चौरी-चौरा घटना का शताब्दी वर्ष : स्वतंत्रता आंदोलन का अहम मोड़
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में चौरी चौरा घटना की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसने अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला कर रख दी थीं।
![]() चौरी-चौरा घटना का शताब्दी वर्ष : स्वतंत्रता आंदोलन का अहम मोड़ |
चौरी चौरा घटना के 100 वर्ष 4 फरवरी, 2022 को पूरे होने जा रहे हैं। चौरी चौरा घटना की पृष्ठभूमि में रौलट एक्ट, 1919 का विरोध एवं खिलाफत आंदोलन का समर्थन था। इनके प्रतिक्रियास्वरूप विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा स्वराज की मांग को लेकर गांधी जी का असहयोग आंदोलन प्रारंभ हुआ और पूरे देश में अंग्रेजी सामानों का बहिष्कार किया जाने लगा। इसी क्रम में संयुक्त राज्य उत्तर प्रदेश के विदेशी कपड़ों एवं अन्य वस्तुओं के बड़े बाजार सहजनवां तथा चौरी चौरा में भी आंदोलन चलाने की योजना थी।
इसी कड़ी में 2 फरवरी, 1922 को चौरी चौरा के भोपा बाजार में शराब की एक दुकान बंद कराने, खाद्यान्नों की वढ़ती कीमतों के विरोध और विदेशी कपड़ों एवं वस्तुओं के बहिष्कार के लिए कुछ लोगों ने प्रदशर्न शुरू किया जिसका नेतृत्व सेना से सेवानिवृत्त सैनिक भगवान अहीर कर रहे थे। चौरी चौरा के थानाध्यक्ष गुप्तेश्वर सिंह सहित उनके पुलिस बल ने भगवान अहीर सहित कुछ और प्रदशर्नकारियों को लाठियों से पीटा और गिरफ्तार कर चौरी चौरा थाने की जेल में डाल दिया। परिणामस्वरूप 4 फरवरी, 1922 को अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति के साथ ही गिरफ्तार प्रदशर्नकारियों की रिहाई की मांग को लेकर बाजार एवं थाने पर और अधिक उग्र प्रदशर्न किया गया। थानाध्यक्ष गुप्तेश्वर सिंह ने उनको तितर-बितर करने के लिए पहले हवाई फायरिंग की परंतु इससे प्रदशर्नकारियों पर कोई असर नहीं हुआ तो पुलिस ने गोलियां चला दीं जिससे तीन प्रदशर्नकारियों की मृत्यु हो गई। इस पर प्रदशर्नकारी और अधिक उग्र हो गए और पत्थरबाजी करने लगे। थानाध्यक्ष एवं उनके सहयोगी सभी पुलिसकर्मी बेकाबू उग्र भीड़ को अपनी ओर बढ़ता देख भाग कर थाने के अंदर छुप गए। अपने तीन साथियों की मृत्यु से गुस्साए चार हजार से ज्यादा प्रदशर्नकारियों की भीड़ (जिसमें मुख्यत: किसान और मजदूर शामिल थे) ने सूखे सरपत और मूंज में मिट्टी का तेल डालकर आग जला कर उससे पूरे थाने में आग लगा दी। इसमें थानाध्यक्ष गुप्तेश्वर सिंह सहित 23 पुलिसकर्मिंयों की मृत्यु हो गई। चौरी चौरा पुलिस बल के इतनी बड़ी संख्या में मारे जाने से हिली ब्रिटिश हुकूमत ने चौरी चौरा कस्बे सहित इर्द-गिर्द माशर्ल लॉ लगा दिया तथा सैकड़ों लोगों को आसपास के गांव से गिरफ्तार किया।
इस बीच, महात्मा गांधी चौरी चौरा घटना से बहुत क्षुब्ध हुए। उनका मानना था कि स्वराज की प्राप्ति के लिए अहिंसा ही उपयुक्त मार्ग है। हिंसा का मार्ग अपनाया जाना सर्वथा गलत है। उन्हें प्रतीत हुआ कि अभी देशवासी स्वतंत्रता संग्राम के लिए समुचित रूप से प्रशिक्षित नहीं हुए हैं। अत: जनमानस को बिना समुचित प्रशिक्षण दिए असहयोग आंदोलन छेड़ देने के लिए उन्होंने अपने आप को दोषी ठहराया। उन्होंने चौरी चौरा घटना को अपराध करार दिया। इस घटना के विरुद्ध उन्होंने पांच दिन का अनशन रखा तथा अंततोगत्वा 12 फरवरी, 1922 को बारदोली अखिल भारतीय कांग्रेस सम्मेलन में असहयोग आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर दी। गांधी जी के फैसले से कांग्रेस के चोटी के कई नेता बहुत ही असंतुष्ट एवं आहत हुए। इनमें प्रमुखत: मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास, एनसी केलकर, जीएस घरपड़े, एस श्रीनिवासन जैसे नेता शामिल थे। इन नेताओं ने कांग्रेस से अपना संबंध तोड़ कर अपनी एक अलग पार्टी ‘स्वराज पार्टी’ बना ली। लाला लाजपत राय तक ने कह दिया था कि ‘जितना बड़ा व्यक्तित्व उसी के अनुपात में आंदोलन को धक्का लगा’। परंतु स्वराज पार्टी बन जाने के पश्चात भी गांधी जी के महत्तर कद के कारण बाद में भी स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर उन्हीं के हाथ में रही।
इसी बीच 10 मार्च को गांधी जी को गिरफ्तार करके छह साल के लिए जेल में डाल दिया गया परंतु जेल में उनकी तबीयत खराब हो जाने के कारण दो साल के भीतर ही उन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने छोड़ दिया। इधर ब्रिटिश हुकूमत ने चौरी चौरा कस्बे और इर्द-गिर्द के गांवों से कुल लगभग 228 लोगों को गिरफ्तार कर आगजनी, लूट और हत्या का मुकदमा चलाया। इनमें से छह लोगों की मृत्यु पुलिस कस्टडी में ही हो गई। गोरखपुर जिला एवं सेशन कोर्ट में लगभग आठ महीने चले इस मुकदमे में गोरखपुर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने 172 अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाई। तीन अभियुक्तों को दो-दो साल की सजा सुनाई तथा 47 लोगों को संदेह के लाभ में बरी कर दिया।
इस फैसले से पूरे देश में वृहत स्केल पर विरोध प्रदशर्न शुरू हो गया। खास करके वामपंथी संगठनों में विशेष विरोध हुआ। एमएन राय जैसे वामपंथी कम्युनिस्ट नेता ने इस फैसले को विधि-सम्मत हत्या करार दिया। फैसले के खिलाफ जिला कांग्रेस कमेटी, गोरखपुर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अभियुक्तों की तरफ से अपील दाखिल की। इस अपील की पैरवी महामना मदन मोहन मालवीय ने की। तीस अप्रैल, 1923 को इलाहाबाद हाई कोर्ट (मुख्य न्यायाधीश सर ग्रिनवुड पीयर्स एवं न्यायमूर्ति पीगट) ने अपना फैसला सुनाया जिसमें 19 अभियुक्तों की फांसी की सजा बरकरार रखी तथा 110 को आजीवन कारावास एवं 38 को संदेह का लाभ देकर छोड़ते हुए शेष को क्रमश: आठ साल, पांच साल एवं दो साल की सजाएं सुनाई। 1923 में ब्रिटिश हुकूमत ने चौरी चौरा घटना में शहीद हुए पुलिसकर्मिंयों की याद में थाने परिसर में स्मारक बनवाया जिसमें शहीद सभी 23 पुलिसकर्मिंयों के चित्र और नाम दर्ज किए गए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने चौरी चौरा की घटना के साठ साल बाद इन शहीदों की स्मृति में शहीद स्मारक भवन (शहीद पुलिस स्मारक के विपरीत दिशा में) का छह फरवरी, 1982 को शिलान्यास किया था, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. नरसिंह राव ने 19 जुलाई, 1993 को इसका लोकार्पण किया। यह शहीद स्मारक मूलत: शहीद स्मारक समिति के प्रयासों का भी फल है, जिसने शहीद स्मारक निर्माण के लिए 13,500 रुपये चंदे के माध्यम से इकट्ठे किए थे। यह स्मारक 12.2 मीटर ऊंचा है। फांसी पर चढ़ाए गए उन्नीस प्रदशर्नकारियों के नाम इस शहीद स्मारक पर उद्धृत हैं।
| Tweet![]() |