सीडीएस : नियुक्ति के निहितार्थ

Last Updated 31 Dec 2019 12:27:09 AM IST

सरकार द्वारा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के पद पर जनरल बिपिन रावत की नियुक्ति रक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण घटना है।


सीडीएस : नियुक्ति के निहितार्थ

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से सीडीएस की नियुक्ति की घोषणा की थी। उसके बाद साफ हो गया था  कि आने वाले समय में कभी भी किसी व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त किया जा सकता है। वास्तव में यह लंबे समय से रक्षा विशेषज्ञों की मांग को पूरा किए जाने का कदम है। सीडीएस के लिए हिंदी में हम आगे शायद प्रधान सेनापति शब्द का प्रयोग करें।
प्रधानमंत्री ने यही कहा था कि बदले हुए समय में हमें सेना के तीनों अंगों को समान रूप से विकसित करना होगा यानी यह नहीं होना चाहिए कि थल सेना तो ज्यादा मजबूत हो लेकिन वायु सेना उससे कम और नौसेना काफी कम। तीनों का अपना महत्त्व है। तीनों की क्षमता और आवश्ययकता के बीच समानता होनी चाहिए। यह भी आवश्यक है कि तीनों सेनाओं के बीच पूर्ण तालमेल हो। दुनिया की रक्षा तैयारियों को देखें तो निष्कर्ष यही निकलता है कि आने वाले समय में जो भी युद्ध होगा वह काफी सघन होगा।  वह ज्यादा लंबा नहीं चल सकता। एक साथ देश की पूरी ताकत उसमें झोंकी जाएगी। जिसके पास सेना के तीनों अंग समान रूप से सक्षम होंगे उसकी स्थिति मजबूत होगी।

भारत जैसे देश के लिए तो यह अपरिहार्य है। जिन्हें 1999 में करगिल में पाकिस्तानी सेना की हमारी सीमा में घुसपैठ और उसके बाद हुए युद्ध की पूरी कहानी पता है, वे जानते हैं कि किस तरह उस दौरान थल सेना और वायु सेना के बीच भयावह मतभेद उभरे थे। यह हमारी बहुत बड़ी कमजोरी साबित हुई थी। युद्ध आरंभ होने के 22 दिन बाद सरकार को वायु सेना को शामिल होने का आदेश देना पड़ा था। तब तक काफी नुकसान हो चुका था। इसका मूल कारण यही था कि तीनों सेनाओं के बीच रणनीतिक विमर्श का तालमेल तथा सरकार के साथ समन्वय बिठाने वाला अधिकारप्राप्त कोई पद नहीं था। छब्बीस जुलाई को करगिल युद्ध की समाप्ति के बाद 29 जुलाई, 1999 को वाजपेयी सरकार ने दो समितियां गठित की थीं। इनमें एक करगिल रिव्यू कमेटी यानी करगिल समीक्षा समिति का गठन के. सुब्रमण्हयम की अध्यक्षता तथा रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति जनरल डीबी शेकाटकर की अध्यक्षता में गठित की गई थी। सात जनवरी, 2000 को इनकी रिपोर्ट आ गई। दोनों समितियों ने सीडीएस की सिफारिश की थी। करगिल समीक्षा समिति ने सीडीएस के साथ ही वाइस सीडीएस बनाने की सिफारिश भी की थी। रिपोटरे पर विचार करने के लिए तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण  आडवाणी की अध्यक्षता में 2001 में मंत्रियों का एक समूह गठित हुआ जिसने रिपोर्ट को स्वीकार कर सीडीएस बनाने की अनुशंसा कर दी। इसके बाद की भूमिका नौकरशाही के हाथ आ गई। वहां से इसमें अड़ंगा लगना आरंभ हो गया। तर्क दिया गया कि तीनों सेना की एक कमान बनाकर उसके शीर्ष पर किसी व्यक्ति को बिठा दिया गया तो सैन्य विद्रोह की संभावना बढ़ जाएगी किंतु वाजपेयी इस पर अड़ रहे।
तदोपरांत एक नई संरचना सामने आई। अक्टूबर, 2001 में हेटक्वार्टर इंटिग्रेटिड डिफेंस स्टाफ (एचक्यूआईडीएस) बनाया गया। यह संगठन पिछले 18 वर्ष से काम कर रहा है, लेकिन इसका अलग से कोई प्रमुख नहीं है। वस्तुत: वीसीडीएस को चीफ ऑफ इंटिग्रेटिड डिफेंस स्टाफ में तब्दील करते हुए चेयरमैन चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (सीआईएससी) का रूप दिया गया। तीन सेना प्रमुखों में से वरिष्ठ को चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी का अध्यक्ष बना दिया जाता है। उसके पास कोई अधिकार नहीं है। वहां से रक्षा मंत्री तक पत्राचार होता है। रक्षा सचिव उसे फाइलों में रख दें या रक्षा मंत्री के सामने  रखें, यह उनका अधिकार है। सच यही है कि सीआईएससी अपनी कमजोरियों के कारण सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल बिठाने में सफल नहीं है। इसकी किसी मायने में प्रभावी भूमिका है ही नहीं। हो भी नहीं सकती। रक्षा सचिव को रक्षा मामले में सबसे ज्यादा अधिकार प्राप्त हैं। ध्यातव्य है कि सेना व रक्षा विशेषज्ञों द्वारा मामला उठाने पर 2012 में यूपीए सरकार ने नरेश चंद्र समिति का गठन किया था। उनकी सिफारिश थी कि चेयरमैन, चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी को स्थायी कर दिया जाए। सेनाध्यक्षों में से सबसे वरिष्ठ को इसका अध्यक्ष बनाया जाए। दरअसल, नौकरशाही में हमेशा सीडीएस को लेकर गहरा संदेह रहा है। इसलिए वे इसके पक्ष में न सिफारिश कर सकते थे न सिफारिश को स्वीकार।
चूंकि प्रधानमंत्री ने घोषणा कर दी थी तो इसका साकार होना सुनिश्चित है। लेकिन  केवल पद गठित करके उस पर किसी को बिठा देने भर से आवश्यकताएं पूरी नहीं होंगी। तो? यह न तो इतना उच्चाधिकार प्राप्त पद होगा जिससे कोई बड़ा खतरा पैदा हो और न बिना अधिकार के केवल नामधारी होगा। वह एक चार-तारा सैन्य अधिकारी होगा जिसके हाथों कमान और नियंत्रण केंद्रित होगी यानी सीडीएस की नियुक्ति के साथ एकीकृत कमान संरचना आरंभ हो गई है। अब सैंन्य मामले फाइलों में दबे नहीं रहेंगे। कहना न होगा कि सीडीएस तीनों सेनाओं के बीच तालमेल की भूमिका अदा करेगा यानी उनके बीच जहां भी मतभेद होगा उसे दूर करेगा। जाहिर है कि सीडीएस के आविर्भाव से सेनाओं की कार्यप्रणाली में सुधार हो जाएगा। वह औपनिवेशिक प्रणाली से मुक्त होगी किंतु इसको पूर्णता देने के लिए कई कदम उठाने होंगे। मसलन, रक्षा मंत्रालय की संरचना में भी नये सिरे से व्यापक बदलाव हों। इसका चरित्र भी समन्वित कमान का होना चाहिए। एक सुझाव यह भी है कि रक्षा भूमि और पूंजीगत बजट को सीडीएस के तहत ला दिया जाए।
सीडीएस सीधे रक्षा मंत्री के प्रति जवाबदेह होगा। सीडीएस की नियुक्ति के बाद सेना के तीनों प्रमुखों की भूमिका में भी थोड़ा बदलाव होगा। आखिर उनके शीर्ष पर अब एक अधिकार प्राप्त सेनापति आ गया है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इनको सामान्य स्थिति में जवानों के प्रशिक्षण, संगठन और सैन्य साजो-सामान से सुसज्जित करने जैसे मूल काम पर फोकस करना चाहिए। सीडीएस तीनों सेना प्रमुखों से विचार-विमर्श के बाद ही रणनीति को अंतिम रूप देकर रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री को अवगत कराएंगे। वास्तव में मूल प्रश्न रक्षा मामले में राष्ट्रीय सोच तथा कार्यसंस्कृति को विकसित करने का है। उम्मीद है कि सीडीएस के गठन के साथ इसकी शुरु आत हो जाएगी। प्रमुख देशों में यह काफी पहले हो चुका है। हम काफी समय पीछे रह गए थे।

अवधेश कुमार


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