स्वदेशी खिलौने : आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि

Last Updated 05 Feb 2021 12:08:02 AM IST

बचपन के खेल, मूर्त या अविष्कृत, एक बच्चे के ज्ञान संबंधी विकास और प्रारंभिक समाजीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।


स्वदेशी खिलौने : आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि

वे बच्चों को बॉक्स के बाहर सोचने की अनुमति देते हैं, उनकी सृजनात्मकता और कल्पनाशील क्षमताओं को आग में झोंक दिया जाता है इसलिए, कोई आश्चर्य नहीं है (और यह वाकई स्वागतयोग्य कदम है) कि नई शिक्षा नीति, 2019 में बच्चों के लिए खिलौनों पर जोर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में खिलौनों के महत्त्व पर जोर दिया है।
भारत का लगभग हर राज्य और क्षेत्र अपने यहां के खिलौनों पर गर्व कर सकता है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ते रहे हैं। वे आम तौर पर अपने क्षेत्र की अनुकूल स्थिति का लाभ उठाते हैं: चाहे वह समृद्ध वस्त्र हों, लकड़ी का कठिन काम हो या मिट्टी के पारंपरिक बर्तनों को परिश्रम से बनाना हो। आधुनिक खिलौनों के लिए नई जानकारी प्राप्त करने के अलावा, भारत की विभिन्न स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं की इस अंतर्निहित क्षमता का राष्ट्रव्यापी पैमाने पर विस्तार करने की संभावना है, जो भारत को एक प्रमुख वैश्विक निर्माता और खिलौनों के निर्यातक के रूप में प्रस्तुत कर सकती है। इस क्षमता को पहचानते हुए, केंद्र सरकार ने 14 केंद्रीय मंत्रालयों की सलाह से खिलौनों के लिए एक 17 सूत्रीय राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की है, जिसमें 13 निर्धारित हस्तशिल्प खिलौना समूहों में खिलौना क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यकता आधारित बेहतर कार्ययोजना शामिल होगी।

कार्ययोजना में स्वदेशी खिलौनों की सार्वजनिक खरीद, ‘मेक इन इंडिया’ और स्वदेशी खिलौना समूहों को बढ़ावा देना, उपभोक्ता जागरूकता अभियान चलाना, गुणवत्ता नियंत्रण लागू करना और उद्योग में निवेश को बढ़ावा देना भी शामिल है। इस कार्ययोजना के तहत, कपड़ा मंत्रालय ने 27 फरवरी से 2 मार्च 2021 के बीच ‘राष्ट्रीय खिलौना मेले’ का भी प्रस्ताव रखा है। भारतीय खिलौना उद्योग लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। यह स्थानीय और वैश्विक दोनों क्षेत्रों में विनिर्माण के जबरदस्त अवसर प्रस्तुत करता है। प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपलब्ध कच्चे माल (प्लास्टिक, पेपरबोर्ड और टेक्सटाइल; भारत पॉलिएस्टर और संबंधित फाइबर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है) की व्यापक उपलब्धता आयात की आवश्यकता को अमान्य घोषित करके उद्योग के फायदेमंद है और इससे, विनिर्माण लागत कम होती है। यह क्षेत्र के 4,000 निर्माताओं के लिए महत्त्वपूर्ण है, जिनमें से 75 प्रतिशत माइक्रो यूनिट हैं और 22 प्रतिशत छोटे और मध्यम उद्यम हैं। दूसरा, भारत में बड़ी संख्या में निर्माताओं का होना इस बात की गवाही देता है कि यहां बड़े पैमाने पर खिलौनों का निर्माण करने के तकनीकी ज्ञान का बड़ा जाल है। क्षेत्र में अंतर्निहित विविधता वैश्विक खिलौना मांग के लिए एक व्यवहार्य वैकल्पिक स्रोत बनने की भारत की क्षमता को रेखांकित करती है। अंत में, विभिन्न बाजार मूल्य और परिवर्तन विनिर्माण लक्ष्यों के रूप में भारत की बढ़ी हुई बाजार अनुकूलता का संकेत देते हैं। घरेलू निर्माताओं की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, संबद्ध क्षेत्रों ने भी आवश्यक कच्चे माल और स्वचालन उपकरण तेजी से प्रदान करने शुरू कर दिए थे। इस प्रकार, इस क्षेत्र में मौजूदा और नये उद्यमियों का समर्थन करने के लिए, राज्य सरकारों ने सॉफ्टवेयर या अन्य उपकरणों से जुड़ी सुविधाओं के साथ खिलौना क्लस्टर, आसान कच्चे माल और बंदरगाह तक पहुंच और आवश्यक जांच प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं या स्थापित कर रही हैं। निर्यात के मामले में, भारत के खिलौना निर्यात में महाराष्ट्र 32.6 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश और कर्नाटक क्रमश: 19.3 और 13.6 प्रतिशत के साथ सबसे आगे हैं। इस क्षेत्र के अन्य उभरते राज्यों में तमिलनाडु, गुजरात, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश शामिल हैं।
मुख्य  रूप से ये राज्य सरकारें पूंजीगत निवेश सब्सिडी में 30 प्रतिशत तक की पेशकश कर रही हैं, जो सभी उत्पादकों के लिए एक आकषर्क प्रोत्साहन है। भारत को डिजिटल बनाने पर बढ़ता ध्यान खिलौने उद्योग के लिए सम्भावनाएं प्रकट करता है। एक एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म कई स्वदेशी खिलौना समूहों के लिए ज्ञान और पहुंच बढ़ा सकता है। मांग में यह वृद्धि उन हजारों पारंपरिक हस्तकला कारीगरों की सहायता करेगी, जिन पर पारंपरिक खिलौना उद्योग टिका हुआ है। खिलौना उद्योग देश के कई आर्थिक पहलुओं का समर्थन करता है। उद्योग के स्थानीयकरण के लिए यह एकीकृत दृष्टिकोण सही मायने में भारत की आत्मनिर्भरता को प्रकट कर सकता है।

आरुषि अग्रवाल
इन्वेस्ट इंडिया में शोधकर्ता


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