वैश्विक मोर्चा : बरकरार रहेंगी चुनौतियां

Last Updated 01 Jan 2021 12:29:55 AM IST

साल 2020 सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से उथल-पुथल वाला रहा है।


वैश्विक मोर्चा : बरकरार रहेंगी चुनौतियां

साल के आरंभ में ही देश और दुनिया से कोरोना वायरस की जो डरावनी खबरें आ रही थी उसका वास्तविक रूप भारत ने भी देखा। कोविड-19 के बुरे दौर में भारत आतंरिक मामलों के प्रबंध में तो व्यस्त रहा ही विदेश मोच्रे पर भी उसकी सक्रियता लगातार बनी रही। कोरोना के प्रभाव से पहले जनवरी माह में ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर मेसियस बोलसोनारो चार दिन की भारत यात्रा पर नई दिल्ली आए थे। वे 71 वें गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे। बोलसोनारो की इस यात्रा के दौरान भारत और ब्राजील के बीच सामाजिक सुरक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में 15 समझौते हुए।
फरवरी 2020 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रंप परिवार सहित भारत आए। साल साल 2016 में राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद यह उनकी पहली भारत यात्रा थी। ट्रंप की यात्रा से पहले और उसके बाद ट्रंप-मोदी की दोस्ती ने देश और दुनिया में खूब सुर्खियां बटोरी थी। दक्षिण एशियाई देशों के साथ रिश्तों में कोई खास पर्वितन या बहुत बड़ी उपलब्धि इस साल भारत के लिए नहीं रही। नेपाल में साल पर्वितन व केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत नेपाल संबंधों में तनाव के जो बिंदू उभर रहे थे वे इस साल भी बरकरार रहे। भारत के पिथौरागढ़ जिले से लगे सीमावर्ती क्षेत्र लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधूरा पर नेपाल सरकार ने अपना दावा करके सीमा विवाद को हवा दी।

अभी प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के संसद भंग करने के फैसले से नेपाल में एक बार अस्थिरता का दौर शुरू हो गया है। पाकिस्तान के साथ भारत अपनी परम्परागत नीति पर ही आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। पिछले साल जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने व पीओके को भारत में शामिल करने आह्वान से दोनों देशों के बीच बयानबाजी का जो आक्रामक दौर शुरू हुआ था, वह इस साल थोड़ा मंद रहा। हांॅ, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के विरुद्ध जहर उगलने की उसकी नीति जारी रही। बांग्लादेश में भारत समर्थक शेख हसीना के दुबारा सत्ता में आने से बांग्लादेश को लेकर भारत की चिंता कुछ कम हुई है। नदी जल को लेकर दोनों देशों के बीच जब-तब विवाद उठता रहता है। हालांकि इस विषय पर एक द्विपक्षीय संयुक्त नदी आयोग (जेआरसी) बना हुआ है जो समय-समय पर नदी संबंधी मुद्दों पर चर्चा करता है। भारत को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह बांग्लादेश के साथ अल्पकालिक लाभ के लिए अपने दीर्घकालिक हितों के साथ समझौता न करे। उम्मीद है साल 2021 में दोनों देश इस दिशा में प्रयास करते नजर आएंगे। भारत-श्रीलंका संबंधों की बात कि जाए तो दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक व परंपरागत संबंध रहे हैं। गृह युद्ध के वक्त के मतभेदों को छोड़ दिया जाए तो लगभग संबंध सौहार्दपूर्ण ही है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का चीन की ओर आकषर्ण भारत के लिए चिंता का विषय है। अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी गोटाबाया ने यह बात खुलकर कही थी कि यदि वे सत्ता में आते हैं, तो चीन के साथ रिश्तों को मजबूत बनाएंगे, लेकिन नवम्बर 2019 में अपनी पहली राजकीय यात्रा पर भारत आकर गोटाबाया ने भारत की चिंताओं को कुछ कम जरूर किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वर्षो में भारत श्रीलंका के साथ रिश्तों को बेहतर कर सकेगा।
अफगानिस्तान के साथ हमारे बेहतर संबंध भी समय की मांग हैं। खासकर नाटो सेनाओं की वापसी के बाद। काबूल में मित्र सरकार बनी रहे इसके लिए भारत को कूटनीति मोच्रे पर कुछ बदलाव करने भी पड़े तो किए जाने चाहिए। पिछले दिनों जब भारत ने अफगानिस्तान में पुस्तकालय के लिए सहयोग देने की बात कही तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि भारत को अफगानिस्तान में अपनी सेनाएं भेजकर वहां की सरकार की मदद करनी चाहिए। अफगानिस्तान में भारतीय सेना की मौजूदगी से जहां एक ओर अफगानिस्तान में पाक के प्रभाव कम होगा वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय व वैश्विक शक्ति के रूप में भारत का नया व्यक्तित्व दुनिया के सामने आएगा।
पाक-चीन गठजोड़ की चुनौतियां आगे भी रहने वाली हैं। चीन के साथ रिश्तों में तल्खी बढ़ी है। वह समुद्र के रास्ते भी भारत की घेराबंदी में जुटा है। चीन के विस्तारवादी मंसूबों को देखते हुए कहा जा सकता है कि गठजोड़ आगे भी भारत को हैरान-परेशान करता हुआ दिखाई देगा। पिछले साल मलयेशिया के साथ रिश्तों में आई तनातनी इस साल कम हुई है। मई माह में मोहिउद्दीन यासीन के सत्ता में आने के बाद भारत-मलयेशियाई रिश्तों में आई खटास फिलहाल फीकी पड़ने लगी है। 26 जनवरी 2021 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में भारत आ रहे हैं। जॉनसन के साथ में आने के बाद भारत-ब्रिटेन संबंधों लगातार मजबूत हुए  हैं। ब्रिटेन यूएन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है। मार्च 2021 में  ब्रिटेन  परिषद का अध्यक्ष बनेगा। इधर, भारत की भी अस्थायी सदस्य के रूप में  परिषद में एंट्री होगी। अगस्त 2021 में भारत को भी रोटेटिग प्रेसिडेन्सी अर्थात परिषद की अध्यक्षता का मौका मिलेगा। भारत अगले दो साल परिषद में रहेगा। ऐसे में दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्ते भारत के हित में ही है।
20 जनवरी को जो बाइडेन अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। ट्रंप और मोदी के दोस्ताना संबंध (हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप) के बीच सवाल यह उठ रहा है कि बाइडेन भारत को किस निगाह से देखेंगे। दक्षिण एशिया से बाहर पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीका तथा मुस्लिम देशों व यूरोपीय देशों के साथ रिश्तों की बात करें तो हम उसी परंपरागत रूप से आगे बढ़ते रहेंगे, जिसके लिए भारत की विदेश नीति जानी जाती हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि तेजी से बदलते वैश्विक घटनाक्रम के बीच भारत ने कभी आक्रमक तेवर दिखाकर तो कभी सधी हुई नपी-तुली प्रतिक्रिया देकर स्थितियों को अपने अनुकूल करने का प्रयत्न किया है, जो कूटनीतिक दृष्टि से सही ही है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि विदेश मोच्रे पर भारत के सामने चुनौतियां नहीं है।

डॉ. एन.के. सोमानी


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