कैग बना हथियार
दिल्ली सरकार के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने के मुद्दे पर कदम खींचने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने संदेह उत्पन्न करने वाला कहा।
कैग बना हथियार |
भाजपा विधायकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि आपको विधानसभा अध्यक्ष को तुरंत रिपोर्ट भेजनी थी। सदन पर इसकी चर्चा करनी थी। विधानसभाध्यक्ष का विशेषाधिकार है विधानसभा सत्र बुलाना। यह सवाल भी किया कि क्या अदालत विधानसभाध्यक्ष को ऐसा करने का निर्देश दे सकती है, जबकि चुनाव नजदीक हैं।
हालांकि दिल्ली सरकार के वकील ने आरोप लगाया कि याचिका राजनीति से प्रेरित है, और उपराज्यपाल कार्यालय के रिपोर्ट को सार्वजनिक और समाचार-पत्रों से साझा करने की बात भी उठाई। कैग की रिपोर्ट के अनुसार शराब नीति की वजह से दिल्ली के राजस्व को दो हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। कैग ऑडिट निकाय है, जिसे संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। अनुच्छेद 148 के मुताबिक कैग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है।
यह भारत सरकार तथा राज्य सरकारों के विभागों और मंत्रालयों की पड़ताल करता है। इसकी रिपोर्ट विधानसभा और संसद में रखी जाती है। इसकी रिपोर्ट का असर इतना होता है कि इसके आधार पर 1989 में कांग्रेस सरकार को संयुक्त मोर्चा ने उखाड़ फेंका था। 2010 में स्पैक्ट्रम को लेकर कैग की रिपोर्ट पर 2जी आवंटन में धांधली के चलते सरकार को पौने दो लाख करोड़ रुपये के नुकसान का खुलासा हुआ था जिस पर मनमोहन सरकार को सीबीआई जांच का आदेश देना पड़ा था।
शराब घोटाले को लेकर आप के वरिष्ठ नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे भी रहना पड़ा। हालांकि आम आदमी पार्टी रिपोर्ट को फर्जी बताते हुए भाजपा पर इसे चुनावी मुद्दा बनाने का आरोप लगा रही है। लेकिन भाजपा ने इसे सुनहरा अवसर मान लपक लिया। हालांकि खुद मोदी सरकार कैग रिपोर्ट को लेकर कभी गंभीर नजर नहीं आई। दूसरे, उसने अन्य संवैधानिक संस्थाओं को कभी उस तरह तवज्जो नहीं दी जैसी परंपरा रही है।
उन्हें जानबूझ कर पंगु ही नहीं बनाया जाता रहा है, बल्कि विपक्ष भी उन्हें मुद्दों की तरह प्रयोग करने में विफल नजर आया है परंतु जैसा कि अपने यहां चुवानी दंगल में सब जायज बताया जाता है। कैग की यह रिपोर्ट हथियार की तरह प्रयोग की जा रही है। चुनाव संपन्न होने तक यह मुद्दा गरमाया रहने वाला है।
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