निराश न हो भारत

Last Updated 06 Nov 2017 05:02:43 AM IST

क्या अब यह मान लेना चाहिए कि हम आतंकवादी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित नहीं करवा पाएंगे? चीन के रवैये से तो ऐसा ही लगता है.


आतंकवादी मसूद अजहर.

चीन ने फिर सुरक्षा परिषद में अपने वीटो का प्रयोग करके मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रयास को रोका है. पहले वह भारत के प्रस्ताव को रोकता था. उसके बाद भारत ने रणनीति बदली और दूसरे देशों को ऐसा प्रस्ताव लाने को तैयार किया तो उसने इसे भी अड़ंगा लगा दिया. ध्यान रखिए इस बार अमेरिका, फ्रांस तथा ब्रिटेन जैसे सुरक्षा परिषद के तीन स्थायी सदस्यों ने यह प्रस्ताव रखा था. अब इससे वजनदार प्रयास क्या हो सकता है. तीन महीने पहले भी चीन ने इन तीन देशों के प्रस्ताव को रोक दिया था. उसकी समय सीमा 2 नवम्बर को खत्म हो रही थी तो फिर उसने वीटो अधिकार का इस्तेमाल कर दिया.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनियंग का बयान है कि हमने प्रस्ताव को तकनीकी तौर पर रोक रखा था ताकि इस मसले पर समिति के सदस्यों को सोचने का और वक्त मिल सके, लेकिन अभी भी इस मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाई है. जाहिर है, यह तर्क केवल अपने पक्ष को सही ठहराने के लिए दिया गया है. भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा गया है कि एक आतंकवादी के लिए एक अकेला देश अंतरराष्ट्रीय सहमति बनने से रोक रहा है, ये जानकर हमें फिर निराशा हुई. हमारा मानना है कि दोहरे मापदंड आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय लड़ाई को कमजोर करेंगे.

भारत के कथन से दुनिया के वे सारे देश सहमत होंगे तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक एकजुटता के समर्थक हैं. पिछले दो वर्षो से चीन ऐसा ही कर रहा है. हर बार उसके कुछ तर्क होते हैं. उसने किस बार क्या तर्क दिए इसके कोई मायने नहीं हैं क्योंकि सारे तर्क केवल अपने कदम को सही ठहराने के लिए होता है. अजहर को तो उसी दिन आतंकवादी मान लिया जाना चाहिए था, जब 24 दिसम्बर 1999 को इंडियन एयरलाइंस के आइसी-814 हवाई जहाज को आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया और 178 यात्रियों की रिहाई के बदले उसे छुड़ाया. क्या चीन उस घटना से वाकिफ नहीं है? अजहर के आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के जितने संभव प्रमाण हो सकते थे भारत ने सुरक्षा परिषद के सामने रखे.

भारत के आवेदन में दिए गए तथ्यों से ही शेष सदस्य देश सहमत हुए. अगर भारत द्वारा दिए गए तथ्यों में कहीं कमी होती तो दूसरे देश इसके साथ क्यों आते? केवल चीन को वह प्रमाण पूरा नहीं लगता. यह बताने की आवश्यकता नहीं कि वह सच समझते हुए भी जानबूझकर ऐसा कर रहा है. चीन को पुख्ता और सटीक प्रमाण की आवश्यकता नहीं, उसे मसूद को बचाने के लिए कोई न कोई बहाना चाहिए. वह सहमति न होने की बात करता है. आखिर उसे कैसी सहमति चाहिए?उसके अलावा, समिति में कोई सदस्य विरोध नहीं करता, फिर कैसे माना जाए कि इस पर सदस्य देशों में आपसी मतभेद है.

पिछले वर्ष के भारत के प्रस्ताव में 15 में से 14 सदस्यों का समर्थन था. केवल चीन अकेले विरोध में खड़ा था. मजे की बात कि चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कह रहे हैं कि उनके देश का कदम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति के प्रभाव और संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए है. वाह,क्या बात है. उन्होंने कहा कि हम समिति के फैसलों और इसकी प्रक्रिया का अनुसरण करते रहेंगे. वास्तव में चीनी प्रवक्ता के बयान से यह संकेत मिलता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दूसरे कार्यकाल में भी चीन अजहर के मुद्दे पर भारत और अमेरिका सहित दूसरे देशों के प्रयासों पर वीटो लगाता रहेगा. इसके बाद जो संकेत मिल रहा है, उसमें इस बात की संभावना बढ़ गई है कि चीन संयुक्त राष्ट्र की 1267 समिति में इस आवेदन पर ही वीटो का इस्तेमाल कर दे ताकि ये रद्द हो जाए. यह हमारे लिए निराश होने का विषय अवश्य है, पर हम कर क्या सकते हैं. जब वीटो अधिकार वाला कोई देश हर हाल में एक आतंकवादी को बचाने पर आमादा है तो फिर उसकी विजय होनी ही है.



किंतु इससे यह मान लेना ठीक नहीं होगा कि भारत अजहर के मामले में विफल हो गया है. आखिर मसूद अजहर का संगठन जैश-ए-मोहम्मद संयुक्त राष्ट्र की आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल है. यानी संगठन प्रतिबंधित है. भारत के पिछले दो साल के प्रयासों से दुनिया मसूद अजहर एवं जैश के बारे में पूरी तरह जान गई है. दुनिया को यह भान हो गया है कि वह एक आतंकवादी है जिसे चीन पाकिस्तान में अपने हितों को ध्यान में रखते हुए बचा रहा है. यही हमारी सफलता है. यह बात ठीक है कि अगर उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया जाता तो उस पर कई तरह के प्रतिबंध लग जाते एवं पाकिस्तान के लिए उसकी रक्षा करने का कोई आधार नहीं बचता. लेकिन प्रतिबंध नहीं भी लगा तो भारत के प्रयासों से उसकी कुख्याति इतनी हो गई है कि पाकिस्तान खुलकर उसके पक्ष में कभी नहीं आ सकता. वह विदेशों की यात्रा से भी बचेगा. यही नहीं उसके लिए खुलकर पहले की तरह फंड एकत्रित करना भी कठिन होगा. वास्तव में भारत ने अपने लगातार प्रयास से यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान चीन के माध्यम से मसूद अजहर जैसे खूंखार आतंकवादी को बचा रहा है.

पाकिस्तान को लेकर दुनिया में जो धारणा बनी है वह किसी से छिपी नहीं है. संयुक्त राष्ट्र संघ के महाधिवेशन में यह पहली बार हुआ कि एक साथ तीन देशों बांग्लादेश, अफगानिस्तान और भारत ने आतंकवाद के मामले पर उसे घेरा और उसके प्रतिनिधियों को तीन बार जवाब देने के अधिकार के तहत बयान देने को विवश होना पड़ा. एक देश जो आतंकवादियों का घोषित शरणस्थली बना हुआ है, जहां से आतंकवाद पल्लवित पुष्पित होता है और कई बार संरक्षण भी पाता है, उसकी रक्षा चीन आखिर अपने आर्थिक एवं तथाकथित सामरिक हितों की खातिर कहां-कहां और कितना कर पाएगा.

 

 

अवधेश कुमार


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