सरोकार : सिंगल औरतों का प्रजनन अधिकार

Last Updated 29 Dec 2019 12:10:37 AM IST

चीन में पिछले दिनों एक गजब मामला सुनने में आया। तेरेसा जू नाम की 31 साल एक महिला बीजिंग के एक बड़े अस्पताल को अदालत में घसीट ले गई।


सरोकार : सिंगल औरतों का प्रजनन अधिकार

उसका कहना था कि अस्पताल में उसके व्यक्तिगत अधिकारों का हनन किया गया है। दरअसल, पिछले साल तेरेसा बीजिंग के एक अस्पताल में अपने एग्स को फ्रीज कराने के सिलसिले में गई थी। डॉक्टर ने उससे कहा कि वह सिंगल है, और यह रेग्यूलेशंस के खिलाफ है। फिर सलाह दी कि उसे जल्दी से शादी कर लेनी चाहिए और फिर बच्चे भी कर लेने चाहिए। तेरेसा को लगा कि उसके साथ बच्चे जैसा व्यवहार किया जा रहा है। फिर क्या था, उसने अस्पताल पर केस कर दिया।
इसके बाद चीन में अकेली महिला के प्रजनन के अधिकारों पर देशव्यापी बहस छिड़ गई। वहां औरतों का बड़ी उम्र में शादी करना, या शादी न करने का चलन बढ़ रहा है। पहले परिवारों पर सिर्फ  एक बच्चा पैदा करने का प्रतिबंध था। अब दो बच्चों की अनुमति दी गई है लेकिन यह सिंगल औरतों पर लागू नहीं होता। चीन के हेल्थ रेग्यूलेशंस के हिसाब से एग्स फ्रीज करने की अनुमति भी कपल्स को है। स्पर्म बैंक्स भी खुल गए हैं। इसीलिए सिंगल औरतों को इस काम के लिए विदेश जाना पड़ता है जोकि काफी खर्चीला सौदा होता है।

तेरेसा इस काम के लिए बाहर नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि उसका मानना था कि यह उसका बुनियादी अधिकार है। इस अस्पताल से पहले तेरेसा को तीन दूसरे अस्पताल मना कर चुके थे। उसके लॉसूट को भी कम से कम तीन बार नामंजूर किया गया। मीडिया ने भी कई सवाल उठाए। कइयों ने कहा कि सिंगल पुरुषों को स्पर्म फ्रीज करने की इजाजत है लेकिन शादीशुदा औरतों को फैमिली प्लानिंग रूल्स के अंतर्गत प्रजनन के लिए अपनी शादी का सर्टिफिकेट दिखाना पड़ता है। कई अस्पताल तो महिलाओं से उनके पतियों की सहमति की भी मांग करते हैं। हालांकि तेरेसा की इस मुकदमे को जीतने की संभावना कम है, लेकिन इसने सार्वजनिक तौर पर जीत हासिल की है। लोगों को नजरिया बदल रहा है।
दरअसल, यह लैंगिक समानता का सवाल है। प्रजनन की आजादी महिलाओं का बुनियादी अधिकार है। अपने देश में भी सरकारें कई स्तरों पर इस बारे में तय करती हैं। असम सरकार ने एक नीति मसौदा तैयार किया है कि दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को न तो सरकारी नौकरी मिलेगी, और न पंचायत और लोकल बॉडीज के चुनावों में खड़ा होने का मौका। सुनकर अच्छा लगता है कि जनसंख्या नियंत्रण पर सरकार ने पहल की है। लेकिन इससे होगा क्या.. गरीब महिलाएं ऐसे तो सरकारी नौकरियां हासिल नहीं कर सकेंगी। लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पाएंगी। गंभीर सवाल यह है कि बिना अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली तैयार किए प्रशासन किस तरह महिलाओं के प्रजनन अधिकार पर कब्जा करने की फिराक में है।
एक तरफ बच्चे कम करने का दबाव है, दूसरी तरफ बच्चों को जन्म न देने का अधिकार भी सरकार के पास रहा है। छत्तीसगढ़ के बैगा समुदाय में औरतों को बंध्याकरण का हक सिर्फ  इसलिए नहीं था कि सरकार को उनकी जाति को संरक्षित करना जरूरी लगता है। 1979 का एक सरकारी नियम यह कहता था। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड की जनजाति है। संख्या में कम है, इसलिए बंध्याकरण के ऑपरेशन से पहले उन्हें सरकारी मंजूरी लेनी होती थी। बाद में वहां भी महिलाओं ने राज्य के उच्च न्यायालय से गुहार लगाई और यह अधिकार हासिल किया।

माशा


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