मैन्युफैक्चरिंग : दूसरा बड़ा हब बनेगा भारत

Last Updated 16 Dec 2020 01:26:09 AM IST

उद्योग संगठन फिक्की के कार्यक्रम में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार भारत को विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की संभावनाओं को साकार करने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ रही है।


मैन्युफैक्चरिंग : दूसरा बड़ा हब बनेगा भारत

मोबाइल फोन निर्माण में तो चीन को भी पीछे  किया जा सकेगा। गौरतलब है कि मारुति सुजुकी इंडिया के चेयरमैन आरसी भार्गव के मुताबिक यदि उद्योग और सरकार साथ मिलकर काम करें, तो भारत सस्ती लागत के विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कम लागत के उत्पाद बनाए जा सकेंगे और विनिर्माण उद्योग जितनी अधिक बिक्री करेंगे, उससे अर्थव्यवस्था में उतने ही अधिक रोजगार सृजित होंगे।
इस समय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए उद्योग जगत को सरकार की तरफ से वित्तीय मदद का सिलसिला तेजी से आगे बढ़ रहा है। आत्मनिर्भर भारत अभियान में मैन्युफैक्चरिंग के तहत 24 सेक्टर का चयन किया गया है, जिन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय औद्योगिक संगठनों के साथ मिलकर वैसे सेक्टर की भी पहचान कर रहा है, जिनमें भारत दुनिया के बाजार में आसानी से मुकाबला कर सकता है और जिनकी उत्पादन लागत अन्य देशों के मुकाबले कम हो।
पिछले माह 11 नवंबर को केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के मद्देनजर उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के अंतर्गत 10 सेक्टरों के लिए 1.46 लाख करोड़ रु पए के इंसेन्टिव देने का फैसला किया है। इस कदम का मकसद देश को वैश्विक सप्लाई चेन का अहम हिस्सा बनाना, देश में विदेशी निवेश आकर्षित करना, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, निर्यात बढ़ाना तथा रोजगार पैदा करना है। पिछले दिनों 23 नवंबर को वैश्विक कलपुर्जा निर्माण करने वाली कंपनी मदरसन सूमी ने भारत की पीएलआई योजना को काफी उत्साहजनक बताते हुए कहा कि अब भारत में विनिर्माण के लिए कई स्पष्ट और चमकीले अवसर मौजूद हैं। ऐसे में अब कंपनी भारत में निर्माण को तेजी से बढ़ावा देगी।

पीएलआई स्कीम के तहत पूर्व में सरकार द्वारा मोबाइल विनिर्माण और विशेषीकृत इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे, फार्मा ड्रग्स एवं एपीआई तथा चिकित्सा उपकरणों जैसे क्षेत्रों के लिए 51,311 करोड़ रु पये की घोषणा की जा चुकी है। अब जिन नए क्षेत्रों को 11 नवंबर को पीएलआई के दायरे में लाया गया है, उनमें एडवांस कैमेस्ट्री सेल (एसीसी), बैटरी इलेक्ट्रॉनिक एवं तकनीकी उत्पादों, वाहनों और वाहन कलपुर्जा, औषधि, दूरसंचार एवं नेटवर्किग उत्पाद, कपड़ा, खाद्य उत्पादों, सोलर पीवी मॉड्यूल, एयर कंडीशनर, एलईडी और विशेषीकृत स्टील शामिल हैं। इन सभी क्षेत्रों को पांच साल के लिए पीएलआई का लाभ दिया जाएगा। यह बात महत्वपूर्ण है कि पीएलआई के तहत दोनों घोषणाओं को मिलाकर इस योजना के तहत करीब 2 लाख करोड़ रुपये का प्रोत्साहन सुनिश्चित किया जा चुका है।
वस्तुत:, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मानना है कि कोविड-19 की आपदा भारत के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का अवसर लेकर आई है। प्रधानमंत्री मोदी लगातार यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि कोरोना संकट के समय दुनिया में भारत को मददगार देश माना जा रहा है। कोरोना की चुनौतियों के बीच भारत ने दवाई का मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाकर दुनिया के 150 से ज्यादा देशों को दवाइयां निर्यात की है।
नि:संदेह, चीन से बाहर निकलते विनिर्माण, निवेश और निर्यात के मौके भारत की ओर आने की संभावना के कई बुनियादी कारण भी चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार विभिन्न श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में तब्दील करने की महत्वाकांक्षी योजना को आकार देने में सफल रही है। सरकार ने इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020, आक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2020, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी, 2020 और वेतन संहिता कोड 2019 के तहत जहां एक ओर मजदूरी सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने का दायरा काफी बढ़ाया है, वहीं दूसरी ओर श्रम कानूनों की सख्ती और अनुपालन की जरूरतों को कम करने जैसी व्यवस्थाओं से उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहन मिलेंगे। इससे रोजगार सृजन में भी मदद मिलेगी।
निश्चित रूप से जहां नए श्रम कानूनों से जहां श्रमिक वर्ग के लिए कई लाभ दिखाई दे रहे हैं, वहीं उद्यमियों के कारोबार को आसान बनाने के लिए कई प्रावधान भी लाए गए हैं। इंडस्ट्रियल रिलेशन कानून के तहत सरकार भर्ती और छंटनी को लेकर कंपनियों को ज्यादा अधिकार देगी। अभी 100 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को छंटनी या यूनिट बंद करने से पहले सरकार की मंजूरी नहीं लेनी पड़ती थी। अब यह सीमा बढ़ाकर 300 कर्मचारी कर दी गई है। लेकिन भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए कुछ अन्य ऐसे सुधारों की भी जरूरत है, जिससे कारखाने की जमीन, परिवहन और औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए बिजली की लागत आदि को कम किया जा सके। कर तथा अन्य कानूनों की सरलता भी जरूरी होगी। शोध, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मापदंडों पर आगे बढ़ना होगा। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करनी होगी। हमें अपनी बुनियादी संरचना में व्याप्त अकुशलता एवं भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर अपने प्रॉडक्ट की उत्पादन लागत कम करनी होगी। इन विभिन्न प्रयासों के साथ-साथ एक नया जोरदार प्रयास यह भी करना होगा कि जो कंपनियां चीन से अपने निवेश निकालकर अन्य देशों में जाना चाहती हैं, उनको भारत में निवेश के लिए आमंत्रित करने के लिए भारत सरकार का विशेष संपर्क अभियान और तेज करना होगा।
हम उम्मीद करें कि कोविड-19 की वजह से चीन के प्रति बढ़ती हुई वैश्विक नकारात्मकता और दुनिया के देशों का भारत के प्रति बढ़ते हुए विश्वास के मद्देनजर पीएलआई योजना के तहत अब तक दो लाख करोड़ रु पए से अधिक के प्रोत्साहनों से भारत मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ सकेगा। इससे देश उत्पादन वृद्धि, निर्यात वृद्धि, रोजगार वृद्धि और विकास दर के ऊंचे लक्ष्यों को प्राप्त करने की डगर पर भी आगे बढ़ सकेगा।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी


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