मुद्दा : कौशल विकास को चाहिए नवाचार

Last Updated 17 Dec 2020 03:01:06 AM IST

कौशल विकास का अभिप्राय युवाओं को हुनरमंद बनाना ही नहीं, बल्कि उन्हें बाजार के अनुरूप तैयार भी करना है।


मुद्दा : कौशल विकास को चाहिए नवाचार

 इस दिशा में बरसों से जारी कार्यक्रम के बावजूद महज 5 फीसद ही कौशल विकास संपन्न कर्मी भारत में हैं जबकि दुनिया के अन्य देशों की तुलना में यह बहुत मामूली है। चीन में 46 फीसद, अमेरिका में 52, जर्मन में 75, दक्षिण कोरिया में 96 और मैक्सिको जैसे देशों में भी 38 प्रतिशत का आंकड़ा देखा जा सकता है।
स्किल इंडिया मिशन के महत्त्वाकांक्षी संदर्भ को देखें तो आंकड़े इशारा करते हैं कि तीन हजार से अधिक पाठय़क्रम वाले इस मिशन में एक करोड़ युवा सालाना जुड़ रहे हैं, और देश में 25 हजार से अधिक कौशल विकास केंद्र हैं। छह साल पहले कौशल विकास केंद्रों की संख्या केवल 15 हजार थी जो पहले भी कम थी और जनसंख्या के लिहाज से और कौशल विकास की रफ्तार को देखते हुए अभी भी कम है। चीन में 5 लाख, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में एक-एक लाख और इतने ही कौशल विकास केंद्र अदने से देश दक्षिण कोरिया में हैं।
गौरतलब है कि चीन जीडीपी का 2.5 फीसद व्यावसायिक शिक्षा पर खर्च करता है। यहां भी भारत तुलनात्मक मामूली है। देश को विकसित करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 जुलाई, 2015 को तकरीबन 40 करोड़ भारतीयों को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से 2022 तक हुनरमंद बनाने के उद्देश्य से ‘कुशल भारत-कौशल भारत’ योजना को शुरू किया था। इस दिशा में प्रगति नहीं हुई, ऐसा कहना ठीक नहीं पर वक्त के साथ वैसा बदलाव नहीं आया। हालांकि इस नीति में रफ्तार, गुणवत्ता और टिकाऊपन के साथ कौशल विकास की चुनौतियों पर ध्यान तो दिया गया पर नवाचार की मांग बरकरार रही।

असल में कौशल विकास के मामले में भारत बड़े नीतिगत फैसले लेने में कमतर रहा है, जिसके चलते संरचनात्मक और कार्यात्मक विकास में कठिनाई आई। मनमोहन सिंह की सरकार का लक्ष्य भी 2022 तक निजी संस्थानों और कॉरपोरेट सेक्टर को साथ लेकर 50 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने का था जो मोदी सरकार के 40 करोड़ के पास खड़ा दिखाई देता है। मनमोहन सरकार इससे कोसों दूर रही। अब देखना है कि मोदी सरकार कितने समीप रहती है। प्रधानमंत्री मोदी स्किल, स्केल और स्पीड पर काम करने की बात करते रहे हैं। साथ ही, युवाओं को कौशलयुक्त बनाने की जद्दोजहद भी करते दिखाई देते हैं, और जीडीपी के मामले में भी दहाई के आंकड़े की बात कर चुके हैं। मगर वर्तमान अर्थव्यवस्था राह भटकी हुई है, और गिरी हुई जीडीपी में बढ़ा हुआ कौशल विकास स्वयं एक चुनौती है। कौशल विकास को जब तक व्यापक और पूरी तरह व्यावसायिक नहीं बनाया जाएगा, जीडीपी को प्राप्त करना भी कठिन रहेगा। यूएनडीपी की एक रिपोर्ट पहले ही  कह चुकी है कि अगर अमेरिका की भांति भारत के श्रम बाजार में कुल महिलाओं की भागीदारी 70 फीसद तक पहुंचाई जाए तो आर्थिक दर को 4 फीसद से अधिक बढ़ाया जा सकता है। मोदी सरकार ने कौशल विकास को अतिरिक्त सकारात्मक लेने का काम किया है। कौशल विकास नीति-2009 पर पुर्नविचार करते हुए अमलीजामा भी पहनाया गया। गौरतलब है कि देश में 65 फीसद युवा एक बहुत बड़ी श्रम पूंजी है। मगर गरीबी, बेरोजगारी से युक्त और बुनियादी विकास से वंचित होने के चलते यही युवा कौशल विकास से दूर खड़ा रहा और शायद देश की जीडीपी भी इसी के चलते दूर की कौड़ी बनी हुई है।
कौशल विकास को अधिक प्रभावी बनाने और नवाचार से युक्त करने के लिए ई-स्किल इंडिया ने निजी क्षेत्रों के 20 से अधिक संस्थानों के साथ जानकारी की भागीदारी की है। इसकी मात्रा और बढ़ाने की आवश्यकता है। कोविड-19 महामारी ने भी कौशल विकास के क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता को बढ़ा दिया है। भारत जिस तरह युवाओं का देश है, यदि उसी तर्ज पर कौशल विकास से युक्त देश की संज्ञा में लाना है तो पेशेवर  प्रशिक्षण, और कौशल विकास कार्यक्रम बाजार की मांग के अनुपात में विकसित करना होगा। दुनिया की डिमांड को समझते हुए युवाओं में कुशलता भरनी होगी। भविष्य की जरूरतों के अनुरूप इन्हें तैयार करना होगा। र्वल्ड स्किल्स प्रतियोगिता को देखें तो 2019 में 63 देशों में भारत 13वें स्थान पर था। कौशल विकास में नूतनता और अच्छी उम्मीद भरने से न केवल भारत का भविष्य संवरेगा, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य भी सुनिश्चित हो सकेगा। ऐसे में प्राथमिकताओं को पहचान कर कौशल विकास को एक कुशल स्थिति देने की आवश्यकता है।

सुशील कुमार सिंह


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