नक्सली समस्याओं का समाधान हो
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में नक्सलियों ने सोमवार को बारूदी सुरंग में विस्फोट करके पुलिस वाहन को उड़ा दिया जिसमें 8 जवान शहीद हो गए। इस हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद को खत्म करने का संकल्प व्यक्त किया।
नक्सली समस्याओं का समाधान हो |
कोई भी लोकतांत्रिक सरकार किसी भी तरह की हिंसा को चाहे वह किसी भी विचार से प्रेरित क्यों न हो, बर्दाश्त नहीं कर सकती। इस अर्थ में अमित शाह का बयान पूरी तरह उचित है। लेकिन दूसरी ओर यह समझना भी लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी है कि आदिवासी क्षेत्रों में नक्सलवाद को जगह क्यों मिली।
इस क्षेत्र में आदिवासियों के जल, जमीन और जंगल पर जिस तरह डाका डाला जाता रहा, उन्हें उन्हीं की मूल आजीविका स्रेतों और संसाधनों से वंचित किया जाता रहा इसकी कहानियां किसी से छिपी नहीं है। आदिवासियों के इसी भयावह शोषण के प्रतिरोध में नक्सलवाद ने वहां अपने पैर जमाए और आदिवासियों ने भी इसे अपनी मुक्ति का एकमात्र मार्ग मानकर अपनाया। यहां यह ध्यान रखने वाली बात है कि नक्सलवादी लोग चोर, लुटेरे, डकैत नहीं है जो अपनी तई हिंसा करते हैं।
उनकी हिंसा सैद्धांतिक तौर पर भी कितनी गलत क्यों न हो, लेकिन इस पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता उनकी हिंसा आदिवासियों के शोषण के विरु द्ध तथा एक अत्यधिक कमजोर वर्ग के पक्ष में खड़ी हिंसा है। क्योंकि यह एक विचार प्रेरित हिंसा है। अगर केंद्र और राज्य की सरकारों ने आदिवासियों के शोषण पर प्रारंभ में ही लगाम लगाई होती, उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कवच तैयार किए होते, उनके सांस्कृतिक व्यवहारों के अश्लील दोहन पर जंजीरें कसी होती तो नक्सली हिंसा को वहां जगह नहीं मिलती।
अगर आज भी आदिवासी क्षेत्र से नक्सली हिंसा को समाप्त करना है तो प्राथमिक तौर पर उन कारकों के उन्मूलन पर गौर करना चाहिए जिनकी वजह से यह हिंसा उत्पन्न हुई। अच्छा होता कि अमित शाह मार्च 2026 तक नक्सलवाद को खत्म करने के साथ यह घोषणा भी करते कि मार्च 2026 से पहले आदिवासियों के किसी भी तरह के दोहन-शोषण के हर तंत्र को ध्वस्त किया जाएगा। केवल कुछ लाभकारी घोषणाओं से काम नहीं चलेगा, बल्कि आदिवासियों की मांगों को वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखते हुए उनकी समस्याओं के ठोस समाधान उपलब्ध कराने होंगे। जब ऐसा होगा तभी हिंसा खत्म होगी।
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