श्रद्धांजलि : वह अनमोल किशोरी अमोनकर
बीते सोमवार की रात को अस्त हो गया हिंदुस्तानी संगीत के आकाश का चमकीला सितारा किशोरी अमोनकर.
श्रद्धांजलि : वह अनमोल किशोरी अमोनकर |
शास्त्रीय संगीत की साधना में अपना जीवन अर्पित कर गायन के रस कलश को भरने वाली किशोरी का जाना भारतीय संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है, जिसे चिरकाल तक महसूस किया जाता रहेगा. खयाल गायन में सर्वाधिक लोकप्रिय और अनूठी गायिका किशोरी अमोनकर के चौरासी साल संगीत में उनके विलक्षण अवदानों से भरे हैं. छह दशक तक उनके गायन की कीर्ति पताका देश और विदेश में लहराती रही. इस परंपरागत शास्त्रीय संगीत की धारा को उनमें अपना नवोन्मेष मिला और संगीत की लोकप्रियता अपने में एक जनधारा बनी. भारतीय संगीत चिर ऋणी रहेगा अपने इस प्रियदर्शी प्रज्ञा शिल्पी का.
किशोरीजी का चरित्र बहुत ही स्वाभिमानी और निर्भीक था. संगीत में कार्यक्रम देने में उनकी कुछ शत्रे होती थी, जिन्हें आयोजको को पूरा करना होता था. वे अकसर कार्यक्रम के निर्धारित समय पर न पहुंच कर मंच पर देर से तभी आती थीं, जब गाने में उनका मूड बनता था. पर इस सुरीली और अनूठी गायिका का गायन सुनने के लिए श्रोतागण बेसब्री से इंतजार करते रहते थे. सुर की मिठास तो उन्हें कुदरत से मिली. खयाल गायन में एक-से-बढ़कर एक गायक-गायिकाएं हुई. पर किशोरी की आवाज में सुरीलेपन का जो जादू था, वह अद्भुत था. उन्होंने लोगों में गायन के प्रति नई रुचि पैदा करने के लिए जो आयाम दिए, उनमें गायन की तकनीक के साथ बंदिश के भाव पक्ष को उकेरने में अधिक जोर दिया. संगीत में श्रृंगार, विरह, करु ण, भक्ति रस आदि रचनाओं को कंठ स्वरों में बड़े उदात्त से निखारा. विदुषी किशोरी अमोनकर को संगीत अपनी मां मोंगू बाई से विरासत में मिला.
जयपुर अतरौली घराने के शिखर उस्ताद अल्लादिया खां की शिष्या मोंगू बाई कुर्दिकर भी अपने जमाने की प्रखर और मशहूर गायिका थीं. मां की छतछ्राया में लीन होकर किशोरी ने जयपुर अतरौली गायिकी के मर्म और उसकी खूबियों को गहराई से सीखा. आगे चलकर उन्होंने अपनी गायिकी को एक अनोखे और नये अंदाज में तराश कर संवारा और गायन में अपनी मौलिक जगह बनाई. वे जो भी राग गाती थीं, उसमें उनका एक गहरा चिंतन और नई सूझ दिखाई पड़ती थी. मंच पर गाते समय वह अनुशासन और मर्यादा पर बहुत ध्यान देती थीं और श्रोताओं से भी यह अपेक्षा करती थीं कि कार्यक्रम में वे अनुशासित रहें. ऐसे न होने पर किशोरी जी गुस्से से फटकार लगाते कई बार देखी गई. आज की प्रायोजित संस्कृति में शायद पंडित रविशंकर के बाद किशारी जी सबसे महंगी कलाकार थीं, जो एक कार्यक्रम के लिए सोलह से बीस लाख रुपये लेती थी. पर संगीत के लिए समर्पित संगीत प्रेमियों और स्पीक मैके द्वारा स्कूल-कॉलेज के छात्रों के लिए आयोजित कार्यक्रमों में आने में जो उन्हें सम्मान मिलता था, वह सर्वोपरि था-पैसा नहीं.
अमोनकर जी तकरीबन छह दशकों से देश और विदेश के प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रभावशाली प्रस्तुति से लगातार संगीत रसिकों की सराहना अर्जित करती रहीं. उन्हें प्राप्त हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों की तालिका में सर्वश्रेष्ठ भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया पद्म विभूषण सम्मान है. ख्याल गायिकी में जो बड़े गायक हुए हैं (भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व, उस्ताद अमीर खां आदि) उनके मुकाबले अमोनकर ने घराने की लीक से हटकर गाने में एक अपना अंदाज और एक नई सूझ दी है. उससे गाने में उनकी अपनी शैली बन गई. हालांकि, अमोनकर जयपुर घराने की गायिका थीं पर उन्होंने अपने सुरों से गायन को सजाकर एक अलग पायदान पर खड़ा किया. जयपुर की छाप होते हुए उनका गाना एक अलग ही रंग और छटा में दिखाई पड़ता था. रागदारी के पारंपरिक चलन में भी उन्होंने एक अलग राह बनाकर नये द्वार खोले. अगर जयपुर घराने में देखा जाए तो केशर बाई केलकर और हीरा बाई बाड़ोदकर जैसी महान गायिकाओं की पंक्ति में किशोरी अमोनकरजी एक ऊंचे स्थान पर स्थापित हैं.
मुंबई के दादर में प्रभादेवी अपार्टमेंट जहां उन्होंने अंतिम सांस ली, अब वह स्थान उनके शिष्यों के लिए सूना हो गया है, जो अपनी इस महान गुरु की छतछ्राया में संगीत सीखते थे. पर यह सुखद बात है कि आज की नई टेक्नोलॉजी के युग में उनका शात गायन सीडी, यू ट्यूब आदि के जरिये हमेशा जीवंत रहेगा और नई पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करेगा.
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