मध्यम वर्ग : नहीं मिली कोई राहत
सरकार ने पिछले वर्ष करीब 30 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी, उसमें मध्यम वर्ग के लिए कुछ खास नहीं था।
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इसलिए मध्यम वर्ग ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के तीसरे बजट में टैक्स छूट मिलने की उम्मीदें लगा रखी थीं। लेकिन बजट 2021-22 से मध्यम वर्ग को करारा झटका लगा है।
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट में न तो इनकम टैक्स में अतिरिक्त टैक्स छूट की घोषणा की गई और न ही टैक्स स्लैब में कोई बदलाव किया गया। सिर्फ 75 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को रिटर्न फाइल करने से राहत मिली। कई वर्षो से मांग की जा रही थी कि बेसिक टैक्स छूट सीमा 2.5 लाख से बढ़ाकर 5 लाख कर देनी चाहिए। सरकार ने वर्ष 2019-20 के बजट में 2.5 लाख से 5.5 लाख रुपये तक की आय वालों के लिए 12,500 की विशेष छूट देकर 5 लाख तक की आय को कर-मुक्त करने की कोशिश की थी। लेकिन स्थायी रूप से 5 लाख तक की आय को कर- मुक्त बनाने की मांग अभी अधूरी ही है। एक और मांग की जा रही थी कि स्टैंर्डड डिडक्शन को बढ़ाया जाए। अभी तक ऐसा डिडक्शन 50 हजार रुपये तक मिलता है। इसे बढ़ाकर 75 हजार रुपये करने की मांग की जा रही थी परंतु बजट में मध्यम वर्ग को यहां भी निराशा ही हाथ लगी। इसी तरह आयकर की धारा 80-सी के तहत मिलने वाली छूट को बढ़ाकर 1.5 लाख से 3 लाख रुपये तक करने की मांग की जा रही थी लेकिन इसमें भी कुछ नहीं हुआ।
मध्यम वर्ग उम्मीद लगाए बैठा था कि कोरोना महामारी के दौरान बढ़े स्वास्थ्य खचरे के मद्देनजर सरकार की ओर से कोरोना वायरस से संक्रमित होने पर हॉस्पिटलाइजेशन से जुड़े खचरे पर टैक्स में राहत मिल सकती है, लेकिन बजट में इस पर भी कोई घोषणा नहीं की गई। टैक्स के नियम 80 डीडीबी में कोरोना महामारी को शामिल नहीं किया गया। टैक्स नियमों के अनुसार न्यूरो संबंधी बीमारी, कैंसर, एड्स समेत कई बीमारियों के लिए सेक्शन 80 डीडीबी के तहत सलाना 40 हजार रुपये तक का टैक्स डिडक्शन लाभ मिलता है।
अर्थव्यवस्था में चल रही मंदी को देखते हुए मांग पक्ष पर ध्यान देना आवश्यक है। भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना काल के पूर्व में भी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही थी। पूर्व में भी सरकार ने मांग की तुलना में आपूर्ति पक्ष पर ध्यान दिया था। उदाहरण के लिए पहले भी सरकार ने आरबीआई के अधिशेष का प्रयोग कर कॉरपोरेट टैक्स में एक लाख 45 हजार करोड़ रुपये की छूट दी थी, जबकि सरकार को उस समय भी कॉरपोरेट टैक्स की तुलना में आयकर छूट पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था। कॉरपोरेट टैक्स में छूट का प्रयोग उद्योगपतियों ने केवल बैलेंस शीट सुधारने में किया। इस कारण अर्थव्यवस्था को इसका लाभ नहीं मिला। बाजार में जब मांग उत्पन्न होगी, तो स्वाभाविक रूप से उत्पादन में वृद्धि होगी। इससे रोजगार सृजन भी होगा और सरकार की आय में अप्रत्याशित वृद्धि भी होगी।
जब मध्यम वर्ग ईमानदारी से टैक्स का भुगतान करता है, जो भी वह सरकार की वरीयता में क्यों नहीं है? सरकार कह रही है कि आधारभूत संरचना जैसे सड़क निर्माण, ऊर्जा इत्यादि क्षेत्रों को वरीयता दी गई है, लेकिन इन क्षेत्रों में अब पहले की तरह रोजगार नहीं हैं। ये सब अधिकांशत: मैकेनाइज्ड हो चुके हैं। इनमें सारा काम मशीन से होता है। सरकार को मांग बढ़ाने के लिए मध्यम वर्ग की क्रय क्षमता में वृद्धि करनी चाहिए। इसके लिए मध्यम वर्ग को टैक्स छूट मिलनी चाहिए जिससे कि वे बचत के रुपये खर्च कर सकें। मांग से ही रोजगार सृजन में तीव्रता आएगी। इससे सरकार के राजस्व आय में भी वृद्धि होती। अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण सरकार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में लगातार गिरावट आ रही है, जबकि सरकार के खर्च में लगातार वृद्धि हो रही है। दरअसल, वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा 9.5% था, जो अगले वर्ष 6.8% रहने की संभावना है।
भारत में सकल सरकारी ऋण में भी तेजी से वृद्धि हुई है। यह चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद के 90% तक पहुंच चुका है। यही कारण है कि सरकार ने मध्यम वर्ग कोई राहत प्रदान नहीं की है परंतु कोरोना काल में मध्यम वर्ग भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। मध्यम वर्ग को राहत प्रदान करके ही अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाया जा सकता है। मध्यम वर्ग की मजबूत क्रय क्षमता ही अर्थव्यवस्था के वैसे नकारात्मक दुष्चक्र को तोड़ सकती है, जो आर्थिक मंदी का वाहक है।
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