नजरिया : सबका भरोसा जीतने की चुनौती

Last Updated 26 Mar 2017 05:00:37 AM IST

पहली बार ऐसा हुआ है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में एक ऐसा व्यक्ति आसीन हुआ है, जिसके पास धरोहर के रूप में आध्यात्मिक विरासत है.


नजरिया : सबका भरोसा जीतने की चुनौती

जो गेरु आ वस्त्र धारण करता है और पूर्ण रूप से संन्यासी के रूप में व्यवहार करता है. जो सांसद बनाने से पहले ही जनता की सेवा करता रहा है. मुख्यमंत्री के रूप में उनके समक्ष कई चुनैतिया भी हैं. आग बाहर लगी हो तो पानी की बाल्टियों उसे बुझाया जा सकता है लेकिन अंदर लगी हो तो उसे बुझाने के लिए अध्यात्म की बाल्टियों की जरूरत होती है. इस नाते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए योगी आदित्यनाथ सौभाग्यशाली हैं. प्रदेश की विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए प्रशासनिक अमले के साथ उनके पास आध्यात्मिक अनुभव भी है. लेकिन अध्यात्म और प्रशासन के बीच कैसे तालमेल बिठाया जाए यह चुनौती उनके सामने हमेशा रहेगी. इसकी झलक मुख्यमंत्री आवास की नाम पट्टिका में योगी आदित्यनाथ की जगह आदित्यनाथ योगी के उकेरे जाने में देखी जा सकती है.

मतलब प्रशासन प्रथम. यह होना भी चाहिए. जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शपथ लेने के बाद स्वच्छता अभियान, मिनिमम गवम्रेट, मैक्सिमम गवन्रेस और पारदर्शी प्रशासन का नारा दिया था, उसी तर्ज पर योगी आदित्यनाथ ने भी शुरुआत की है. इसकी झलक है सचिवालय में पान-मसाला, पोलीथिन इत्यादि पर पाबंदी, निचले स्तर के अधिकारियों से संवाद, हजरतगंज थाने का निरीक्षण. ये सभी कदम भले छोटे हों, लेकिन प्रतीकात्मक संदेश देते हैं कि आने वाले समय में सरकार की कार्यशैली क्या होगी. स्वच्छता को लेकर उन्होंने जो संदेश दिया, इसका असर उनके मंत्रिमंडल सहयोगी बलिया के उपेन्द्र तिवारी द्वारा अपने दफ्तर में खुद साफ-सफाई करने में दिखा.

योगी जी एक कुशल प्रशासक के रूप में सामने आ रहे हैं. लेकिन कुछ कदम तो असहज करने वाले हैं. जैसे भाजपा ने प्रदेश में अवैध कत्लखाने बंद करने की बात अपने घोषणा में कही थी, और आते ही इस पर कार्यवाई भी शुरू हो गई. किसी को इससे विरोध भी नहीं हो सकता. लेकिन प्रशासन चलाने का अपना एक गोल्डन रूल होता है, जिसे अपनाया जाना चाहिए. मानवीय आधार पर अवैध झोंपड़ पट्टियों को गिराने से पहले कुछ मोहलत दी जाती है. कत्लखानों को भी कुछ दिनों की मोहलत दी जानी चाहिए थी. इस प्रकार के मामलों से असहिष्णुता का जन्म होता है और एक वर्ग विशेष में असंतोष की भावना पैदा होती है.

कल मेरी मुलाकात प्रधानमंत्री जी से हुई. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों का उद्देश्य और नीयत सुशासन और रामराज्य लाने की है. जब गांधी रामराज्य लाने की बात करते थे तो उन पर कोई सांप्रदायिक होने का आरोप नहीं लगता था, लेकिन जब यही बात भाजपा करती है तो उस पर सांप्रदायिक होने के आरोप लगने लगते हैं. प्रधानमंत्री के स्तर पर दिया गया आदेश कैसे निचले स्तर तक पहुंचते-पहुंचते अर्थ से अनर्थ के रूप में तब्दील हो जाता है, इस संबंध में उन्हें मैंने एक कहानी सुनाई. कहानी बनारस की है, जहां एक कमिश्नर ने वहां के जिलाधिकारी से आग्रह किया कि उनकी बेटी की शादी में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां शहनाई वादन करें तो बड़ा अच्छा होगा. जिलाधिकारी ने आव देखा ना ताव तुरंत एसएसपी को, एसएसपी ने एसपी, एसपी डीएसपी को, डीएसपी ने थाने को, थाने ने चौकी को और चौकी ने उस बीट पर लगे हेड कांस्टेबल को उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के घर भेज दिया.

उसने खां साहब को थाने चलने का आग्रह किया. सुबह-सुबह का वक्त था खां साहब ने तैयार होने के लिए समय मांगा. लेकिन हेड कांस्टेबल ने थानेदार से पांच मिनट की मुलाकात की बात कहते हुए उन्हें बनियान पर ही थाने ले आया. सारे मोहल्ले में हड़कंप मच गया. थानेदार समझदार था. उसने खां साहब के कपड़े घर से मंगाए और उन्हें एसएसपी के यहां ले गया. जब उन्हें कमिश्नर साहब के यहां ले जाया गया तो उन्होंने अपनी नाराजगी जताई. बेहद रुआंसा होकर भारत रत्न समेत उन्हें मिले तमाम पुरस्कारों आग लगाने की बात कही. कमिश्नर साहब को बात समझते देर न लगी. उन्होंने खां साहब से खेद प्रकट किया. थानेदार से बीट इंचार्ज तक को सस्पेंड करने को कहा.

मेरी बात पूरी करने से पहले ही प्रधानमंत्री मेरी बात समझ चुके थे. कहीं न कहीं फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को अपनी छवि के विपरीत उत्तर प्रदेश के 22 करोड़ लोगों को अहसास कराना होगा कि वह सबके नेता हैं. विशेषकर मुसलमानों को, जिनकी प्रदेश में एक बड़ी भागीदारी है, क्योंकि उनके प्रति इस तबके में पूर्वाग्रह है. प्रधानमंत्री जी कहा कि जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो 6 करोड़ गुजरातियों की बात करते थे, प्रधानमंत्री हुए तो 125 करोड़ लोगों की बात करते हैं. ‘बेटी बचाओ अभियान’ चल रहा है तो देश की हर बेटी मेरी बेटी है, लेकिन कई बार ऊंचे मन से कही गई बात नीचे पहुंचते-पहुंचते अर्थ से अनर्थ में तब्दील हो जाती है. जैसी फायरब्रांड छवि योगी जी की रही है, यह उनके लिये बड़ी चुनौती है कि कैसे वह उसमें आमूल परिवर्तन करते हैं. वैसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने प्रधानमंत्री की तर्ज पर काम की शुरुआत की है. मीडिया भी उनको तरजीह दे रहा है. 

दूसरी बात एंटी रोमियो स्कवैड के गठन के बाद प्रदेश भर से पुलिस द्वारा इसके दुरुपयोग की खबरें आने लगी हैं जबकि इसका मकसद महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकना था.  सरकार की मंशा गलत नहीं है, लेकिन क्रियान्वयन संदेह पैदा करता है. योगी जी शपथ ले रहे थे, तब उनकी प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठाए जा रहे थे. लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि कोरे कागज पर बहुत कुछ लिखने की संभावना होती है. लेकिन जो छपा हुआ कागज होता है, वह कबाड़ी के यहां बिकता है. भले योगी जी के पास अनुभव न हों, लेकिन कई बार कम अनुभव वाला भी वह कर गुजरता है, जो बहुत अनुभव वाला नहीं कर पाता. योगी जी में बहुत संभावनाएं हैं और लोगों को उनसे बहुत उम्मीदें भी हैं. राम मंदिर का मुद्दा भी उनके लिए एक कठिन परीक्षा है, क्योंकि उन्हें दोनों समुदायों की भावनाओं को संतुलित सम्मान देना है. जैसा कि मैंने पहले के आलेखों में जिक्र किया है कि किस प्रकार क्षेत्रीय दलों ने राज्यों को चलाया और उसका दोहन किया है. वैसे में राज्य में एक राष्ट्रीय दल का होना शुभ संकेत है. ऐसे में प्रधानमंत्री ने राजकाज के जो मापदंड तय किए हैं, और जनता ने उन पर मोहर भी लगाई है, वह योगी जी के लिए चुनौती हैं. जिन उम्मीदों के साथ लोगों ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया है, और योगी जी को देश के सबसे बड़े प्रदेश की कमान सौंपी गई है,अगर वह पूरी नहीं हुई तो जनता का भरोसा टूटेगा.

उपेन्द्र राय
तहलका के सीईओ व एडिटर इन चीफ


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