विश्लेषण : वेलकम कमला, गुडबॉय तुलसी
अमेरिका के 40 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोगों में दो राजनीतिक शख्सियतों के प्रति स्वाभाविक आकषर्ण रहा है।
विश्लेषण : वेलकम कमला, गुडबॉय तुलसी |
दोनों महिला हैं और एक ही दल डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता हैं। एक ही पार्टी में होने के बावजूद घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मामलों में उनका रवैया एकदम अलग है। इतना ही नहीं उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और नोंक-झोंक सुर्खियों में रही है।
यह एक संयोग है कि इनमें से एक कमला देवी हैरिस 20 जनवरी को देश की पहली महिला और गैर ेत व्यक्ति के रूप में उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी, जबकि तुलसी गबार्ड ने 8 वर्षो के सक्रिय और सार्थक संसदीय कार्यकाल को फिलहाल अलविदा कह दिया है। उनका कार्यकाल 3 जनवरी को पूरा हो गया। इस बार उन्होंने संसद के लिए चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया।
कमला विष्णु की जीवनसंगिनी हैं तो तुलसी विष्णु प्रिया हैं। भारतीयों के नामों को लेकर अमेरिका में इतनी उत्सुकता पैदा हुई कि वहां ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा-माई नेम इज। इसमें भारतीय मूल के ही नहीं बल्कि सभी लोग अलग-अलग भाषा के नामों का मतलब बताने लगे। तुलसी और कमला पृष्ठभूमि बहुत अलग है। तुलसी राजनीति में सक्रिय होने के साथ ही अमेरिकी सेना के नेशनल गार्ड में मेजर हैं। कमला मूलत: कानून के पेशे से जुड़ी हैं। तुलसी भारतीय मूल की नहीं हैं, लेकिन आस्थावान हिन्दू हैं। तुलसी की मां कैरोल पोर्टर गबार्ड जर्मन मूल की हैं, जबकि पिता माइक गबार्ड सामोआ द्वीप की मूल निवासी प्रजाति के हैं। मां कैरोल ने वैष्णव हिन्दू धर्म में दीक्षा ली है तो पिता ने अपना कैथोलिक धर्म बनाए रखा है।
बच्चों के नाम तुलसी और वृन्दावन (पुत्रियां) तथा भक्ति, जय और आर्यन (पुत्र) हैं। कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं, उनके पिता अफ्रीका मूल के थे और मां श्यामला दक्षिण भारत के परम्परागत ब्राह्मण परिवार से थीं। कमला स्वयं बैप्टिस्ट चर्च से जुडी ईसाई हैं। गैर भारतीय होने के कारण हिन्दू होने के बावजूद तुलसी की कोई जाति नहीं है, जबकि कमला मातृ पक्ष (श्यामला गोपालन) से श्रेष्ठता का दावा करने वाली अयंगर ब्राह्मण है। इन दोनों महिला राजनीतिज्ञों को ‘वीमेन ऑफ कलर’ (अेत या भूरी त्वचा वाला) कहा गया। तुलसी और कमला में धार्मिंक पहचान को लेकर एक बड़ा अंतर यह है कि तुलसी अपनी हिन्दू पहचान को छिपाती नहीं बल्कि हर अवसर पर उजागर करती हैं, जबकि कमला अपनी पहचान को सार्वजनिक नहीं करतीं। इसका एक व्यावहारिक कारण है। अमेरिका जैसे आधुनिक और खुले समाज में नस्ल और धर्म आज भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। शिक्षण संस्थाओं से लेकर समाज जीवन के हर क्षेत्र में गैर ईसाई धर्मावलम्बी को जूझना पड़ता है। राजनीति में तो यह और भी अधिक हावी है। हाल के वर्षो में हालात बदले हैं और सिलिकॉन वैली में भारतीयों की सफलता ने सकारात्मक असर डाला है। फिर भी यह यथार्थ कायम है कि मुखर हिन्दू पहचान के साथ सत्ता की सीढ़ियों पर चढ़ना बहुत दुष्कर है। अपनी उम्मीदवारी की मुहिम में तुलसी ने धार्मिंक पूर्वाग्रह के इन अवरोधों का जिक्र किया था। उनके खिलाफ ईसाई कट्टरपंथियों ने ही नहीं बल्कि भारतीय मूल के लेफ्ट-लिबरल लोगों ने भी दुष्प्रचार अभियान चलाया था।
एक आरोप यह था कि तुलसी भारत के कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों से जुड़ी हैं। उन्हें ऐसे संगठनों और लोगों से चन्दा मिलता है। बैप्टिस्ट चर्च से जुड़े होने के कारण कमला को कभी ऐसे आरोपों का सामना नहीं पड़ा। वैसे भी वह भारत और वहां की राजनीति के बारे में अमेरिकी मुख्यधारा की सोच और रवैये को ही प्रकट करती हैं। यही कारण है कि अमेरिका में सक्रिय पाकिस्तान समर्थक और अन्य संगठन कश्मीर के बारे में बाइडेन प्रशासन से भारत के खिलाफ सख्त रवैया अपनाये जाने की आस लगाए बैठे हैं। दूसरी ओर तुलसी सऊदी अरब और कतर जैसे देशों की ओर से प्रायोजित वहाबी इस्लाम को अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरा मानती हैं। ट्विन टावर पर हुए हमले के लिए वह सऊदी अरब सत्ता प्रतिष्ठान को जिम्मेदार ठहराती हैं। इस्लामी उग्रवाद के बारे में उनकी सोच डेमोक्रेटिक पार्टी से अलग तथा डोनाल्ड ट्रम्प से मिलती-जुलती है। पिछले वर्ष 31 जुलाई को मिशीगन राज्य के डेट्रॉइट में तुलसी और कमला के बीच ऐतिहासिक मुठभेड़ हुई। अवसर था-डेमोक्रेटिक पार्टी के संभावित उम्मीदवारों के बीच सार्वजनिक मंच पर दूसरी बहस का। मंच पर अन्य उम्मीदवारों के अलावा जो बाइडेन भी थे। कमला ने अपने परिचय में कैलिफोर्निया राज्य के अटॉर्नी जनरल के रूप में न्याय व्यवस्था सम्बन्धी अपनी उपलब्धियों को गिनवाया। साथ ही उन्होंने कहा कि वह अपनी कानूनी सोच-समझ व्हाइट हाउस में ले जाएंगी। जवाब में तुलसी ने कमला के अटॉर्नी जनरल कार्यकाल की बखिया उधेड़ दी।
तुलसी ने कहा, ‘अमेरिका के लोगों को कमला की इन्हीं तथाकथित उपलब्धियों को लेकर चिंता है। कैलिफोर्निया में सैकड़ों लोगों को मारिजुआना पीने के मामूली अपराध में जेल में डाल दिया गया। दूसरी ओर जब कमला से पूछा गया कि क्या उन्होंने कभी मारिजुआना पिया है तो उन्होंने अट्टहास किया।’ तुलसी का इशारा इस ओर था कि जब आप खुद ऐसा कर चुकी हैं तो किस आधार पर लोगों को जेल में डाल रही हैं। तुलसी ने इस रिपोर्ट का भी हवाला दिया कि किस प्रकार अटॉर्नी जनरल की हैसियत से कमला ने मौत की सजा पाए एक कैदी के पक्ष में आए नये सबूतों को अदालत में पेश किए जाने से रोका। बाद में अदालत ने सबूतों का संज्ञान लिया और कैदी को राहत मिली। तुलसी के इस अप्रत्याशित हमले से जहां पूरा सभागार तालियों के गूंज उठा वहीं कमला हैरिस का पसीना छूट गया। कानून व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर कमला के जोर जबरदस्ती वाले कार्यकाल की समीक्षा होने लगी। विशेषकर कार्यकाल को भुगतने वाले अेत समुदाय के बीच उनकी साख गिरने लगी। एक समय ऐसा आया जब कमला की जनसमर्थन की रेटिंग तुलसी से भी नीचे आ गई। निराशा में कमला को मैदान से हटना पड़ा। उनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा पर लगा ‘तुलसी ग्रहण’ तब हटा जब जो बाइडेन ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवारी जीतने के बाद उन्हें उपराष्ट्रपति साथी के रूप में चुना।
संसद के बाहर अब तुलसी अब अपनी युद्ध विरोधी और अन्य देशों में हस्तक्षेप नहीं करने वाली राजनीति कैसे आगे बढ़ाती हैं यह देखने वाली बात होगी। वैसे संसद भवन कैपिटोल पर हमले के कई महीने पहले ही उन्होंने चेतावनी दी थी कि देश गृह युद्ध की ओर बढ़ रहा है। नेता समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं, जो विस्फोटक रूप ले लेगा।
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