राम भरोसे 'प्रभु' की रेल
रेल और रेलवे के साथ इन दिनों जो हो रहा है उस पर राम भरोसे जैसी पुरानी कहावतें बिल्कुल सटीक बैठती हैं.
(फाइल फोटो) |
महोबा-कुलपहाड़ के बीच महाकौशल एक्सप्रेस की दुर्घटना और उसके तीन दिन बाद 4 अप्रैल को इसी लाइन पर 100 किमी दूर कानपुर-दुर्ग एक्सप्रेस का यात्रियों की सजगता से दुर्घटना से बाल-बाल बचना बताता है कि रेलवे महकमा और रेल मंत्री दुर्घटनाओं से सबक लेने को तैयार नहीं हैं. गतिमान एक्सप्रेस की असफलता के बाद भी बुलेट ट्रेन के पीछे पड़े हैं. लेकिन जर्जर हो चुकी रेल लाइनों को बदलने का काम आगे बढ़ाने का उनके पास वक्त नहीं है.
रेलवे में रेल समेत सब कुछ तदर्थवाद पर चल रहा है. मंत्री जी को बुलेट ट्रेन और स्टेशनों के लिए पीपीपी मॉडल पर काम करने से फुर्सत नहीं है तो कर्मचारी पूरी पगार लेकर भी पूरा काम करने को राजी नहीं है. जोन में रेलवे के अधिकारी भी मंत्री की राह पर हैं. उन्हे भी तदर्थवाद अतिप्रिय है.
स्वच्छ भारत अभियान खबरों में जोर से चला. मंत्री से लेकर जीएम और डीआरएम तक सबने खूब झाड़ू लगाई. नई दिल्ली समेत बड़े स्टेशन कुछ दिन चमके. छोटे स्टेशन फिर भी वैसे ही गंदे रह गए. लेकिन दिन बीतने के साथ बड़े स्टेशन भी पुराने ढर्रे पर आ गए. नई दिल्ली समेत सारे स्टेशनों में फिर गंदगी की भरमार हो गई. अब कोई नहीं पूछता. झाड़ू उठाना तो दूर झाड़ू की तरफ कोई देखता भी नहीं है.
मंत्री जी ने ट्विटर यूज करने वालों की मदद की. मीडिया की सुर्खियां बटोरीं लेकिन वो 90 फीदस रेल यात्री जिनके पास ट्विटर की सुविधा नहीं है उनकी स्टेशन मास्टर तक ने नहीं सुनी.
रेलवे में एक परंपरा है. कोई मरे कोई जिए. रेल न रुके. रेल चलती रहे. रेलवे में ये ढर्रा एक लंबे अर्से चल रहा था. 2014 में नई सोच वाली नई सरकार के आने पर लगा था कि सब कुछ न सही पर कुछ तो जरूर बदलेगा पर शुरुआती दिनों के बाद फिर सब कुछ पहले जैसा हो गया.
रेलवे का अलग बजट तो खत्म हो गया पर काम करने का रेलवे का तरीका नहीं बदला. जर्जर पटरियों पर रेलें दौड़ रही हैं. कुछ दर्जन ट्रेनों में कोच बदले गए. अब वो भी बंद हो गया. हजारों ट्रेने ऑउटडेटेड कोचों के साथ चलाई जा रही हैं.
पैसे उगाही के नित नए फंडे ईजाद किए जा रहे हैं. लेकिन सुविधाओं के नाम पर घोषणाओं से आगे कुछ नहीं हो रहा. उदाहरण के लिए उत्तर रेलवे की एक ट्रेन यूपी संपर्क क्रांति एक्सप्रेस है. दिल्ली से मानिकपुर के बीच तकरीबन 700 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली इस ट्रेन में लगे जनरल कोचों की हालत बेहतर हुई है तो स्लीपर कोचों की दशा बेहद जर्जर है. आधी सीटें टूटी हैं. अधिकतर कोचों में खिड़कियां टूटी हैं. टायलेट का हाल ये है कि कई कोचों में खिड़की में शीशा तक नहीं है.
सफाई के नाम पर हाउस कीपिंग स्टाफ हर कोच की एक सीट पर काबिज रहता है पर कोच में सफाई नहीं करता. चार्जर सॉकेट्स काम नहीं करते. रेलवे ने आरएएसी का कोटा बढ़ा दिया. लेकिन सुविधाएं बढ़ाने के नाम पर कन्नी काट गया.
बड़े स्टेशनों पर वाटर वेंडिंग मशीनें धूल फांक रही हैं. लेकिन छोटे और मझोले स्टेशनों पर पेयजल के लिए लगी टोटियां सूखी पड़ी हैं. रेल नीर की जगह मनाही के बाद भी निजी कंपनियों का पानी बिक रहा है.
बड़े स्टेशनों को पीपीपी मॉडल पर आधुनिक बनाने की बात हो रही है लेकिन सैकड़ों छोटे स्टेशन ऐसे हैं जिनका प्लेटफार्म तक ऊंचा नहीं है. इन हालात में ये उम्मीद बेमानी है कि रेलवे में सफर निरापद होगा.
आतंकी हाथ कहना आसान है उसे साबित करना कठिन है. पिछले छ: महीने में महोबा-कुलपहाड़ के बीच महाकौशल की दुर्घटना पांचवीम घटना है. 8 मार्च को रात करीब 1 बजे रक्सौल से दिल्ली जाने वाली सत्याग्रह एक्सप्रेस यूपी के सीतापुर स्टेशन के पास मालगाड़ी से टकरा गई थी. इस हादसे में 5 यात्री जख्मी हो गए थे. इससे पहले 20 फरवरी को टूंडला स्टेशन पर कालिंदी एक्सप्रेस की टक्कर मालगाड़ी से हो गई थी.
कानपुर देहात के पास 29 दिसंबर की सुबह सियालदह-अजमेर एक्सप्रेस के 15 डिब्बे पटरी से उतर गए थे. इसमें 50 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे. सबसे भीषण हादसा कानपुर देहात के पुखरायां के पास 20 नवंबर की सुबह हुआ था. इंदौर-पटना एक्सप्रेस के डिरेल होने से 14 डिब्बे पटरी से उतरे थे और इसमें 145 लोगों की मौत हुई थी.
पुखरायां ट्रेन हादसे में आतंकी साजिश की भी जांच एनआईए कर रही है. लेकिन अब तक उसे कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली है. ये जरूर है कि हर दुर्घटना और उसके बाद रेलवे की लापरवाही साफ और पुख्ता तौर पर दिखाई पड़ती रही है. लेकिन दुर्भाग्य से रेल मंत्री, रेलवे बोर्ड की प्राथमिकता बुलेट ट्रेन चलाने को लेकर है. रेल यात्रियों के लिए सुविधा और उनकी सुरक्षा उनकी सूची में सबसे नीचे हैं. रहा सवाल रेल अफसरों का तो वे हर दुर्घटना के बाद सांप निकलने के बाद-बाद लकीर पीटने जैसा अभ्यास करने में सिद्धहस्त हैं.
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