मुद्दा : भारतीय मुसलमान और सीएए

Last Updated 24 Dec 2019 03:24:46 AM IST

यद्यपि आजकल देश के विभिन राज्यों में सिटिजनिशप एमेंडमेंट एक्ट (सीएए ) को लेकर खासा आक्रोश है।


मुद्दा : भारतीय मुसलमान और सीएए

हिंसक प्रदशर्न भी हुए हैं। साथ ही, पूर्वोत्तर राज्यों में भी चिंता और भय है। पूर्वोत्तर की जनता विशेष रूप से असमियों को भय है कि वे अपने राज्य में बहुसंख्यक  नहीं रह पाएंगे। बांग्लादेश से आए  शरणार्थी उनके संसाधनों, सभ्यता और रोजगार को बुरी तरह प्रभावित करेंगे जबकि भारतीय मुसलमानों को चिंता सता रही है कि नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजनिशप (एनआरसी) द्वारा उनकी नागरिकता पर प्रश्न चिह्न लगाया जाएगा। उन्हें लग रहा है कि हिंदुओं को सीएए के तहत बिना सबूतों के ही नागरिकता दे दी जाएगी परंतु जो मुसलमान अपने बाप दादा के जन्म प्रमाण पत्र  नहीं दे सकेगा उसे जेल में डाल दिया जाएगा।

डरे हुए मुस्लमानों ने विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर सीएए के खिलाफ विरोध प्रदशर्न किए। विरोध प्रदशर्न करना यद्यपि हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है परंतु विरोध के नाम पर हिंसा और सार्वजानिक संपत्ति को नुकसान पहुंचना निंदनीय है, और अपराध भी। बहरहाल, भीड़ की हिंसा और पुलिस की ज्यादती, दोनों अनुचित हैं। अब प्रश्न यह है कि देश में व्यवस्था बहाल करने और  लोगों  विशेष  रूप  से मुसलमानों में फैले भय और भ्रांतियों  को दूर कैसे किया जाए? वास्तव में देश में जारी विरोध प्रदशर्नों और हिंसक घटनाओं के लिए सीएए को एनआरसी से जोड़ने का अनुचित प्रयास है।

 यह प्रयास विपक्षी दल  और ओवैसी जैसे कुछ मुस्लिम नेता भी कर रहे हैं परंतु सरकार  की  ओर  से भी ऐसा प्रचार किया गया था कि सीएए के बाद सारे देश में एनआरसी कराया जाएगा।  विपक्षी दलों ने स्थिति का लाभ उठाते हुए भ्रांति फैलाने का काम किया। मुसलमानों, आदिवासियों और असम की जनता को बहकाया कि एनआरसी से मुसलमानों और आदिवासियों को मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। यह भी प्रचारित किया कि जो मुस्लमान अपनी नागरिकता साबित करने के लिए उचित दस्तावेज़ अधिकारियों के सामने पेश नहीं कर पाएंगे उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा और उनका वोट डालने का अधिकार और अन्य सुविधाएं छीन ली जाएंगी। बांग्लादेशी हिंदुओं को असम में बसाया जाएगा और वहां रोजगार पर बांग्लादेशियों का कब्जा हो जाएगा। सो, अफवाहों और डर के कारण भी असम जला।

वास्तव में सीएए किसी की नागरिकता छीनने वाला कानून नहीं है, बल्कि यह अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिंक आधार पर प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने वाला कानून है। इसलिए कहा जा सकता है कि इससे किसी को डरने की कोई जरूरत नहीं है। अब जबकि बांग्लादेश ने अपने नागरिकों को भारत से वापस बुलाने के लिए लिस्ट  मांगी है तो असमियों को यह डर नहीं होना चाहिए कि बांग्लादेशी उन पर थोप दिए जाएंगे। दूसरी बात यह है कि जब बांग्लादेशी  मुसलमान अपने देश वापस चले जाएंगे तो फिर घुसपैठियों की समस्या ही नहीं रहने पाएगी। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसी स्थिति में एनआरसी की भी जरूरत नहीं रह जाएगी। इसलिए भारत  सरकार को तुरंत बांग्लादेश को घुसपैठियों की सूची सौंप देनी चाहिए। यूं भी देश भर में विरोध प्रदशर्नों से जहां जान-माल का भारी नुकसान हो चुका है, वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका और अन्य देशों में हमारे देश और मोदी सरकार के बारे में भ्रांतियां पैदा हो रही हैं। फिर, असंतोष और आक्रोश के हालात अभी भी बने हुए हैं। इस पृष्ठभूमि में हमारी सरकार को चाहिए कि वह स्पष्ट घोषणा करे  कि एनआरसी लागू नहीं किया जाएगा और यदि कराया भी जाएगा तो उसके लिए किसी भी नागरिक को अपने बाप-दादा  के जन्म प्रमाण पत्र नहीं, बल्कि कोई भी पहचान पत्र  यथा पासपोर्ट, वोटिंग कार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस या आधार कार्ड आदि देना होगा।

केंद्र सरकार को यह घोषणा भी करनी चाहिए कि जिन शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी उन्हें असम या अन्य किसी पूर्वोत्तर राज्य में ही नहीं, बल्कि देश के सभी प्रदेशों  में बसाया जाएगा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अल्पसंख्यक कायों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी बार-बार कह चुके हैं कि सीएए से किसी को डरने की जरूरत नहीं, क्योंकि यह नागरिकता देने वाला कानून है, लेने वाला नहीं परंतु विरोध प्रदशर्न फिर भी जारी हैं। इसलिए सरकार को स्पष्ट  घोषणा करनी चाहिए कि सीएए अवश्य  लागू  होगा परंतु एनआरसी नहीं बनाया जाएगा। विरोध करने वालों खास तौर पर मुसलमानों से अपील है कि वे न तो डरें और न ही विपक्ष के बहकावे में आएं। वे भारतीय मुसलमान हैं, और हमेशा रहेंगे।

असद रजा


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