वैश्विकी : कोरोनामय वसुधैव कुटुंबकम
बीमारी सबसे बड़ी शिक्षक होती है। कोविड-19 (कोरोना वायरस) की विश्वव्यापी महामारी का यही संदेश है।
वैश्विकी : कोरोनामय वसुधैव कुटुंबकम |
जो बात विश्व के नेताओं को सामान्य ज्ञान और वैचारिक समझ से सीखनी चाहिए थी, वह बात एक महामारी ने समझा दी है। कोरोना वायरस ने जहां एक ओर मुनाफे और स्वार्थ सिद्धि पर आधारित वैश्वीकरण के लिए मौत की घंटी बजा दी है, वहीं मानवता के व्यापक हित के लिए एक उदार वैश्वीकरण का आगाज कर दिया है। यह एक विडंबना है कि कोरोना वायरस का फैलाव जितना व्यापक होगा उसी मात्रा में दुनिया के नेताओं और सामान्य लोगों को इस बात का भान होगा कि सीमाओं के आधार पर अलग-अलग देशों में विभाजित पृथ्वी ग्रह के प्राणियों का जीवन और भविष्य एक दूसरे के साथ कितना घनिष्ठ रूप से जुड़ा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व मंचों से पिछले वर्षो के दौरान भारत के वसुधैव कुटुंबकम के आदर्श का प्रचार-प्रसार करते रहे हैं। पृथ्वी हमारी मां है और हम सब उसकी संतान हैं। भारत का यह विचार आज एक अनिवार्य आवश्यकता बन गया है। इतना ही नहीं, पशु-पक्षी समेत पूरा प्राणि जगत और फूल-पौधों सहित सभी वनस्पतियों पर मानव जीवन का अस्तित्व निर्भर है। कोरोना वायरस ने दंडात्मक रूप से दुनिया भर को यह सीख दी है।
कुछ दशक पहले तक बहुराष्ट्रवाद के वाहक बहुराष्ट्रीय निगम हुआ करते थे जो दुनिया भर में मुनाफे के लिए अपना कारोबार फैलाते थे। दुनिया के प्रभावशाली देश मुनाफे से ऊपर उठकर कुछ सोचने और करने से इनकार करते थे। उनका यह ढर्रा आज भी जारी है। इसी संकीर्ण मानसिकता का परिणाम है कि मुनाफे से हटकर विश्व में शांति और स्थायित्व कायम करने वाले संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रमंडल और निगरुट आंदोलन संस्थाओं को निष्क्रिय या निष्प्रभावी बना दिया गया। कोरोना वायरस से निपटने के लिए आज भी कोई ताजा वैश्विक रणनीति दिखाई नहीं दे रही है। कहने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बीमारी के बारे में दिशा-निर्देश जारी कर रहा है लेकिन संसाधनों और शक्तियों के अभाव में वह एक निगरानी अथवा नियामक संस्था बनने की स्थिति में नहीं है। इसलिए दुनिया में आज यह विचार मजबूती से पेश किया जा रहा है कि एक विश्व सरकार जैसी संस्था या मंच होना चाहिए जो सीमाओं को पार करने वाली बीमारियों और आपदाओं का मुकाबला करने में विभिन्न देशों का मार्गदर्शन कर सके।
भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उन्होंने क्षेत्रीय स्तर पर ही सही एक अंतरराष्ट्रीय रणनीति तैयार करने की पेशकश की है। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) देशों के सामने मोदी ने साझा रणनीति का जो प्रस्ताव रखा है, वह दुनिया के अन्य देशों के लिए अनुकरणीय उदाहरण बन सकता है। मोदी के इस प्रस्ताव का सार्क के अन्य देशों के नेताओं ने बढ़-चढ़कर स्वागत किया है। उनका सुझाव है कि सार्क देशों के नेता वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस के खतरे का मुकाबला करने के उपायों पर विचार-विमर्श कर सकते हैं। मोदी के इस प्रस्ताव के जवाब में नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव के राष्ट्राध्यक्षों ने मिलजुल कर काम करने का आश्वासन दिया है। जाहिर है कि भारतीय उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय ताकतें अगर कमर कस लें तो कोरोना वायरस को हराना संभव ही नहीं होगा, बल्कि मानव कल्याण के लिए इस क्षेत्र के विभिन्न देशों के बीच सहयोग के नये युग की शुरुआत भी होगी। अब तक सीमापार आतंकवाद के जरिए भारत के लिए समस्या पेश करने वाला पाकिस्तान भी अब इस सच्चाई से मुंह मोड़ नहीं सकता कि वास्तविक समस्या गरीबी, अभाव और बीमारी से लड़ना है। मोदी की इस पेशकश को पाकिस्तान द्वारा स्वीकार किया जाना यह उजागर करता है कि वहां का नेतृत्व अस्तित्व के संकट की गंभीरता को समझता है। बीमारी के प्रकोप से ही सही पाकिस्तान का नेतृत्व इस सच्चाई को आत्मसात कर सकता है कि समस्या पैदा करना ही नहीं, बल्कि समस्या का समाधान खोजना ही श्रेयस्कर है।
कोरोना वायरस संकट का जब अंत होगा तो दुनिया में सहयोग और मिल-जुल कर काम करने के नये युग की शुरुआत होने की आशा की जानी चाहिए। इस बारे में अंतिम संदेश यही हो सकता है कि स्वार्थ-आधारित वैश्वीकरण मर गया, मानव-कल्याण-आधारित वैश्वीकरण अमर रहे।
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