मीडिया : कोरोना की कल्चर

Last Updated 15 Mar 2020 12:24:10 AM IST

न कोरोना होता न मीडिया ‘नमस्ते’ की महिमा बखानता और न ही दुनिया की क्लास लगाता कि कोरोना से बचना है तो किसी से हाथ न मिलाना, अभिवादन करना हो तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय शैली वाला ‘नमस्ते’ ही करना! अगर कहीं हाथ मिलाया तो कोरोना आ जाएगा और चौदह दिन के लिए आपको ‘क्वेरेंटाइन’ में डाल देगा।


मीडिया : कोरोना की कल्चर

अपने पीएम ने भी कह दिया है कि ‘नमस्ते’ करना ही ठीक है। लेकिन हमारे हिसाब से तो ‘नमस्ते’ के साथ ‘आदाब’ करना भी चलेगा। ये फिरंगी लोग भी विचित्र हैं। अभिवादन के लिए वे या तो हाथ मिलाते हैं या गाल मिलाते हैं। लेकिन अचानक, ‘कोरोना’ ने कह दिया कि बेटा! अगर हाथ मिलाया या एक दूसरे से गाल रगड़े तो कोरोना के ‘रिस्क जोन’ में आ जाओगे। बच नहीं सकोगे। इसलिए बेहतर हो कि हाथ न मिलाओ या गाल से गाल न मिलाओ। कोरोना की एक से एक चेतावनियां सुनकर कुछ फिरंगियों ने अभिवादन के कुछ वैकल्पिक तरीके भी प्रदर्शित किए जैसे कि मीडिया में कुछ बड़े फिरंगी लोग एक दूसरे की लात से लात मिलाते दिखे, फिर कुछ कोहनी से कोहनी भी मिलाते दिखे लेकिन ये तरीके शुरू में ही फ्लॉप हो गए। ऐसे लोगों को फिरंगियों के फिरंग प्रिंस चाल्र्स ने अपनी मिसाल पेश कर समझाया कि अगर कोरोना से मुक्त रहना है तो भारत का ‘नमस्ते’ अपनाओ।

इसे देख अंग्रेजी के एक बड़े अखबार ने भारतीय किस्म के ‘नमस्ते’ की महिमा पर एक छोटा सा संपादकीय तक ठोक डाला और बताया कि ‘नमस्ते’ की पोपूलरिटी किस तरह से ‘पश्चिम पर भारत की एक प्रकार की ‘पोस्ट कोलोनियल विजय’ जैसी है। दरअसल, हुआ यूं था कि प्रिंस चाल्र्स किसी से हाथ मिलाने वाले थे कि अचानक उनको कोरोना के खतरे से बचने की चेतावनी याद आ गई और हाथ मिलाना छोड़कर वे दूर से ही हाथ जोड़कर ‘नमस्ते’ करने लगे। है न यह सब दुनिया में हर किसी को परेशान कर रहे कोरोना का कमाल!
जब से कोरोना को महामारी घोषित किया गया है तब से मीडिया और डॉक्टर समझाते रहते हैं कि किसी से हाथ न मिलाएं, हाथों को साबुन से धोएं, जुकाम और खांसी वाला मास्क पहनें, दूसरों से तीन फीट दूर रहें। हाथों को हैंड सैनिटाइजर से साफ करते रहें। कोरोना ‘ग्रस्त से हरगिज न मिलें..मीडिया से ही मालूम हुआ कि यह दुष्ट कोरोना ‘एक सांस्कृतिक शिफ्ट’ की भी जरूरत महसूस कराने वाला है। पश्चिमी लोगों में ‘हैंडशेक’ का कल्चर है। मुलाकात होने पर वे एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं या गाल मिलाते हैं। हाथ मिलाना या गाल मिलाना देसी फिरंगियों में भी चल निकला है। लेकिन कोरोना आया तब से सब समझने लगे हैं कि जब हाथ मिलाना इतना रिस्की तो गाल मिलाना कितना रिस्की न होगा!
जब हॉलीवुड के हीरो टॉम हैंक्स या कनाडा के राष्ट्रपति जस्टिन त्रुदू को, बाजील के राष्ट्रपति को कोरोना हो सकता है तो अपने यहां के हाथ या गाल मिलाने वालों को क्यों नहीं हो सकता? और, अगर ये फिरंगी जानते और मानते कि भारतीय नमस्ते करना अभिवादन का सबसे सुरक्षित तरीका है तो वे कोरोना की चपेट में क्यों आते? लेकिन इस ‘नमस्ते’ के भी दुश्मन कम नहीं। ‘नमस्ते’ की घर वापसी को देखकर कुछ ज्ञानी बोलने लगे कि ‘नमस्ते’ तो छूआछूत का प्रतीक रहा है। ऊंची जाति नीची से हाथ नहीं मिलाना चाहती थी, इसलिए ‘नमस्ते’ शुरू किया गया होगा।
अब ऐसों को कोई क्या बताएं कि अपने यहां हाथ जोड़कर ‘प्रणाम’ करने, ‘नमन’ करने, ‘नमस्ते’ करने, ‘नमस्कार’ करने का इतिहास बहुत पुराना है। ‘नमस्ते’ की मुद्रा कहती है कि मैं आपके आगे झुकता हूं। आप बड़े हैं। मैं छोटा हूं और आपके आगे ‘झुकता’ हूं, ‘नमता’ हूं, ‘नबता’ हूं और इस तरह आपको नमन करता हूं। ‘नमस्ते’ शब्द ‘श्रद्ध’ और ‘भक्ति’ के स्कूल का शब्द है। दरअसल, वह श्रद्ध का विस्तार ही है।
यों अभिवादन के अपने यहां अनंत तरीके हैं। आप ‘प्रणाम’ बोलकर या ‘नमस्ते’ बोलकर या ‘राम राम’ या ‘राधे राधे’ बोलकर भी अभिवादन कर सकते हैं और अपने सेक्युलर समाज में आप चाहें तो ‘आदाब अर्ज है’ या सिर्फ ‘आदाब’ या ‘खुशामदीद’ कहकर भी अभिवादन कर सकते हैं और इस तरह कोरोना से बचे रह सकते हैं। एक वक्त रहा जब ‘छूआछूत’ एक ‘जातिवादी’ और ‘मानव विरोधी’ हरकत मानी जाती थी। आज कोरोना ने हमें नये किस्म की ‘छूआछूत’ सिखा दी है जो ‘जातिवादी’ न होकर ‘स्वास्थ्यवादी’ है। क्या पता था कि एक दिन दुष्ट कोरोना हमें हमारी अपनी ही कल्चर सिखाएगा।

सुधीश पचौरी


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