वायरस आपदा : जागने और जगाने का समय
हम बीमार हैं क्योंकि हमारी प्रकृति बीमार है। कहना न होगा कि हमारा स्वास्थ्य प्रकृति के साथ ही हमारे व्यवहार का भी परिणाम है।
वायरस आपदा : जागने और जगाने का समय |
वायरस हमारे रास्ते को सही करने का संकेत दे रहा है-यह हमें बता रहा है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना ही होगा। हमने समूची प्रकृति को अपने कब्जे में ले लिया है, और अन्य सभी जानवरों पर हावी हो गए हैं। लेकिन हम यह भूल गए हैं कि हमारी संपूर्ण आर्थिक समृद्धि छोटे सूक्ष्म जीवों यानी वायरस द्वारा मिटा दी जा सकती है।
कोरोना एक संकेत है, उस ईश्वर का, उस प्रकृति का जिसने हमारा और इस जग का सृजन किया है। किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि आज जो कुछ हम देख या अनुभव कर रहे हैं, कभी हमें अपने जीवन काल में भी देखना पड़ेगा। यह किसी दु:स्वप्न से कम नहीं, पर कटु सच्चाई है, जिसका सामना हमें न चाहते हुए भी करना पड़ रहा है। हमारी संपूर्ण आर्थिक समृद्धि छोटे सूक्ष्म जीवों द्वारा मिटा दी जा सकती है। कोरोना वायरस से फैली महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि यह सामूहिक विकास और समृद्धि को परिभाषित करने का सही समय है। पिछले दो दशकों में, सार्स, मर्स, इबोला, निपाह और अब कोरोना वायरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज को हिला कर रख दिया है। प्रकृति रीसेट बटन दबा रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं भारी गिरावट की स्थिति में हैं। वायरस के प्रकोप का यह प्रकार और पैमाना हमारे जीवनकाल में अपनी तरह का पहला है। पूरा विश्व इसकी चपेट में आ गया है। वे देश जो अपने बड़े एवं अत्याधुनिक अस्पतालों तथा बेहतरीन सामाजिक सुरक्षा पर इतराते थे, आज कोरोना की पीड़ा से सबसे ज्यादा त्रस्त, लाचार और पस्त दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका, इटली, स्पेन, जर्मनी, फ्रांस और चीन जैसे शक्तिशाली देश भी इस महामारी के आगे लाचार दिखाई दे रहे हैं। बड़े से बड़ा परमाणु बम एवं अत्याधुनिक हथियार इस महामारी के आगे बौने साबित हो सकते हैं।
कल्पना कीजिए, अगर हमारी जमीनें खाद्यान्न का उत्पादन करने में विफल रहती हैं, हमारे भूजल के भंडार सूख जाते हैं, हमारी नदियां प्रदूषित और बेजान हो जाती हैं, और हमारे जंगल बर्बाद हो जाते हैं। कल्पना कीजिए कि गर्मी की लहरों से बचने के लिए हमें महीनों तक अपने घरों के अंदर रहना होगा। कोई रास्ता नहीं है कि हम उत्सर्जन कम करने के लिए बर्फ के पिघलने को धीमा कर दें और अपनी नदियों में अंतिम जीवित मछलियों और कछुओं की रक्षा करें। कहना होगा कि यदि हम अन्य जीवों और उनके आश्रय के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं, तो कोविड-19 जैसी महामारी बारंबार आएगी। यह भी स्पष्ट हो गया है कि जंगली जानवरों के नये वायरस से हमारी प्राकृतिक प्रतिरक्षा सुरक्षा को चुनौती मिलती रहेगी।
वायरस एक लक्षण है-संकेत है, जिसे हमें भविष्य में और भी बड़े महामारी का सामना करने की तैयारी के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। अपनी मुस्तैदी और तैयारी की परख कर लेनी चाहिए। यह प्रकृति से हमारे लिए जाग उठने की एक पुकार है-हमारे जीने के तरीके के खिलाफ। यह संकेत स्पष्ट इंगित कर रहा है कि हमारी जीवन शैली अगर नहीं बदली तो हम आने वाले समय में भी इसी प्रकार के संकट से घिरे हुए दिखलाई पड़ सकते हैं। तो कह सकते हैं कि कोरोना वह संकट है, जो हम सभी को बचाने के मौके की संभावना के द्वार खोलता है। प्रकृति को फिर से खुशहाल और समृद्ध करने की आवश्यकता है।
जब हमारे जंगल घने थे तब ऐसे वायरस इतना विराट रूप नहीं लेते थे। उनके लिए इंसानों तक पहुंचना इतना आसान नहीं था। भारत जैसे देश में तो यह समस्या और भी गंभीर बन जाती है। आधुनिकता के नाम पर न जाने कितने जंगलों को हमने अपना घर बना लिया। ऊपर से हमारी भारी जनसंख्या भी ऐसी बीमारियों को बढ़ाने में मदद करती है। जंगल अभी भी दुनिया के 30 प्रतिशत भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं, लेकिन वे भयानक दर से दिनोंदिन गायब हो रहे हैं। छब्बीस वर्षो में, 1990 और 2016 के बीच, दुनिया ने लगभग 1.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर जंगलों को खो दिया है। इसका सबसे बड़ा भाग उष्णकटिबंधीय वर्ष वन हैं, जो दक्षिण अफ्रीका से बड़ा क्षेत्र है। जंगलों के साथ-साथ, हमने वन्य जीवों के लिए सबसे मूल्यवान और अपूरणीय आश्रय स्थल भी खो दिए हैं। कहना न होगा कि भविष्य में ऐसी किसी आपदा का सामना हमें फिर न करना पड़े, इसके लिए हमें बहुत संजीदगी से विचार करना होगा।
| Tweet |