बतंगड़ बेतुक : सब सिद्धांतों की खातिर हुआ

Last Updated 15 Mar 2020 12:19:22 AM IST

‘बधाई ददाजू’, झल्लन ने हमारे गोड़ को हाथ लगाया फिर हमें देखकर मुस्कुराया। ‘ये क्या बधाई राग गा रहा है, अब किस बात की बधाई लेकर आ रहा है?’


बतंगड़ बेतुक : सब सिद्धांतों की खातिर हुआ

हमने अपनी रौ में पूछा और झल्लन अपनी रौ में बोला, ‘कमलनाथ का कमल हिल गया, भाजपा का कमल खिल गया। लगता है मध्य प्रदेश के राज पर फिर शिवराज राजेंगे और महाराज सिंधिया राज्य सभा में विराजेंगे।’ हमने कहा, ‘तूने हमें भाजपाई समझ लिया है जो इस खबर पर हष्राएं और तेरी चिरकुटिया बधाई पाकर मुस्काएं?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, कभी तो खुद को इधर से उधर कर लिया करो, मौका मिले तो थोड़ा हंस भी लिया करो। बहुत दिन बाद भाजपा के घर में बंदनवार सजे हैं, बधावे बजे हैं सो आप भी थोड़ा खुश हो लीजिए, भाजपा को बधाई दे दीजिए।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, मुल्क की सियायत दिनोंदिन गंदी हो रही है, नेताओं की हकीकत लगातार नंगी हो रही है। कोई पद के लिए बिक रहा है तो कोई पैसे के लिए बिक रहा है, तुझे कोई ऐसा दिखाई देता है जो शुद्ध सिद्धांत पर टिक रहा है? और ऐसी सूरत में तू चाहता है कि हम हंस लें, बधाई लेकर हम भी इस पंक में धंस लें।’ झल्लन बोला, ‘देखो ददाजू, हम जब भी आपके पास आते हैं ज्यादा से ज्यादा आपकी हां में हां मिलाते हैं, पर इस बार अपनी खुली असहमति जताते हैं।’ हमने कहा, ‘किस बात पर असहमति जता रहा है, इस बात पर कि नेता पद-पैसे के लिए बिक जाते हैं, बेशर्मी से इधर से उधर लुढ़क जाते हैं।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हमने कब कहा कि आपने सही बात कही नहीं है परंतु इस बार आपका सिद्धांत सही नहीं है। इस बार मध्य प्रदेश  में जो हुआ वह पद-पैसे के लिए नहीं हुआ, जो सिद्धांत हमेशा खतरे में रहते हैं उन सिद्धांतों के लिए हुआ।’ हमने कहा, ‘यहां जो कुछ हुआ वह पूरी तरह गैर-सैद्धांतिक हुआ और तू कहता है सिद्धांतों के लिए हुआ?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप बड़े हैं इसलिए कभी-कभी बड़ी गड़बड़ कर देते हैं और जो शात सिद्धांत हैं उन्हें सिद्धांत मानने में लफड़ कर देते हैं। ये वे सिद्धांत हैं जो आदिकाल से चल रहे हैं और आज भी हर राजनीतिक दल में पनप-पल रहे हैं।’

हमने झल्लन की ओर सवालिया निगाह से देखा तो वह बोला, ‘अब हम सीधे मुद्दे पर आते हैं और शात सिद्धांतों के बारे में आपकी समझदारी बढ़ाते हैं। पहला सिद्धांत सुख-शांति का है-व्यक्ति सुख-शांति से जिस आसन पर बैठता है एक दिन उसे लगता है कि आसन के नीचे कील-कांटे उग आये हैं, भले ही ये खुद उसकी करतूत हो पर उसे लगता है कि उसके आस-पास वालों ने या खुद उसकी पार्टी के लोगों ने उगाए हैं। तब वह नये सिरे से सुख-शांति की तलाश में फुदक लेता है और कभी-कभी किसी लग्जरी रिसार्ट तक कुदक लेता है। दूसरा सिद्धांत सुविधानंद का है-व्यक्ति या नेता चाहता है कि वह हर समय सुविधाओं की चादर ओड़े रहे, सुविधाओं के सारे आनंद अपने साथ जोड़े रहे, मगर यकायक पार्टी रूपी सुविधाओं की चादर में परेशानी के खटमल पैदा हो जाते हैं जो उसे काटने लगते हैं। तब वह इस खटमली चादर को त्याग देता है और किसी और से मिली नयी सुविधाओं की नयी चादर सर पर तान लेता है।’
अगला सिद्धांत है सम्मान का सिद्धांत-नेता को औचक ध्यान आता है कि उसका अपना एक मान है, औरों की नजर में हो या न हो पर खुद अपनी नजर में तो उसका भरपूर सम्मान है ही। या तो उसकी पार्टी वालों को उसके सम्मान में बिछ जाना चाहिए अन्यथा अपने सम्मान की खातिर उसे कहीं और ही  खिसक जाना चाहिए। जब पार्टी नहीं बिछती तो वहां से वह अपना गद्दा उठा लेता है और अपने कथित सम्मान के लिए कहीं और जाकर लगा देता है।
और ददाजू, अगला सिद्धांत महत्त्वाकांक्षा का सिद्धांत है-जब व्यक्ति को अपने दल में लगता है कि उसके महत्त्व को नहीं समझा जा रहा या उसे वाजिब महत्त्व नहीं दिया जा रहा तो वह अपने महत्व को दर्शाने के लिए अपना दल छोड़ देता है और जो दल उसकी महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने का वादा करे उससे नाता जोड़ लेता है। और सबसे बड़ा सिद्धांत है आत्मा की आवाज का सिद्धांत-एक पार्टी में रहते-रहते व्यक्ति की आत्मा सो जाती है या आड़ी-तिरछी राजनीति की भूलभुलैया में खो जाती है। तब अचानक एक दिन उसकी आत्मा कुलबुलाकर जाग जाती है और जागी हुई आत्मा की आवाज आती है-रे मूर्ख, जिनसे जुड़ा हुआ है उनने तुझे क्या दिया, उन्हें छोड़ और जो तुझे बुला रहे हैं उनसे गांठ जोड़। और जाग्रत-आत्मा व्यक्ति बिना शर्म संकोच के आत्मा का आदेश मान लेता है, आत्मा नाप-तौलकर जिस तरफ इशारा करती है उसी तरफ भाग लेता है।’
हमने मुस्कुराते हुए कहा, ‘तो मध्य प्रदेश का तेरा यह सिद्धांत पुराण खत्म हो गया है या कुछ शेष रह गया है?’ झल्लन उठते हुए बोला, ‘बस ददाजू, अब हम यहीं रुकेंगे बाकी तब कहेंगे जब आप ध्यान से सुनेंगे।’

विभांशु दिव्याल


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