खेल : नस्लीय टिप्पणी से क्रिकेट शर्मसार
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सिडनी में खेले गए तीसरे टेस्ट मैच के दौरान भारतीय खिलाड़ियों पर नस्लीय टिप्पणियों की घटनाओं ने क्रिकेट को एक बार फिर शर्मसार कर दिया है।
खेल : नस्लीय टिप्पणी से क्रिकेट शर्मसार |
इस मामले में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया और आईसीसी दोनों ने ही सख्त रुख अपनाकर कहा है कि इस मामले में हमारी शून्य सहिष्णुता की नीति है, लेकिन भारतीय टीम के तीसरे दिन का खेल खत्म होने पर इस संदर्भ में मैच रेफरी डेविड बून और अंपायरों से शिकायत दर्ज करा देने पर भी चौथे दिन फिर से इस तरह की घटना होना दर्शाता है कि क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के सुरक्षा उपायों में कही न कहीं कुछ कमी रह गई। हालांकि चौथे दिन मोहम्मद सिराज के फिर से अपने ऊपर की जाने वाली टिप्पणियों की अंपायरों से शिकायत करने पर आरोपित छह दर्शकों को स्टेडियम से बाहर करने के साथ हिरासत में ले लिया गया।
क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया इस संबंध में जांच करा रहा है और जांच की रिपोर्ट अभी आना बाकी है। क्रिकेट मैचों में खिलाड़ियों पर नस्लीय टिप्पणियां करना और उन्हें अपशब्द कहना अब आम होता जा रहा है। इसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और वेस्टइंडीज जैसे देशों में मैचों के दौरान शराब पीने की अनुमति होना भी प्रमुख भूमिका निभाता है। गावस्कर कहते हैं कि चायकाल के बाद तक कुछ दर्शक नशे में धुत हो जाते हैं और वह अक्सर विपक्षी टीम के क्रिकेटरों से गाली-गलौज करते नजर आते हैं। यह मेजबान देश की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस तरह की घटनाओं को रोके। इसके लिए न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड द्वारा 2019 में जिस तरह की कार्रवाई की गई, थी, वैसी कार्रवाई करने की जरूरत है। इस समय इंग्लैंड के लिए खेलने वाले बारबाडोज के क्रिकेटर जोफ्रा आर्चर पर पहले टेस्ट के आखिरी दिन पेवेलियन लौटते समय उनके ऊपर नस्लीय टिप्पणी की गई थी। इस पर उस दर्शक पर न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड ने 2022 तक के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मैचों को देखने पर पाबंदी लगा दी थी।
भारतीय टीम प्रबंधन ने भले ही तीसरे दिन की घटना की शिकायत दिन का खेल खत्म होने के बाद की थी। पर आधुनिक दौर में कैमरों की सीसीटीव फुटेज निकालकर आसानी से उन दर्शकों की पहचान की जा सकती थी, लेकिन अगले दिन फिर से सिराज को बाउंड्री लाइन पर फील्डिंग करते समय दर्शकों के वर्ग द्वारा उसे ‘ब्राउन डॉग’ और ‘बिग मंकी’ कहना सुरक्षा में ढील की बात उजागर करता है। पर बाद में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया का घटना की जांच कराने और टीम इंडिया से इसके लिए माफी मांगने से लगता है कि ऐसी हरकत करने वालों को उनका सबक सिखाने का इरादा जरूर है। पिछले कुछ सालों से माहौल जरूर बदला है अन्यथा ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर भी मैच के दौरान अपशब्द कहने में कभी पीछे नहीं रहते थे। डेरेन लीमेन ने 2002-03 में श्रीलंका के साथ वनडे सीरीज के दौरान नस्लीय टिप्पणी कर दी थी। इस पर श्रीलंका टीम की शिकायत पर उनके ऊपर पांच मैचों का प्रतिबंध लगा दिया गया था। बाद में उन्होंने अपनी गलती मानी थी और इसे अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल करार दिया था। कई बार किसी खिलाड़ी विशेष को निशाना बनाने के लिए उस पर इस तरह के आरोप लगाकर दबाव बनाने का प्रयास भी किया जाता है। 2008 में भारतीय दौरे के सिडनी टेस्ट का ‘मंकी गेट’ ऐसी ही घटना है। इस टेस्ट में सायमंड्स ने हरभजन सिंह पर ‘मंकी’ कहने का आरोप लगाया था। यह आरोप साबित नहीं किया जा सकता था, इस कारण हरभजन सिंह पर लगाए गए प्रतिबंध को वापस ले लिया गया था। जहां तक माहौल बदलने की बात है तो यह बदलाव आईपीएल की वजह से आया है।
हम सभी जानते हैं कि इस टी-20 लीग में खेलने के लिए बड़ी रकम मिलती है, इसलिए इससे कोई दूर नहीं रहना चाहता है। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी भी इसमें दिलचस्पी रखते हैं। इसलिए उनके बर्ताव में थोड़ा फर्क आ गया है। इसके बावजूद भी सिराज पर नस्लीय टिप्पणियां किए जाने पर ऑस्ट्रेलिया के स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर जैसे दिग्गज क्रिकेटर सामने नहीं आए। अब आप याद करें 2019 के विश्व कप की। इसमें भारत और ऑस्ट्रेलिया के मैच के दौरान भारतीय प्रशंसक स्टीव स्मिथ की खिंचाई कर रहे थे, क्योंकि वह गेंद से छेड़छाड़ के मामले में पाबंदी लगने के बाद यहां खेलने आए थे। इस पर भारतीय कप्तान विराट कोहली ने दर्शकों तक जाकर उनसे ऐसा नहीं करने को कहा था और उनकी खिंचाई बंद हो गई थी। इसी तरह ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को भी अपने दर्शकों को समझाने के लिए आगे आना चाहिए।
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