संस्कृत : सार्वभौमिक कल्याण की भाषा

Last Updated 18 Mar 2020 04:52:58 AM IST

भाषा सदा ही समाज और संस्कृति का यथार्थ परिचय देती है। एक सभ्य समाज के लिए एक समृद्ध भाषा का होना, बड़ा योगदान माना जाता है।


संस्कृत : सार्वभौमिक कल्याण की भाषा

और जब किसी समृद्ध भाषा द्वारा पारिवारिक संस्कारों को आने वाली पीढ़ियों के लिए हस्तांतरित किया जाता है तो निश्चित ही एक शात आनन्द देने वाली सभ्यता का उदय होता है। जिसमें परस्पर प्रेम अंकुरित होता है, करुणा और वात्सल्य के भाव अपने आप प्रस्फुटित होते हैं, सहजता और सरलता व्यक्तित्व में पल-पल पर दिखलाई पड़ते हैं, संवेदनाओं और आत्मसम्मान को स्थान मिलता है। अत: आज आवश्यकता है एक ऐसी सार्वभौमिक कल्याण की भाषा की जो हमें अपनों से संवाद कराना सिखाए, जो हमें अपनी वास्तविक पहचान करना बताए और जो हमें ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात अन्धकार से प्रकाश की ओर लेकर जाए।     
विश्व में अपना कीर्तिमान स्थापित करने वाला देश भारत वर्ष ‘संस्कृत भाषा’ की भूमि से ही आता है। ‘संस्कृत भाषा’ वह भाषा है जिसमें एक सभ्य समाज, समृद्ध परिवार, उन्नत राष्ट्र, निर्मल विचार, प्रबल मेधा, प्रशिक्षित कौशल, तर्कसंगत संवाद और सर्वागीण मानवीय आचार-विचार-व्यवहार को संस्कारित किया जाता है। ये संस्कार ही हमारी संस्कृति की हजारों वर्षो से रक्षा कर रहे हैं। और इसी भारतीय संस्कृति पर आज दुनिया अनुसंधान कर रही है व इसके मूल यानी कि ‘संस्कृत भाषा‘ को आत्मसात  करना चाहती है। अनुसंधानपरक ‘संस्कृत भाषा’ में सन्निहित साहित्यिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-पर्यावरणिक-प्रशासनिक-आर्थिक-कार्मिंक-मार्मिंक एवं नैसर्गिक मूल्यों की रक्षा के लिए आज देश में संस्कृत केंद्रीय विश्वविद्यालय  की महती आवश्यकता है।

भारत का ‘संविधान’ हमें अधिकार और कर्तव्य प्रदान करता है ‘समष्टि’ के लिए, न की ‘व्यष्टि’ के लिए। यह सब विचार व शिक्षा हमें, हमारे संविधान निर्माताओं ने संस्कृत भाषा में निहित विपुल ज्ञान से ही दिए हैं। इसलिए संस्कृत भाषा का केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में संवर्धन और संरक्षण आवश्यक है। संस्कृत भाषा में ऐसा विज्ञान है, जो भारत ने दुनिया को दिया उदाहरणस्वरूप महर्षि बौधायन ने जो गणितीय प्रमेय सिद्धान्त की व्याख्या की है वह आज पूरी दुनिया स्वीकार करती है। भारतीय चिकित्सा शास्त्र के तीन बड़े नाम महर्षि चरक, महर्षि सुश्रुत, महर्षि वाग्भट हैं। इन्होंने संस्कृत भाषा में चिकित्सा-सूत्र दिए, जिससे प्राणी के मर्म की रक्षा हो वहीं महर्षि पतंञ्जलि ने शारीरिक एवं मानसिक सौष्ठव के लिए योग-सूत्र दिए जिससे तन स्वस्थ एवं मन-मस्तिष्क एकाग्र होता है तो वहीं वाणी शुद्धि के लिए महर्षि पाणिनि ने व्याकरण शास्त्र दिया। अत: सिद्ध होता है की संस्कृत भाषा हमें हर प्रकार से उन्नत करने में सक्षम है। संस्कृत भाषा ने भूगोल से खगोल तक पूरी दुनिया को अपरिमित ज्ञान राशि दी है। महर्षि आर्यभट्ट, महर्षि वराहमिहिर और आचार्य लगध, महर्षि भारद्वाज ने हमें ब्रह्माण्डीय ज्ञान दिया है। यह शुद्ध गणित के सिद्धांतों पर आधारित है। आज हम आकाशगंगा में सुदूर नक्षत्रों की काल गणना भी स्पष्टतया कर लेते हैं।
यह सब अखण्ड ज्ञान पाश्चात्य में प्रसारित हुआ तो केवल और केवल संस्कृत भाषा की वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण ही। इस देश की संसद के इतिहास में पहली बार ऐसा देखने को मिला जब 17वीं लोक सभा में बहुभाषीय प्रांतों से माननीय 44 सांसदों ने संस्कृत भाषा में  अपनी ‘पद और गोपनीयता’ की शपथ ली। पूरी दुनिया को यह आश्चर्य कर देने वाली बात थी कि संस्कृत भाषा की जीवंतता भारत की संसद में और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व युक्त प्रशासन में देखी जा रही है। जब जन-प्रतिनिधियों द्वारा संसद में प्रत्येक विषय स्थापित किए जाते हैं, तो वे सभी विषय राष्ट्र-समुत्थान के लिए हैं न कि व्यक्ति विशेष के लिए। और यह लोक-कल्याण भावना की प्रेरणा हमें संस्कृत की सूक्तियों से ही मिलती हैं। वेदों की ऋचाओं से ही मिलती हैं। राज्य सभा के 251 वें सत्र में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पर एक बिल मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किया है। प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में संस्कृत के तीन प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालय विश्वस्तरीय ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान को पूरी दुनिया को देंगे। जब  लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय बनेंगे तो युवाओं में संस्कृत पढ़ने की अनुसंधान करने की प्रबल रुचि अपने आप जागृत होती। इन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयों  में संस्कृत पाली और प्राकृत की पांडुलिपियों पर अनुसंधान और प्रकाशन का भी अवसर मिलेगा। इन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयों में विश्वस्तरीय अध्यापक और वैज्ञानिक मिलकर काम भी कर सकेंगे।
भारत के प्राचीन ज्ञान गौरव नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों की पूर्ति निश्चित ही ये तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय सुनिश्चित करेंगे। भारत से बाहर अनेक देशों में प्राथमिक स्तर पर ही संस्कृत भाषा का छात्रों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।  लंदन जहां एक विद्यालय सेंट जेम्स स्कूल अपने छात्रों को संस्कृत भाषा में पारंगत कर रहा है। ऑक्सफोर्ड से पढ़ी लंदन की एक युवती  गैब्रिएला बर्नेल संस्कृत भाषा के वैश्विक प्रचार के लिए प्रतिदिन संस्कृत में मधुर गीत गाती हैं। इतना ही नहीं लंदन की एक अन्य महिला लूसी गेस्ट संस्कृत भाषा में पिछले 30 वर्षो से शोध कर रही है। वह धाराप्रवाह संस्कृत बोलती हैं। संस्कृत को सरल माध्यम से सीखने के लिए लंदन की ही एक महिला ए. एम. रुप्पेल की पुस्तक को ही देख लीजिए।
आयरलैंड का एक स्कूल जॉन स्कॉट्स स्कूल अपने पाठ्यक्रम में छात्रों को संस्कृत पढ़ाता है। उस विद्यालय के धारा-प्रवाह संस्कृत बोलने वाले संस्कृत-अध्यापक रु ट्गर कोर्टन-होस्ट प्रत्येक वर्ष अपने विद्यालय के छात्रों को गहन अध्ययन के लिए भारत के गुरुकुलों में ले जाते हैं। पीएचडी कर चुके वैज्ञानिक डॉ. जेम्स हर्ट्जेल ने अपने शोध से सिद्ध किया कि संस्कृत भाषा को सीखने पर स्मृति तेज होती है। उनका यह शोध ‘संस्कृत इफेक्ट’ नाम से अमेरिका के प्रसिद्ध ‘साइंटिफिक अमेरिकन जर्नल’ में प्रकाशित हुआ है। अमेरिका के ‘ब्रॉउन यूनिर्वसटिी के संस्कृत प्रोफेसर डॉ. पीटर.एम. श्रॉफ आजकल भारत में ‘कम्प्युटेशनल संस्कृत लिंग्विस्टिक’ पढ़ाते हैं। एक विशेष बात यह है कि हाल ही में भारत यात्रा पर आई हुई थाईलैंड की राजकुमारी चाक्रि सिरिनधोर्न ने स्वयं संस्कृत का अध्ययन किया है।

डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’


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