विश्लेषण : यह भी छद्म युद्ध है
पाकिस्तान की सैन्य अदालत द्वारा भारत के नौसेना के पूर्व अफसर कमांडर कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाया जाना संभ्रांत देश की न्यायिक प्रणाली के लिए एक कलंक है.
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हालांकि यह कलंक पिछले तीन से पाकिस्तान की सत्ता पर हावी रहा है. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान ही एक ऐसा देश है, जिसमें सैन्य अदालत एक नागरिक को सजा सुनी रही है. ऐसी एक नहीं 11 सैन्य अदालतें पाकिस्तान में स्थापित की गई हैं. तीन खाइबर पख्तूनखवा, तीन पंजाब, दो सिंध और एक बलूचिस्तान में है. 2015 से अब तक इन सैन्य अदालतों ने 274 पाकिस्तानी नागरिकों को सजा सुनाई है, इनमें 113 को उम्र कैद और 161 को मौत की सजा दी गई है.
इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन (आईएसपीआर के 2016 दिसम्बर के बयान के मुताबिक 144 सजायाफ्ता लोगों में से 135 ने अपने गुनाह कबूल कर लिये थे. इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि कुलभूण को केवल कबूलनामा का हवाला देकर मौत की सजा सुनाई गई. सैन्य अदालतें पाकिस्तान के संविधान के तहस-नहस होने की सूचक हैं. पाकिस्तान के मानसिक और भौगोलिक तर्क को बचाने के लिए यह एक मजबूरी से प्रेरित निर्णय है. जब हम राजनीतिक और कूटनीतिक संभावनाओं या विकल्पों का आकलन करते हैं तो इस बात से विचलित नहीं हों कि हम एक ऐसे दुश्मन से बात कर रहे हैं, जिसके खुद का वजूद ही खतरे में है. ऐसे मुल्क से जो जिहाद में अपने आपको बरबाद करने के लिए रजामंद हो, उसके संदर्भ में तो टैंक ही कारगर होगा.
यह गलत धारणा है कि पारम्परिक जिहादी हमले या छद्म युद्ध को रोका जा सकता है. बांग्लादेश के निर्माण के बाद भी ऐसा नहीं हुआ. सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस अमेरिका के लिए एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में कायम रहा. यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि युद्ध का वह स्वरूप, जिसे हम आधुनिक स्वरूप भी कह सकते हैं, को भी हम समझें. जिस तरह पाकिस्तान ने कुलभूषण प्रकरण की साजिश की, वह भी छद्म युद्ध का ही हिस्सा है और उसके तमाम पहलू हैं. कुलभूषण का अंतरराष्ट्रीय सीमा से अगवा करने का यह मकसद था कि वह भारत को यह संदेश दिया जा सके कि भारत के खिलाफ जिहाद पाकिस्तान का जन्मसिद्ध अधिकार है और अगर उसे रोका गया तो उसके भाड़े के सैनिकों से छेड़छाड़ की गई तो कुलभूषण जाधव जैसे प्रकरण समय-समय पर पाकिस्तान की तरफ से रचे जाते रहेंगे.
ईरान में भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह का विकास और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीन का दखल भी प्रकरण का इसका दूसरा पहलू है. चाबहार और ग्वादर को एक रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के रूप में देखा जा रहा है. इस कारण ही पाकिस्तान ने कुलभूषण प्रकरण के शुरुआती दौर में ईरान को लपेटने की कोशिश की थी. राष्ट्रपति रुहानी के पाकिस्तान दौर पर पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान ने इस बात का शिगूफा छोड़ा कि कुलभूषण का मुद्दा बड़ी सख्ती से उठाया गया. जब रुहानी ने इस झूठ का खंडन किया तो पाकिस्तान को दुनिया के सामने तगड़ी कूटनीतिक शर्मिदगी झेलनी पड़ी.
हिन्दुस्तान को दुनिया के सामने अपने विरुद्ध दहशतगर्द देश की श्रेणी में रखना पाकिस्तान का तीसरा मकसद था. हाफिज सईद, मसूद अजहर, लखवी जैसे आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की भारत की लगाता मांगों की तरफ से दुनिया का ध्यान बंटाने के लिए पाकिस्तान का यह नायाब तरीका था. मकसद यह भी था कि कसाब और याकूब मेमन की फांसी के बाद बदले की भरपाई का संदेश जिहादी तंजीमों को दिया जाए. भारत में हिंदू आतंकवाद के सक्रिय होने के अपने आरोप को सही ठहराने की विफल कोशिश पाकिस्तान द्वारा अंजाम दिये गए 26/11 के बाद भी जारी है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस बात को साबित करने के लिए भारत में राजनीतिक सहयोगी अब इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं.
कुलभूषण जाधव भारतीय नौसेना की तकनीकी शाखा का अफसर था. इस हैसियत से उसका वास्ता युद्धपोत के इंजिन रूम और तकनीकी मामलों से ही होता है. अपने इसी अनुभव के सहारे कुलभूषण रिटायरमेंट के बाद चाबहार बंदरगाह को एक आधार बना कर कारोबार कर रहे थे. अब यह कहना कि एक तकनीकी ब्रांच का अफसर बलूचिस्तान में उपद्रव फैला रहा था, यह एक बड़ा मजाक है. दुनिया में भर में इसको कोई नहीं मानेगा. अगर इल्जाम दहशतगर्दी का है तो नौसेना का एक अकेला अफसर, जो अगर आत्मघाती दस्ता न शामिल न हो तो वह किस प्रकार की दहशतगर्दी करेगा और उसका मकसद क्या होगा? पाकिस्तान ने तो उसकी गिरफ्तारी के बाद भारत को यह भी नहीं बताया कि कुलभूषण को खुफियागीरी या आतंक फैलाने के लिए दोषी ठहराया गया है.
एक भारतीय नौसेना का पूर्व अफसर जो भारतीय पासपोर्ट पर वैध तरीके से कारोबार कर रहा है, उसे अगर अगवा किया जाता है तो यह एक तरीके से युद्ध है. अगर भारतीय पासपोर्ट धारक को उसके देश के दूतावास तक पहुंच नहीं बनाने दिया जाए तो यह भी तरीके का युद्ध है. लेकिन यह लड़ाई छद्म ही है. अगर पाकिस्तान ने परमाणु हथियार के साये में, छद्म युद्ध से भारत को घाव देता रहा तो हमारे पास भी ऐसे विकल्प मौजूद हैं और कुछ हथियार भी. इनमें सबसे कारगर हथियार सिंधु जल समझौता या सिंधु, चेनाब, झेलम नदियों का बहाव गर्मियों के मौसम में कम किया जाना भी है. इस तरह से भी पाकिस्तान को तबाह किया जा सकता है. खून और पानी एक साथ नहीं बहाया जा सकता की घोषणा के साथ. परमाणु अस्त्र से भी ज्यादा विध्वंसक तो पानी का हथियार है.
हमारे देश के बुद्धिजीवी जो इसरार करते हैं पाकिस्तान से बातचीत का, वह यह मान लें कि वैश्विक जिहाद के रास्ते पर पाकिस्तान बहुत दूर निकल आया है कि उसकी वापसी अब मुमकिन नहीं है. ऐसे में हम बात करें तो किससे करें? सेना से? जिहादी तंजीमों से? या नेताओं से-जिनका असर अकादमिक से ज्यादा नहीं रह गया है? ध्यान रहे कि भारत किसी भी कीमत पर कुलभूषण को लेकर पाकिस्तान के किसी ब्लैकमेल का शिकार न हो. उसके झांसे या दबाव में न आए. उस पर सख्ती बहुत जरूरी है.
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