हाथरस कांड : यह जीत है बड़ी

Last Updated 23 Dec 2020 03:01:42 AM IST

बीते दिनों हाथरस में हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले की जांच के बाद सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल कर दी है।


हाथरस कांड : यह जीत है बड़ी

अदालत में दाखिल आरोप-पत्र के मुताबिक लड़की के लगाए गए आरोप सही पाए गए हैं। इस बर्बर घटना की जांच में पीड़िता का आखिरी बयान सबसे महत्त्वपूर्ण रहा। जेल में बंद चारों आरोपियों के  ब्रेन मैपिंग और पॉलिग्राफिक टेस्ट ने भी अहम भूमिका निभाई।
गौरतलब  है कि सीबीआई ने इस प्रकरण की जांच के 67 दिन के अंदर करीब 80 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की इनमें ग्रामीणों से लेकर पुलिस महकमे से जुड़े अधिकारी तक शामिल हैं। कुल मिलाकर सीबीआई की जांच ने साफ कर दिया है कि हाथरस की बेटी के साथ हैवानियत हुई थी। हालांकि पूरा मामला अदालत में सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही सामने आएगा पर सामूहिक दुष्कर्म की  बर्बरता और शारीरिक हिंसा के बाद इलाज  के दौरान जिंदगी से हार जाने वाली बेटी के परिजनों को जांच के नतीजों से न्याय की उम्मीद तो बंधी ही है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले में हाथरस के एक गांव में कथित रूप से गैंगरेप और प्रताड़ना की शिकार हुई पीड़िता की दिल्ली के एक अस्पताल में मौत हो गई थी। मामला काफी चर्चित भी रहा क्योंकि एक ओर युवती के घर वालों  पर ही ऑनरकिलिंग  और प्रताड़ना का आरोप लगा तो दूसरी ओर मुख्य आरोपी ने जेल से चिट्ठी लिख कर केस में उसे और बाकी तीन आरोपियों को फंसाए जाने की बात भी कही। इतना ही नहीं घरवालों की रजामंदी के बिना भारी पुलिस बल की मौजूदगी में देर रात पीड़िता का अंतिम संस्कार भी किया गया। राजनीतिक बयानबाजी में भी पीड़िता को दोषी ठहराया गया। साथ ही इलाज में लापरवाही और देरी जैसी कई वजहों से  घटना की जांच और पुलिस की कार्रवाई संदेह के घेरे में रही। ऐसे में आपराधिक मामलों से जुड़ी मुख्य जांच एजेंसी का आरोप पत्र घटना से जुड़े कई पहलुओं को स्पष्ट रूप से सामने रखने वाला है।

गौरतलब है कि मामले ना सिर्फ  पुलिस महकमे का बर्ताव संदेह के घेरे में रहा, बल्कि पीड़ता के परिजनों को गांव के लोगों का भी साथ नहीं मिला जबकि मामलों की कार्रवाई से जुड़ा ढिलाई वाला गैर-जिम्मेदार व्यवहार और समाज का खांचों में बंटा विरोध ही कुत्सित मानसिकता के लोगों की हिम्मत बढ़ाता है। यही वजह है कि ऐसी घटनाओं के आंकड़े भी तेजी से बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2019 में हर दिन रेप के 88 मामले दर्ज किए गए। पिछले 10 वर्षो में महिलाओं के रेप का खतरा 44 फीसदी तक बढ़ गया है। दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि जिस देश में दुधमुंही बच्ची से लेकर बुजुर्ग महिला तक, ऐसी बर्बर घटनाओं का शिकार हो रही हैं, वहां ऐसे मामलों में लचरता, उदासीनता और असंवेदनशीलता पहले कदम पर ही दिख जाती है। एफआईआर दर्ज करने तक में आनाकानी की जाती है।  नतीजतन, सामूहिक दुष्कर्म जैसे बर्बर मामलों की भी न केवल पूरी जांच प्रभावित होती है, बल्कि यह दोषियों के बच निकलने की बड़ी वजह भी है। इन हालात में उलटा पीड़िता और उसके परिवार को ही पीड़ा झेलनी पड़ती है। हाथरस केस में भी यही हुआ, जबकि हर बार ऐसी जघन्य वारदात को लेकर आम लोग विरोध दर्ज करवाते हैं। सोशल मीडिया से लेकर समाज तक आक्रोश दिखाई देता है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने महिला अपराधों के विषय में पुलिस द्वारा की जाने वाली अनिवार्य कार्रवाई के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हाल में जारी इन दिशा-निर्देशों के मुताबिक, ‘सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के अन्य कदम उठाए जाने के बावजूद पुलिस अनिवार्य प्रक्रिया का पालन करने में असफल होती है, तो इससे विशेष रूप से महिला सुरक्षा के संदर्भ में, देश की न्याय प्रणाली में उचित न्याय देने में बाधा उत्पन्न होगी’। अफसोस कि ऐसा ही हो भी रहा है। चिंतनीय है कि बर्बर घटनाओं की जांच में होने वाली कोताही पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था से आमजन का भरोसा कम करती  है।
यौन शोषण के मामलों में कई परिवार शिकायत दर्ज करवाने के बजाय चुप्पी साध लेते हैं। ऐसे में सीबीआई द्वारा की गई त्वरित जांच न्याय व्यवस्था में भरोसा बढ़ाने वाली है। आशा है कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी अब तत्परता और सजगता से जुटाए गए प्रमाणों के साथ आरोपियों को सजा भी दिलवाएगी। यह परिवार को न्याय दिलाने और न्यायिक व्यवस्था में आम लोगों विास पुख्ता करने के लिए बेहद जरूरी है।

डॉ. मोनिका शर्मा


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