उद्योग-व्यापार : पौ-बारह होने की आस
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के तीसरे बजट की सबसे बड़ी चुनौती 9.5 फीसद के आंकड़े में निहित है। बजट में 2020-21 में राजकोषीय घाटे का अनुमान 9.5 फीसद लगाया गया है।
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दूसरी तरफ महामारी पीड़ित वर्ष में जीडीपी के जीरो से भी नीचे गिर जाने की अनुमानित दर भी 9.5 फीसद ही आंकी जा रही है। इस विषम आंकड़े से उनके पास उपलब्ध बेहद सीमित संसाधनों का बखूबी अंदाज लग रहा है। इसी वजह से बजट भाषण में रक्षा जैसी संवेदनशील मद का उन्होंने जिक्र ही नहीं किया। जल एवं स्वच्छता विभाग की बजट राशि को स्वास्थ्य सेवा के बजट में जोड़ कर उसे सुर्खरू दिखाने की कोशिश भी की। अलबत्ता, कर वसूली की प्रक्रिया आसान करने और मनरेगा सहित ग्रामीण विकास योजनाओं पर खर्च बढ़ाने की बजटीय प्रवृत्ति मंदी का प्रभाव घटाने में मददगार हो सकती हैं।
देश के आम लोगों ने कोविड-19 महामारी की मार से बचने को पलायन, बेरोजगारी, अशिक्षा, कुपोषण, संक्रमण की पीड़ा एवं मौत का कहर बड़े जीवट से झेला है। अब उन्हें अनुदान नहीं, बल्कि रोजगार चाहिए ताकि अपनी गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर लाकर बच्चों को फिर से स्कूल भेज सकें। वित्त मंत्री के अनुसार बुनियादी ढांचे में 5,54,000 करोड़ रुपये तथा ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास कोष एवं सूक्ष्म सिंचाई परियोजना के लिए करीब 45,000 करोड़ रुपये तथा उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन पैकेज खासकर प्रवासियों के लिए ‘एक देश-एक राशन कार्ड’, 35,000 करोड़ रुपये खर्च कर वैक्सीन से टीकाकरण आदि उपाय उत्पादन एवं रोजगार बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। मनरेगा के लिए 72,304 करोड़ रुपये का आवंटन भी इस दृष्टि से सकारात्मक है। सरकारी बैंकों में 20,000 करोड़ रुपये पुन: पूंजीकरण का बजटीय इंजेक्शन एवं डूबत खाते की ऋण राशियों के लिए अलग संस्थाओं का गठन वित्तीय क्षेत्र की धूल झाड़ने में सहायक होंगे। डूबी रकम कुल ऋणों के 15 फीसद से ज्यादा हो चुकी है। राजकोषीय घाटे और जीडीपी में गहरी गिरावट के दुतरफा शिकंजे में फंसी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार ने रेलवे स्टेशनों-ट्रेनों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, बैंकों, एलआईसी, अन्य सरकारी उद्यमों और सरकारी जमीन के विनिवेश का महत्त्वाकांक्षी खाका पेश किया है। उम्मीद है कि सरकार 2021-22 में तो विनिवेश से 1,75,000 करोड़ रुपये उगाहने का अपना लक्ष्य पूरा कर ही लेगी।
बजट में पेट्रोल पर ढाई रुपये एवं डीजल पर चार रुपये चुंगी तथा अनेक वस्तुओं अथवा उनके कलपुजरे पर सीमा शुल्क की दर बढ़ाने से कपड़े, अनाज-दाल-सब्जी-तेल, मोबाइल फोन और बस-रेल यात्रा महंगे हो सकते हैं। 2020 के आखिरी 10 महीनों में गरीबी रेखा के नीचे पहुंचने की आशंका वाले 15 करोड़ भारतीयों के वर्ग को महंगाई चुभ सकती है। हालांकि मरहम लगाने को उज्जवला योजना के तहत और एक करोड़ घरों में मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन देने की घोषणा की गई है। अनुमान है कि ज्यादातर कनेक्शन इसी साल विधानसभा चुनाव वाले तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, असम एवं पुड्डुचेरी राज्यों में बांटे जाएंगे।
रेलवे के लिए 1,10,055 करोड़ रुपये आवंटित हैं, जिसमें 1,07,100 करोड़ पूंजीगत व्यय होगा। बाकी रकम बहुत थोड़ी सी होगी जिससे रेलवे स्टेशनों, रेलगाड़ियों आदि की देखभाल में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ने के आसार हैं। बुनियादी ढांचे के सभी प्रोजेक्ट लंबी अवधि यानी तीन से पांच साल के हैं, इसलिए उनमें इस साल रोजगार के सीमित ही अवसर निकलते प्रतीत हो रहे हैं। रक्षा बजट के उल्लेख से बचीं वित्त मंत्री ने 3,47,088 करोड़ आवंटित किए हैं। चालू माली साल में यह राशि 3,43,822 करोड़ रुपये है। इसीलिए वित्तीय आवंटन नहीं बढ़ने पर उंगली उठी हैं। वित्त मंत्री के अनुसार इसमें से 20 फीसद राशि पूंजीगत खर्च के लिए आरक्षित है। निजी वाहनों को 20 साल तथा व्यावसायिक वाहनों को 15 साल में निष्प्रयोगी घोषित करने से करीब एक करोड़ निजी एवं व्यावसायिक वाहन बेकार हो सकते हैं। इसलिए नये वाहनों की मांग पैदा होगी। उससे ऑटामोबील उद्योग तथा बैंकों से लोन उठान में तेजी आ सकती है। इससे प्रदूषण में 33 फीसद कमी आने तथा एवं सड़क दुर्घटना भी घटने के आसार हैं। वहनीय आवास परियोजनाओं एवं किराये के प्रयोजन वाली आवास परियोजनाओं के लिए लोन पर अतिरिक्त 1.5 लाख रुपये तक कर छूट की मियाद और एक साल बढ़ाने से रियल एस्टेट कारोबार और दिहाड़ी रोजगार बढ़ेगा। बीमा क्षेत्र में सरकार आईपीओ लाकर जीवन बीमा निगम में विनिवेश और बीमा कारोबार में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 74 फीसद तक बढ़ा रही है। इससे विदेशी कंपनियों को बीमा क्षेत्र में मालिकाना हक मिलेगा। कृषि चुंगी तथा डीजल, पेट्रोल महंगे होने से महंगाई बढ़ने की सुगबुगाहट है। राजमागरे, हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों का निजीकरण और डीजल, पेट्रोल महंगा करने से यात्रा महंगी होगी। हालांकि महामारी से पस्त पर्यटन उद्योग की मांग यात्रा सस्ती करने की है।
आयकर की दर नहीं घटाए जाने से मध्यम वर्ग निराश है। मगर सरकार के पास राजस्व घाटे के 7.5 फीसद तक बढ़ जाने की ठोस दुहाई है। आयकर रिटर्न भरने से छूट ने 75 साल के बुजुर्गों को राहत दी है। मगर पेंशन एवं बैंक जमा पर ब्याज के अलावा आमदनी होने पर हिसाब देना पड़ सकता है। आयकर के पुराने मामले फिर खोलने की मियाद घटाकर तीन साल कर दी है। साथ ही 50 लाख या उससे अधिक आमदनी पर कर चोरी के संदेहास्पद मामले खोलने की अनुमति चीफ कमिश्नर से लेनी होगी। लाभांश पर टीडीएस कटना अगले साल बंद हो जाएगा। लाभांश भुगतान के बाद कर आकलन होगा। ईपीएफ में अधिकतम 2.5 लाख रुपये सालाना निवेश पर ही कर छूट मिलेगी।
कुल मिलाकर साल 2021-22 का बजट उपभोक्ताओं में तो उत्साह नहीं जगाता मगर उद्योग-व्यापार को इससे अपनी पौ-बारह होने की आस बंधी है। इसीलिए शेयर बाजार सूचकांक में उछाल है और बीमा सहित बुनियादी ढांचे, सीमेंट, इस्पात, कृषि यंत्र आदि सेक्टरों की धूल झड़ रही है। राजकोषीय घाटे को नाथने और उत्पादन एवं रोजगार में संतुलन बैठाने संबंधी बजट में प्रस्तावित आधे उपाय भी सफल हुए तो अगले माली साल में अर्थव्यवस्था में वृद्धि के नवांकुर फूट सकते हैं।
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