गिनती के बचे दिन
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का सफाया अभियान जारी है। रविवार का दिन बीजापुर के जंगलों में बरसों से अपना साम्राज्य चला रहे नक्सलियों के लिए ‘अ-मंगलकारी’ साबित हुआ।
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सुरक्षाबलों ने सुनियोजित तरीके से चलाए गए अभियान के तहत 31 नक्सलियों को मार गिराया। इस वर्ष जनवरी से अब तक छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों की नक्सलियों के साथ आठ मुठभेड़ें हुई हैं जिनमें 87 नक्सली मारे गए। पिछले वर्ष भी नक्सल विरोधी अभियानों में 219 नक्सलियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया था। इन आंकड़ों के आधार पर साफ पता परिलक्षित होता है कि केंद्र सरकार नक्सलियों को अब बख्शने के मूड में कतई नहीं है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि भारत को नक्सल मुक्त बनाने की दिशा में गंभीरता के साथ काम किया जा रहा है। उन्होंने तो यहां तक कह रखा है कि 31 मार्च 2026 से पहले हम देश को नक्सलवाद को समाप्त कर देंगे। वास्तव में शाह के बयान में कुछ भी अतिश्योक्ति नहीं दिखती है। उन्होंने जो संकल्प दिखाया था, उसे पूरा करने का जज्बा उनमें दिखता है। हां, मुठभेड़ में जवानों का शहीद होना जरूर तकलीफ की बात है।
हालांकि आम नागरिकों के अलावा पिछले 5 वर्षो में सुरक्षाबलों की जान जाने में बड़ी कमी देखने को मिली है। देश में आतंक का पर्याय बन चुके नक्सली यूं तो अब देश के 9 राज्यों में सीमित रह गए हैं। इसमें छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र शामिल और केरल शामिल हैं। इन प्रदेशों में भी नक्सलियों की हालत खस्ताहाल होती जा रही है।
नि:संदेह ‘लाल आतंक’ से बहुत छुटकारा मिलने की बात कही जा रही हो और उन पर किसी तरह की मुरव्वत नहीं की जा रही हो, किंतु सरकार को इस ओर भी तवज्जो देनी होगी कि नक्सलियों के मुक्त हो रहे इलाकों में स्थानीय लोगों की बेहतरी के प्रयास तेज हों। लंबे वक्त तक नक्सलियों ने न केवल स्थानीय लोगों को अपने हिसाब से हांका बल्कि प्रशासन को भी पंगु बनाकर रखा।
नक्सल प्रभावित ज्यादातर जगहों पर अब गिनती के नक्सली बचे हैं और इनकी उल्टी गिनती चालू है। मगर सरकार को अब उतनी ही तेजी से इन इलाकों में विकास के कार्य को अमलीजामा पहनाना होगा। नक्सलियों का खात्मा अगर सरकार की उपलब्धि होगी तो उससे ज्यादा चुनौती वहां की व्यवस्था को बेहतर करने की है।
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