कनाडा में जस्टिन ट्रूडो के बाद

Last Updated 09 Jan 2025 12:31:19 PM IST

कनाडा की आंतरिक राजनीति में पिछले कुछ महीनों से जो उथल-पुथल चल रही थी, उससे इस बात के संकेत मिलने लग गए थे कि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को देर-सबेर अपने पद से हटना पड़ेगा।


अंतत: उन्हें सोमवार को प्रधानमंत्री और पार्टी के नेता, दोनों पदों से इस्तीफा देना पड़ा।  कनाडा में आव्रजन का मुद्दा बहुत जटिल है। कनाडा में बहुत से लोग मानते हैं कि ट्रूडो अपनी सीमाओं को और अधिक खुला बनाने में बहुत आगे बढ़ गए हैं और उनकी नीति से देश के नागरिकों को बेरोजगारी और महंगाई का सामना करना पड़ रहा है।

कनाडा में इस साल चुनाव होने वाले हैं। जनमत सव्रेक्षण ट्रूडो की लोकप्रियता में गिरावट दर्शा रहे हैं। जाहिर है अपनी पार्टी के भीतर आंतरिक लड़ाई, जनमत सव्रेक्षणों  के रुझान में पिछड़ना और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ बढ़ाने की धमकियों के बीच प्रधानमंत्री पद पर बने रहना ट्रूडो के लिए मुश्किल होता जा रहा था। 2015 के चुनाव में वह भारी जीत के साथ सत्ता  में आए थे।

उस समय उनकी लोकप्रियता आसमान छू रही थी। वह ग्यारह सालों से अपनी लिबरल पार्टी के नेता और नौ सालों से कनाडा के प्रधानमंत्री रहे। उनके कार्यकाल में भारत  के साथ द्विपक्षीय संबंध काफी खराब और तनावपूर्ण रहे। कनाडा में सिख उग्रवादियों को बढ़ावा देने से उनकी स्थितियां और ज्यादा खराब हुई। कनाडा पृथकतावादी खालिस्तान आंदोलन का मुख्य केंद्र रहा है।

याद रखना चाहिए कि 2020 में भारत में चल रहे किसान आंदोलन को ट्रूडो ने समर्थन देते हुए कहा था कि दुनिया में जहां भी मानवाधिकार के हनन की बात होगी, कनाडा बोलेगा। यह भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप था। भारत ने इस पर आपत्ति की थी। सितम्बर, 2023 में उन्होंने आरोप लगाया था कि कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय अधिकारियों का हाथ है।

लेकिन आज तक वह अपने आरोप के पक्ष में पुख्ता प्रमाण नहीं दे सके हैं। सच तो यह है कि निज्जर आपराधिक गैंगवार के चलते मारा गया और ट्रूडो के लिए वह नागरिक स्वतंत्रता का नायक बन गया है। इस बात की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि ट्रूडो के सत्ता में हटने के तुरंत बाद भारत और कनाडा के द्विपक्षीय संबंध सुधर जाएंगे लेकिन कहा जा सकता है कि इसकी शुरुआत हो गई है। जनमत सव्रेक्षण बता रहे हैं कि कंजव्रेटिव पार्टी के नेता पियरे पोइलिवरे, जो भारत से रिश्ते सुधारने के पक्ष में हैं, के प्रधानमंत्री बनने की ज्यादा उम्मीद है।



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