चुनाव के नियमों में किए बदलाव
सरकार ने चुनाव के नियमों में कुछ बदलाव किए हैं ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके। सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज तथा उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज के सार्वजनिक निरीक्षण को रोक दिया है।
पारदर्शिता और गोपनीयता |
निर्वाचन आयोग की सिफारिश के आधार पर कानून मंत्रालय द्वारा चुनाव संचालन नियम, 1961 के 93 में यह संशोधन किया गया।
इसके पीछे एक अदालती मामला बताया जा रहा है। आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान के इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज को इनसे अलग रखा गया है।
आयोग का कहना है कि मतदान केंद्रों के अंदर के फुटेज के दुरुपयोग से मतदान की गोपनीयता प्रभावित हो सकती है। अंदेशा व्यक्त किया गया कि कैमरे की इस फुटेज का प्रयोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मार्फत से फर्जी विमर्श गढ़ने के लिए किया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर और नक्सल प्रभावित जगहों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की गोपनीयता के महत्त्व को भांपते हुए आयोग ने जिन दस्तावेज का कोई संदर्भ नहीं है, उन्हें सार्वजनिक निरीक्षण की अनुमति न देने की बात की। विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग पारदर्शिता से डर रहा है।
कांग्रेस ने इसको कानूनी तौर पर चुनौती देने की भी बात की। देश का चुनाव आयोग संवैधानिक निकाय है। वह अनुच्छेद 324 के अनुसार देश भर में चुनाव कराने के लिए स्थापित किया गया है। बीते कुछ सालों से चुनाव आयोग की कार्यपण्राली को लेकर जनहित याचिकाएं दायर की जाती रही हैं और इसकी पारदर्शिता को लेकर तरह-तरह के विवाद होते रहे हैं।
आयोग पर आरोप लगते रहते हैं कि मोदी सरकार उसे कठपुतली बना कर रखना चाहती है। बीते साल भी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर बवाल गहराया था और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था।
आयोग की स्वायत्तता को लेकर समझौता किया जाना कभी उचित नहीं कहा जा सकता। मगर यह कुतर्क भी अनुचित है कि पारदर्शिता की आड़ में गोपनीयता भंग किए जाने जाने की छूट जारी रहने दी जाए। आयोग को अपनी स्वायत्तता का भी ख्याल रखना चाहिए।
जनहित याचिकाओं के उद्देश्य और उनके पीछे की राजनीति को समझे बगैर अदालतों को निर्णय देने से बचना होगा। जरूरी है वे भी गोपनीयता में खलल डालने वालों की मंशा भांपें और उन्हें सख्त हिदायत दें।
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