क्रिकेट : कब मिलेगी भ्रष्टाचार से निजात!

Last Updated 14 Apr 2017 01:17:16 AM IST

जब सारा देश इंडियन प्रीमियम लीग (आईपीएल) के खुमार में डूबा है तब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के आका और उसकी इकाइयों के सरगना लोढ़ा समिति के खिलाफ अपनी अंतिम लड़ाई लड़ने में लगे हैं.


क्रिकेट : कब मिलेगी भ्रष्टाचार से निजात!

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पूर्व ऑडिटर एंड अकाउटेंट जनरल (सीएजी) विनोद राय की अध्यक्षता वाली चार सदस्यीय प्रशासक समिति (सीओए) के स्पष्ट दिशा-निर्देश का उल्लंघन कर नौ अप्रैल की विशेष आम सभा (एसजीएम) में पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और सचिव निरंजन शाह ने शिरकत की. समिति ने साफ-साफ कहा कहा था कि बोर्ड की बैठक में वे सदस्य भाग नहीं ले सकते जिनकी आयु सत्तर साल से अधिक है, या जो बीसीसीआई तथा इसकी राज्य इकाई में किसी पद पर तय कार्यकाल से अधिक रह चुके हैं.  श्रीनिवासन और शाह की उम्र सत्तर पार है. दोनों बीसीसीआई तथा तमिलनाडु व सौराष्ट इकाई में नौ-नौ साल से अधिक विभिन्न पदों पर रह चुके हैं.

एसजीएम में 24 अप्रैल को होने वाली अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट कौंसिल (आईसीसी) की बैठक में भाग लेने के लिए बोर्ड के प्रतिनिधि का नाम तय होना था. कुछ लोग श्रीनिवासन को बीसीसीआई का प्रतिनिधि बनाना चाहते थे, जबकि कुछ पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली को. आम राय न बनने पर निर्णय टाल दिया गया. श्रीनिवासन और शाह के बोर्ड बैठक में भाग लेने के मामले ने जब तूल पकड़ा तब बीसीसीआई ने स्पष्टीकरण के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुनवाई न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने की और पूछा कि जो व्यक्ति बीसीसीआई का पदाधिकारी नहीं बन सकता वह बोर्ड की बैठक में हिस्सा कैसे ले सकता है? जवाब में बोर्ड के वकील ने कहा कि पदाधिकारी के लिए अयोग्य होने का अर्थ यह नहीं है कि ऐसा व्यक्ति बोर्ड की बैठक में भाग नहीं ले सकता. मामले पर अगली सुनवाई 17 अप्रैल को होगी. मतलब यह कि जो मुद्दे स्पष्ट हैं, उन पर भी अदालत की राय मांगी जा रही है. लोढ़ा समिति पर अमल टालने के लिए हर हथकंडा आजमाया जा रहा है.

वैसे, सीओए का मुख्य उद्देश्य बोर्ड और उसकी इकाइयों से लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर अमल कराना है. आगामी 27 दिसम्बर अमल की अंतिम समय सीमा है. बीसीसीआई ही नहीं उसकी हर इकाई के खातों में करोड़ों-अरबों रु पये जमा हैं. हिन्दुस्तान में क्रिकेट आज खेल नहीं, एक धंधा है जिसमें अंधी आमदनी है. इसे चलाने वाले सभी संस्थानों के शीर्ष पदों पर नेता, नौकरशाह और उद्योगपति बैठे हैं, जो क्रिकेट की करोड़ों की कमाई अपनी मर्जी से खर्चते हैं. बोर्ड इकाइयों में व्याप्त भ्रष्टाचार की झलक डिलोयट की ऑडिट रिपोर्ट से मिलती है. 2015 में बोर्ड अध्यक्ष बनने के बाद शशांक मनोहर ने डिलोयट कंपनी से बोर्ड इकाइयों के खातों का ऑडिट कराया था. इसकी रिपोर्ट के कुछ अंश सार्वजानिक हुए हैं, जिनसे करोड़ों रु पये की हेराफेरी का पता चलता है. रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए  विनोद राय समिति ने आरोपी इकाइयों से जवाब-तलब किया है. उत्तर संतोषजनक न होने की सूरत में रिपोर्ट सार्वजानिक करने की  मंशा जाहिर की है.

इस रिपोर्ट से पता चलता है कि कैसे हैदराबाद यूनिट ने सारे नियम ताक पर रख मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों को उपहारस्वरूप सोने के सिक्के और उनकी पत्नियों को आभूषण दिए. गोवा में पदाधिकारियों की ‘सेवा’ के लिए 18 महंगी कार खरीदी गई. वैसे गत वर्ष गोवा क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव सहित तीन पदाधिकारियों को पुलिस ने भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया था. जम्मू-कश्मीर इकाई के 113 करोड़ रु पये के घोटाले की जांच तो अभी चल ही रही है. जांच के दायरे में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला सहित नौ पदाधिकारी हैं. केरल इकाई ने 30 करोड़ की लागत से स्टेडियम नहीं, खेती की जमीन खरीदी. कुछ साल पहले असम यूनिट ने बीसीसीआई से 60 करोड़ रु पये उधार लिए थे, आज तक यह रकम न तो लौटाई गई है और न ही किसी के पास उसका कोई हिसाब-किताब है. ओडिशा से जब ऑडिट के लिए अकाउंट मांगे गए तब हाथ से लिखे कुछ आधे-अधूरे कागज पकड़ा दिए गए. डीडीसीए और हरियाणा इकाइयां तो अपनी गड़बड़ियों के लिए बरसों से बदनाम हैं. ये किस्से कुछ यूनिटों के हैं. यदि गहराई में जाकर जांच हो तो बीसीसीआई और उसकी हर इकाई के अनेक काले कारनामें सामने आ सकते हैं. शायद इसीलिए करोड़ों क्रिकेट प्रेमी लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर अमल का बेताबी से इंतजार कर रहे हैं.

धर्मेंद्रपाल सिंह
लेखक


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