सुरक्षा परिषद : मजबूत भारत फिर हुआ शामिल

Last Updated 08 Jan 2021 02:35:45 AM IST

भारत में अमेरिकी राजदूत रह चुके रिचर्ड वर्मा के हवाले से जुलाई, 2020 में यह बात आई थी कि यदि जो बाइडेन अमेरिकी राट्रपति बनते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराट्रीय संस्थाओं को नया रूप देने में मदद करेंगे ताकि भारत को सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट मिल सके।


सुरक्षा परिषद : मजबूत भारत फिर हुआ शामिल

गौरतलब है कि आगामी 20 जनवरी को जो बाइडेन अमेरिका के 46वें राट्रपति की शपथ लेंगे और यह देखना बाकी रहेगा कि उक्त कथन की प्रासंगिकता और उपयोगिता भविष्य में कैसी और कितनी रहती है।
फिलहाल भारत 8वीं बार इसी परिषद् में अस्थायी सदस्य के रूप में एक बार फिर प्रवेश ले चुका है, जो साल 2021-2022 तक के लिए है। पड़ताल बताती है कि इसके पहले भारत सात बार अस्थायी सदस्य के रूप में 1950-1951, 1967-1968, 1972-1973, 1977-1978, 1984-1985, 1991-1992 और 2011-2012 में भी सुरक्षा परिषद् में रहा है। इस बार भारत के साथ सुरक्षा परिषद् में नाव्रे, केन्या और आयरलैंड समेत मैक्सिको भी शामिल है। खास यह भी है कि भारत अगस्त, 2021 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का अध्यक्ष होगा और 2022 में भी एक महीने के लिए अध्यक्षता करेगा। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं। अस्थायी सदस्य देशों को चुनने का उद्देश्य सुरक्षा परिषद् में क्षेत्रीय संतुलन कायम करना होता है, जबकि स्थायी सदस्य शक्ति संतुलन के प्रतीक हैं। चीन स्थायी सदस्यों में आता है, जबकि भारत विगत 7 दशकों से अस्थायी सदस्य के रूप में ही जब-तब बना रहता है। चीन यहां अपनी स्थिति काफी मजबूत बनाए हुए है। इसने न केवल बजट में योगदान बढ़ाया है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के कई संगठनों के उच्च पदों पर भी पहुंच चुका है। इसे देखते हुए भारत की सुरक्षा परिषद् में अस्थायी सदस्य ही सही स्थिति अहम् हो जाती है। इन दिनों तो दोनों देशों के बीच सीमा विवाद भी जारी है, और दुनिया में भी कुछ चीजें कोरोना के चलते पहले जैसी नहीं हैं।

भारत का सुरक्षा परिषद् में होना कई लिहाज से ठीक कहा जा सकता है। मसलन, सीमा विवाद से लेकर सीमा पार आतंकवाद, आतंकवाद से जुड़ी फंडिंग, मनी लॉण्डरिंग, कश्मीर जैसे मुद्दों पर फिलहाल भारत की स्थिति मजबूत होगी। वैसे, भारत ऐसे मामलों को लेकर काफी सतर्क रहा है, और चीन को छोड़ दिया जाए तो अन्य सदस्य भारत को दरकिनार नहीं करना चाहते। सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थिति कुछ हद तक चीन को संतुलित करने के काम भी आएगी। मौजूदा समय में भारत वैश्विक फलक पर है। द्विपक्षीय से लेकर बहुपक्षीय मामलों में उसकी समझ को दुनिया तवज्जो देती है। मगर यह सवाल दशकों से जीवित है कि सुरक्षा परिषद् में भारत को आखिर, स्थायी सदस्यता कब मिलेगी जबकि वह यूएनओ के संस्थापक सदस्यों में से एक है, और पीस कीपिंग अभियानों में सर्वाधिक योगदान देने वाला देश है। इस समय 85 सौ से अधिक शांति सैनिक विश्व भर में तैनात हैं। 130 करोड़ की जनसंख्या और 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था साथ ही परमाणु शक्ति सम्पन्न देश ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और उभरती हुई अर्थव्यवस्था है।
असल में सुरक्षा परिषद् की स्थापना 1945 की भू-राजनीतिक और द्वितीय विश्व युद्ध की उपजी स्थिति को देखकर की गई थी। 75 वर्षो में पृष्ठभूमि अब अलग हो चुकी है। देखा जाए तो शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही इसमें सुधार की गुंजाइश थी जो नहीं की गई। पांच स्थायी सदस्यों में यूरोप का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है, जबकि आबादी के लिहाज से यह बमुश्किल 5 फीसद स्थान घेरता है। अफीका और दक्षिण अमेरिका महाद्वीप का कोई भी इसमें स्थायी सदस्य नहीं है। ढांचे में सुधार इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि विगत् कई वर्षो से भारत ने स्थायी सदस्यता को लेकर दुनिया से समर्थन हासिल किया सिवाय चीन के। बिना न्यूक्लियर सप्लायर समूह का सदस्य बने उसे सारी सुविधाएं मिलना भारत की शांतिप्रियता की पहचान है, जबकि चीन एनएसजी में भारत न आ पाए, इसके लिए वीटो करता है और पाक समर्थित आतंकियों को भी वीटो से बचाता रहता है। वैसे स्थायी सदस्यता की दौड़ में भारत ही नहीं है। जर्मनी, ब्राजील, जापान को भी इसमें देखा जा सकता है। फिलहाल, अस्थायी सदस्य के तौर पर भारत को अपनी मजबूत वैदेशिक नीति का लाभ उठाते हुए दुनिया में अपनी उपस्थिति बड़े पैमाने पर दर्ज करा लेनी चाहिए और स्वयं से जुड़ी समस्याओं का हल प्राप्त करने के लिए संयुक्त राट्र को प्रभाव में लेने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़नी चाहिए और कोशिश तो यह भी करनी चाहिए कि स्थायी सदस्यता प्राप्ति की राह और लंबी न हो।

डॉ. सुशील कु. सिंह


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