महानिर्वाणी अखाड़े के नागा साधु-संतों ने बुधवार से पंचकोसी यात्रा की शुरुआत की। यह यात्रा पांच दिनों तक चलेगी। लगभग 500 नागा साधु इसमें शामिल होंगे।

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यात्रा वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट से शुरू होकर वहीं समाप्त होगी।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, पंचकोसी यात्रा प्रभु श्री राम और पांडवों द्वारा भी की गई थी। अब यह यात्रा महानिर्वाणी अखाड़े के साधु संतों द्वारा पुनः शुरू की गई है, जो विश्व के कल्याण के लिए प्रार्थना करेंगे।
महानिर्वाणी अखाड़ा के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने न्यूज एजेंसी को बताया कि पंचकोसी यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। यात्रा की शुरुआत प्रयाग के महाकुंभ से होती है, जो 2025 में अलौकिक और दिव्य अनुभव रहा। पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सभी श्री पंच परमेश्वर के सचिव भगवान कपिल महा मुनि, जो हमारे इष्ट देवता हैं, उनके विग्रह के साथ हम लोग काशी आते हैं। सबसे पहले महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ का अभिषेक होता है। इसके बाद अंतरगिरि यात्रा की जाती है। फिर हम लोग शुक्ल पक्ष में पंचकोसी यात्रा करते हैं, जो एक प्राचीन परंपरा है। आज इस यात्रा का प्रारंभ हो रहा है।
उन्होंने कहा कि काशी खुद में एक अलौकिक और दिव्य नगरी है, जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति काशी में एक दिन भी रहता है, उसे एक साल के बराबर पुण्य मिलता है। काशी में एक दिन का निवास मनुष्य के जीवन को समृद्ध कर देता है। हालांकि आजकल के व्यस्त जीवन में लोगों के पास समय नहीं है, फिर भी महानिर्वाणी अखाड़ा ने इस परंपरा को जीवित रखा है।
उन्होंने कहा कि इस यात्रा में लगभग 1,000 से 1,200 महात्मा पैदल चलकर भगवान कपिल के आशीर्वाद से यात्रा करते हैं। यात्रा में विभिन्न धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल जैसे रामेश्वर महादेव, कपिल धारा, आदि पड़ाव होते हैं, जहां वैदिक ब्राह्मणों द्वारा पूजन होता है। हम इस यात्रा में भगवान कपिल की दिनचर्या का पालन करते हैं और प्रातः आहार के बाद यात्रा शुरू होती है।
उन्होंने कहा कि इस यात्रा में बहुत से संत बिना जूते या चप्पल के चलते हैं। हालांकि शास्त्रों में कहा गया है कि अगर कोई बीमार है या कोई विशेष परिस्थिति हो तो वाहन का उपयोग भी किया जा सकता है। इस परंपरा का पालन श्री पंचायत अखाड़ा के मान्य गुरुओं द्वारा किया जाता है। अखाड़ा की स्थापना को 1,213 साल हो चुके हैं और यह परंपरा आज भी निरंतर चल रही है, आगे भी जारी रहेगी। संतों का कार्य ही दुनिया में शांति और सद्भाव फैलाना है। हम सबकी प्रार्थना है कि पूरे विश्व में शांति और खुशहाली हो और सनातन धर्म की जय हो। सभी लोगों के सुख और कल्याण की कामना की जाती है।
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