छात्रवृत्ति घोटाला : वंचितों के हक पर डाका
जनाब गीताराम नौटियाल-जो उत्तराखंड के सामाजिक न्याय महकमे के सहनिदेशक थे- फिलवक्त सलाखों के पीछे हैं।
छात्रवृत्ति घोटाला : वंचितों के हक पर डाका |
वह उन 18 लोगों में शुमार हैं, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम, जो अनुसूचित जाति/जनजाति की छात्रवृत्ति में किए गए करोड़ों रुपये के घोटालों की जांच कर रही है, ने उनकी कथित भूमिका के लिए दबोचा है।
मालूम हो कि इस घोटाले की जद में पिछले दिनों देहरादून स्थित तीन शिक्षण संस्थाओं के खिलाफ भी मामले दर्ज किए, जिन्होंने अपने संस्थानों में अध्ययनरत अनुसूचित जाति/जनजाति से आने वाले छात्रों की एक फर्जी सूची समाज कल्याण विभाग को दी और लगभग 9 करोड़ रुपया उससे वसूला। इसके पहले हरिद्वार के नौ संस्थानों के खिलाफ इसी मामले में केस दर्ज किए गए थे, जिन्होंने फर्जी छात्रों की सूची जमा करके आठ करोड़ रुपयों की उगाही विभाग से की थी। खबर यह भी आई है कि इस जांच की जद में कई अन्य वरिष्ठ अफसर और सत्ता में रसूख रखने वाले लोग भी पकड़ में आ सकते हैं।
गौरतलब है कि वंचितों के हक पर सुनियोजित ढंग से डाका डालने में उत्तराखंड पहला उदाहरण है। और न ही आखिरी साबित होगा। पूरे मुल्क में एक पैटर्न बन गया है कि वंचित तबकों से जुड़े छात्रों की फर्जी सूची जमा करके वसूली करते रहो तो कभी फर्जी शिक्षा संस्थान के माध्यम से यह लूट करते रहो। अभी पिछले साल छत्तीसगढ़ के रायपुर से ऐसे ही मामले का खुलासा हुआ था, जब पता चला था कि कॉलेज आफ बॉयोटेक्नोलोजी नाम से एक फर्जी शिक्षा संस्थान के नाम पर 2006-07 से 2012-13 तक कई रिश्तों में निकासी हुई, खुलासा होने पर जांच भी हुई।
फिर सभी वरिष्ठों के बेदाग छूटने का समाचार मिला और सारा जिम्मा द्वितीय श्रेणी के दो कर्मचारियों के माथे डाल कर उनसे ही रिकवरी करने के आदेश जारी हो गए। उधर, छत्तीसगढ़ की खबरें सुर्खियां बन रही थीं, उन्हीं दिनों पड़ोसी मध्य प्रदेश के रीवा जिले के कुछ कॉलेजों में इसी तरह दलित, आदिवासी एवं अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले 700 छात्रों के नाम पर एक करोड़ से अधिक घोटाले की खबर आई थी। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की तरफ से तीन कॉलेजों पर छापे डाल कर महत्त्वपूर्ण दस्तावेज जब्त किए गए थे। यहां पर भी छात्रवृत्ति गबन में सरकारी मुलाजिमों से लेकर प्रबंधन की आपसी साठगांठ दिखाई दी थी। इसी तरह महज तीन साल पहले सहारनपुर पुलिस ने समाज कल्याण विभाग द्वारा दायर शिकायत का संज्ञान लेते हुए 32 प्राइवेट कॉलेजों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर की थी।
समाज कल्याण विभाग के मुताबिक इन कॉलेजों ने अनुसूचित जाति की श्रेणी के विद्यार्थियों के नाम पर दी जा रही 125 करोड रु पये की स्कॉलरशिप हड़प ली इस घोटाले की व्यापकता इतनी बड़ी थी कि कुछ कॉलेजों ने उनके सभी छात्रों को अनुसूचित श्रेणी का घोषित किया था। गौरतलब है कि जांच टीम ने ऐसे 13 कॉलेजों की पहचान भी की थी, जिन्होंने अपने विद्यार्थियों को नकली मार्कशीट के आधार पर प्रवेश दिया था। इस कांड के खुलासे के कुछ वक्त पहले पता चला था कि केंद्र सरकार की तरफ से अनुसूचित तबकों के छात्रों के लिए जो स्कॉलरशिप और अन्य सुविधाएं मिलती हैं, उसका लगभग आधा हिस्सा धोखाधड़ी व फरेब के जरिये शिक्षा संस्थानों के माफिया सरकार में तैनात अधिकारियों की मिलीभगत से हड़प लेते हैं। केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप और फ्रीशिप योजनाओं में अनियमितताओं को लेकर एक स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा चल रही जांच में जिसे अतिरिक्त डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस की अगुआई में संचालित किया गया था-जिसका फोकस सूबा महाराष्ट्र था, यही बात उजागर हुई थीं। गौरतलब है कि जांच में पता चला कि कई कॉलेजों ने न केवल फर्जी छात्र प्रस्तुत किए बल्कि कई बार बढ़े हुए दर से बिल भी पेश किए और पैसे बटोरे गए।
इस संदर्भ में बुलढाना और नंदुरबार जिले के दो दर्जन से अधिक प्राइवेट कॉलेजों के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश टास्क फोर्स ने की। विडम्बना ही है कि ऐसे मामलों में कार्रवाई होने के बावजूद चीजें बदस्तूर चल रही हैं। छात्रवृत्ति का गबन हो, उसे जारी करने में की जाने वाली देरी हो या जाति प्रमाण पत्रों के जारी करने में की जाने वाली देरी हो या फर्जी जाति प्रमाण पत्रों की विकराल होती परिघटना हो, इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि संविधान में प्रदत्त तमाम अधिकारों के बावजूद या सदियों से सामाजिक तौर पर उत्पीड़ित रहे तबकों के लिए अपनाई जाने वाली सकारात्मक विभेद की योजनाओं के बावजूद वंचित तबकों से आने वाले लोगों के साथ आज भी विभिन्न स्तरों पर छल जारी है।
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