जीवन-मूल्य : बेहतर दुनिया के लिए जरूरी
हिंसा विषमता और पर्यावरण विनाश की गंभीर समस्याओं के समाधान के लिए कई बड़ी योजनाएं विश्व स्तर पर चर्चित रही हैं, पर इनका समुचित लाभ इस कारण नहीं मिल पाता है कि प्रचारित जीवन-मूल्य इनके अनुकूल नहीं हैं।
जीवन-मूल्य : बेहतर दुनिया के लिए जरूरी |
मौजूदा जीवन-मूल्य इस तरह के हैं कि कुछ बहुत जरूरी विचारों को अव्यावहारिक कहकर उपेक्षित कर दिया जाता है।
शिक्षा में सुधार के लिए भी प्राय: यह कहा तो जाता है कि मूल्य-आधारित शिक्षा हो और महत्त्वपूर्ण, सार्थक जीवन-मूल्यों का समावेश शिक्षा में हो। इसे भी प्राय: स्वीकार किया जाता है कि यह जीवन-मूल्य किसी एक कर्म पर आधारित नहीं होने चाहिए बल्कि ऐसे होने चाहिए कि सभी मजहबों में इनके बारे में आम स्वीकृति हो सके। फिर भी ठीक-ठीक किन जीवन-मूल्यों का समावेश ही इस विषय पर व्यापक सहमति बताने में और इसे आगे ले जाने में अभी विशेष सफलता नहीं मिल सकी है। ऐसे जीवन-मूल्यों की तलाश करें जिन पर बहुत व्यापक सहमति बन सकती है व साथ में वे बहुत जरूरी भी हैं तो तीन जीवन-मूल्य स्पष्ट नजर आते हैं। इनमें से पहला तो यह है कि जान-बूझकर किसी व्यक्ति या जीव को दुख-दर्द न पहुंचाया जाए। यह कहने को तो बहुत साधारण की बात लगती है, पर दैनिक जीवन में ही इसे लागू करके देखा जाए तो इस एक जीवन मूल्य से ही बहुत व्यापक व सार्थक बदलाव आ सकते हैं। नीतिगत स्तर पर इसे अपनाया जाए तो और भी बड़े व सार्थक बदलाव आ सकते हैं।
दूसरा आम सहमति का जीवन-मूल्य यह है कि किसी भी व्यक्ति से भेदभाव न किया जाए और सबकी समानता को स्वीकार किया जाए। इसका अर्थ यह है कि राष्ट्रीयता, धर्म, जाति, लिंग, रंग, नस्ल आदि के भेदभाव पर आधारित कोई अन्याय किसी के साथ न हो व न हो कोई अन्याय करने के बारे में सोचा जाए, कोई ऊंच-नीच का या शत्रुता-वैमनस्य का विचार मन में न आए। यह एक बहुत बुनियादी जीवन-मूल्य है तो भी प्राय: इसकी उपेक्षा हो रही है व इसके विरोधी जीवन-मूल्यों को बढ़ती जगह मिल रही है। तीसरा महत्त्वपूर्ण जीवन-मूल्य है कि सादगी को, सादी जीवन-शैली को, उपभोग को स्वेच्छा से सीमित रखने को बढ़ती मान्यता व प्रोत्साहन मिले। इन दिनों तो उपभोक्तावाद का जोर है और बहुत से अनावश्यक खचरे को तरह-तरह से बढ़ाया जा रहा है। इस कारण लालच, एक-दूसरे से छीनने की प्रवृत्ति, हिंसा व तनाव बढ़ते हैं, पर्यावरण का विनाश बढ़ता है। दूसरी ओर सादगी का जीवन जीने से यह समस्याएं कम करने में बहुत मदद मिलती है। पर्यावरण की रक्षा व हिंसा कम करने में सादगी के जीवन से बहुत सहायता मिलती है। यह तीनों जीवन-मूल्य एक-दूसरे से जुड़े हुए भी हैं। इन जीवन-मूल्यों का प्रसार एक साथ होगा तो एक जीवन मूल्य से दूसरे जीवन मूल्य को सहायता मिलेगी। इन जीवन-मूल्यों की चाहे आज उपेक्षा हो रही हो, पर इनकी सार्थकता से शायद ही कोई इनकार कर सकता है। अत: इन जीवन-मूल्यों पर व्यापक सहमति बनाने में भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए। इन जीवन-मूल्यों पर सभी मजहबों के लोगों की एक राय बनाना संभव है। कोई भी जीवन-मूल्य ऐसा नहीं है जो किसी मजहब के विरुद्ध हो। चाहे कोई किसी भी धर्म को मानता हो, या नास्तिक हो, वह इन जीवन-मूल्यों को अपना सकता है क्योंकि इन जीवन-मूल्यों का आधार तो नैतिकता है, सभी की भलाई है। यदि इन जीवन-मूल्यों का व्यापक प्रसार विश्व में पांच वर्षो के लिए भी निरंतरता से किया जाए तो विश्व को अनेक बड़ी समस्याओं को सुलझाने के लिए अनुकूल माहौल बताने में बहुत मदद मिलेगी।
विश्व आज अनेक स्तर पर गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। इस बहुपक्षीय संकट का समाधान केवल कुछ नेताओं या उनकी वार्ताओं में नहीं है। असरदार समाधान के लिए बड़े पैमाने पर, जमीनी स्तर पर जनसाधारण की सोच में बदलाव जरूरी है। अत: विश्व में सार्थक व जरूरी बदलाव के अनुरूप जीवन-मूल्यों को प्रतिष्ठित करना जरूरी है। यह विश्व स्तर का एक ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य है, जिसके महत्त्व को भली-भांति समझने में व इसे तेजी से आगे ले जाने में अब और देर नहीं करनी चाहिए। जीवन मूल्यों में उचित बदलाव लाने के लिए शिक्षण संस्थान की अहम भूमिका हो सकती है। यह प्रयास प्राथमिक स्कूल से आरंभ होकर कालेज की शिक्षा तक विभिन्न रूपों में चलने चाहिए। दूसरी ओर जीवन-मूल्यों में सार्थक बदलाव लाने के लिए परिवार की भूमिका भी बहुत अहम है। यदि मीडिया इस पर उचित ध्यान दे तो बेहतर होगा। अच्छी पुस्तकों के प्रसार व लाईब्रेरियों की भी इस प्रयास में बहुत सार्थक भूमिका है।
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