सरोकार : फ्लेक्सिबल घंटों की चाहत में नौकरी ठुकरातीं औरतें
काम करने के फ्लेक्सिबल घंटों पर आजकल खूब बातें हो रही हैं। एक हालिया रिपोर्ट कहना है कि यूके के एक चौथाई वर्कर्स नौकरियों को सिर्फ इसलिए ठुकरा देते हैं कि उन्हें काम करने के फ्लेक्सिबल घंटे नहीं मिल पाते।
सरोकार : फ्लेक्सिबल घंटों की चाहत में नौकरी ठुकरातीं औरतें |
युवाओं की बात करें तो लगभग 40 फीसद काम और निजी जिंदगी में संतुलन न बना पाने के कारण नौकरियां ठुकरा देते हैं। यूके में पूर्व प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने फ्लेक्सिबल वर्किंग को अधिकार के रूप में मान्यता देने की बात की थी। लेकिन यूनिर्वसटिी ऑफ केंट की समाजशास्त्र और सामाजिक नीति विभाग की रीडर हीजुंग जुंग का अध्ययन कहता है कि काम के फ्लेक्सिबल घंटे होने पर जेंडर स्टीरियोटाइप्स बने रहते हैं। औरतों पर घर-परिवार की जिम्मेदारी और पुख्ता होती है। काम के फ्लेक्सिबल घंटे होने का एक अर्थ यह है कि आप घर पर रहकर काम कर सकती हैं। सड़कों की भीड़ भाड़ और लंबी दूरियां तय करने से बच सकती हैं। घर के काम और दफ्तर के काम, दोनों के बीच संतुलन बना सकती हैं। पर इसके अपने नुकसान भी हैं। अध्ययनों से साबित होता है कि औरतों को काम करने के फ्लेक्सिबल घंटे दिए जाते हैं, तो पहले बच्चे की पैदाइश के बाद उनके श्रमबल से बाहर निकलने की आशंका सबसे ज्यादा होती है।
भारत में 2017 के मातृत्व लाभ अधिनियम की आलोचना इस वजह से भी हुई थी कि उसमें ‘वर्क फ्रॉम होम’ का प्रावधान था। यूं छोटे बच्चे वाली कामकाजी महिलाओं के लिए यह बहुत आसान होता है-फिर भी उनके कॅरियर के लिए खतरनाक हो जाता है। एक नुकसान यह भी होता है कि उनके काम के घंटे धीरे-धीरे कम होते जाते हैं। उनके सहकर्मी भी मानने लगते हैं कि वे काम के प्रति कम प्रतिबद्ध हैं, और कम उत्पादक भी। काम के घटते घंटे और पार्ट टाइम नौकरियों के कारण भी मर्द और औरतों के वेतन गैर बराबर होते जाते हैं। अवैतनिक काम का दबाव औरतों पर पहले ही ज्यादा है। सैलरी डॉट कॉम का कहना है कि मां और बीवी बनने वाली हर औरत एक साथ 10 पदों पर काम करती है। वह भी हफ्ते में करीब 97 घंटे। ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डवलपमेंट (ओईसीडी) के एक अध्ययन में कहा गया कि भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरतीं अर्थव्यवस्थाओं में पारिवारिक उत्पादन आर्थिक गतिविधि का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
इन अध्ययनों से एक खबर याद हो आती है। कई साल पहले किसी आदमी ने इंटरनेट पर सवाल पूछा है-मैं अपनी ‘वुड बी’ बीवी से चार गुना ज्यादा कमाता हूं तो मैं उसके साथ घर का काम क्यों शेयर करूं? इसकी बजाय, कहूंगा कि उसे मेरी बजाय अपने जितना कमाने वाले आदमी से शादी करनी चाहिए। मदरे के ऐसे सवालों का जवाब देना आसान नहीं। घर का काम बांटकर करने के पीछे वे तमाम तर्क दे सकते हैं। इसके अपने जवाब भी हैं।
इस सवाल का एक मजेदार जवाब भी था। इसमें किसी ने कहा था-घर में पैसे का योगदान आंकने से पहले मर्द को सोचना चाहिए कि मियां-बीवी के प्रेम का खमियाजा सिर्फ बीवी को भुगतना होता है। एक इंजॉयमेंट की खातिर वह नौ महीने बच्चे को पेट में पालती है। मर्द तो एक स्पर्म देकर आराम से उस इंजॉयमेंट से निकल जाता है। हां, बच्चे पर उसका दावा 50 फीसद का बनता है-क्या औरत भी पूछ सकती हैं कि बच्चे में आपका योगदान कितना है-शायद एक परसेंट भी नहीं। क्या इस सवाल का जवाब कोई देना चाहेगा?
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