा सकेगा। जो लोग मंडियों को खत्म किए जाने की साजिश का आरोप लगा रहे थे उनको कम से कम तत्काल तो उत्तर मिल गया होगा। वैसे गांव कृषि और किसान को हम संपूर्ण व्यवस्था से अलग करके नहीं देख सकते। इसी तरह समाज और अर्थव्यवस्था के सम्पूर्ण हिस्सों को गांव, गरीब, किसानों से अलग नहीं कर करते। संतुलित बजट वही माना जाएगा जब समाज, अर्थ और व्यवस्था से जुड़े सभी पहलुओं को आवश्यकता, उपादेयता, अनुपात के अनुसार स्थान दिया जाए। राजनीति को अलग करके विचार करें तो यह स्वीकार करना होगा कि सीतारमण का बजट इन मायनों में संतुलित  है। यह पहले से साफ था कि स्वास्थ्य को पूरी तरह भारतीय परंपराओं को भी सशक्त करते हुए विस्तरीय बना देने के लिए सारे पहलुओं को समेटे हुए व्यापक योजना और प्रावधान होंगे। स्वास्थ्य का कुल बजट 2 लाख 23000 करोड़ है। यानी आवंटन रिकॉर्ड 127 प्रतिशत बढ़ा है। इसमें 64,180 करोड़ रु पये के बजट के साथ प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना शुरू होगी। बजट में गांव से शहर तक स्वास्थ्य ढांचे को ऐसा बना देने का लक्ष्य है, जिसमें सबको उचित इलाज और स्वस्थ रहने का आधार उपलब्ध हो सके। इस नाते भी यह बजट ऐतिहासिक है। विकसित देशों की कतार में खड़े होने के लिए भारत हर क्षेत्र से जुड़े आधारभूत ढांचा को वैश्विक स्तर पर लाना अपरिहार्य है। इस पर पहले भी फोकस हुआ है। मोदी सरकार ने आरंभ से ही इसकी पूरी कोशिश की है। पिछले बजट में 110 लाख करोड़ रु पये पांच वर्षो में खर्च की घोषणा हुई थी। कोरोना आघात से बाहर निकलने का संकेत देते हुए इस बजट में ऐसे प्रावधान हैं जिनसे 2020 की भी भरपाई हो जाए। 1.10 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड आवंटन तो केवल रेलवे के लिए हैं। भारतमाला परियोजना के लिए 3.3 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान है। रेलवे ने राष्ट्रीय रेल योजना 2030 बनाया है ताकि भविष्य के लिए पूरी तरह तैयार रेल प्रणाली बनाई जा सके। मार्ग आधारभूत संरचना के लिए आर्थिक गलियारे बनाए जाएंगे। सड़क परियोजनाओं को चुनावी राजनीति का तोहफा बताना आसान है, लेकिन क्या इसकी आवश्यकता नहीं थी? बंगाल में 25 हजार करोड़ रुपये से हाईवे का निर्माण, 34 हजार करोड़ रु पये असम में नेशनल हाईवे पर, 65 हजार करोड़ रुपये से केरल में 1100 किमी नेशनल हाईवे  का निर्माण आदि को चुनावी जनिरए से देखा जा सकता है। किंतु तमिलनाडु में तो भाजपा बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं कर रही होगी। वहां भी 3500 किमी नेशनल हाईवे परियोजना के तहत 1.03 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा है। इसे देश की आवश्यक आधारभूत संरचना को वर्तमान एवं भविष्य के अनुरूप सशक्त करने की दृष्टि से देखना उचित होगा। आधारभूत ढांच के क्षेत्र में केवल निर्माण और विस्तारों की ही घोषणाएं नहीं है। डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट यानी विकास वित्तीय संस्थान की जरूरत बताते हुए एक विधेयक लाने की घोषणा है। सार्वजनिक आधारभूत ढांचा के मुद्रीकरण पर ध्यान देने की घोषण है। इसके लिए नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन शुरू होगी। इसका एक डैशबोर्ड बनेगा ताकि इस मामले में हो रही तरक्की को देखा जा सके।
निस्संदेह, कोई भी बजट सबको संतुष्ट नहीं कर सकता। पर जरा दूसरे नजरिए से देखिए। ऐेसे संकट के काल में 34.83 लाख करोड़ का बजट असाधारण साहस का परिचय देने वाला है। आप कोरोना काल में वित्त मंत्री द्वारा घोषित तीन पैकेजों, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना तथा रिजर्व बैंक की योजना को मिला दीजिए तो 20 लाख करोड़ से ज्यादा की राशि सरकार पहले ही दे चुकी है। इनको साथ मिलाकर देखिए और राजनीतिक नजरिए से परे होकर विचार करिए।
कई लोग अलग-अलग विषय उठाकर बजट की हमेशा आलोचना करते हैं। बजट को समग्रता में देखने से ही आप सही निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं, खंड-खंड में विचार करने से नहीं। उदाहरण के लिए जो पूछ रहे हैं कि इसमें रोजगार के लिए क्या किया गया है उनको ध्यान रखना चाहिए कि आधारभूत संरचना की जितनी परियोजनाएं हैं, ग्रामीण आधारभूत संरचना या शहरी, स्वच्छ जल मिशन, मिशन पोषण कार्यक्रम, शिक्षा क्षेत्र के कदम..सबमें बिना घोषणा के करोड़ों रोजगार के अवसर पैदा होंगे।  इस तरह कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि कोरोना संकट में पहुंची अर्थव्यवस्था को, निराश-उदास-हताश भारतीय मानस को तथा भारत को लेकर दुनिया की धारणा को फिर से उम्मीद, विश्वास और सकारात्मक लक्ष्यों की पटरी पर दौड़ाने की दृष्टि से यह बजट याद किया जाएगा।

अवधेश कुमार


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