वर्ष 2024 मानव त्रासदी का रहा

Last Updated 22 Dec 2024 01:55:30 PM IST

वर्ष 2024 हिंसा, रक्तपात और मानवीय त्रासदी का रहा। दुनिया में पहले भी संघर्ष और युद्ध होते रहे हैं, लेकिन इस वर्ष बच्चों और महिलाओं सहित निर्दोष नागरिकों की हत्या का जो तांडव हुआ वह पहले कभी देखने को नहीं मिला था।


फिलिस्तीन में पूरे गाजा को खंडहर में तब्दील कर दिया गया और लेबनान की राजधानी बेरुत में अंधाधुंध बमबारी की गई। पूरी दुनिया संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं तमाशा देखती रहीं। इस्रइल पर हमास के हमले के जवाब में इस्रइल ने जो सैनिक कार्रवाई की उसे आत्मरक्षा की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

भारत के खिलाफ पाकिस्तान ने जिस तरह की आतंकवादी वारदात को अंजाम दिया उसके जवाब में प्रतिशोध की ऐसी कार्रवाई कभी नहीं की गई। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हवाई हमले में केवल आतंकवादी अड्डों को निशाना बनाया गया था। दूसरी ओर इस्रइल ने गाजा में मनमाने तरीके से नरसंहार किया और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने उसे समर्थन और सहयोग दिया। इतिहास में इसे वियतनाम जैसी मानवीय त्रासदी के रूप में दर्ज किया जाएगा।

संघर्ष के दूसरे मोर्चे यूक्रेन में हालात अनिश्चित हैं, लेकिन यह आशा बनती है कि अगले साल युद्ध विराम हो सकता है। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के बाद रूस और यूक्रेन वार्ता की मेज पर लौट सकते हैं, लेकिन नये प्रशासन के कायम होने में अभी एक महीने का समय है। यूक्रेन और अमेरिका में युद्ध पर आमादा कुछ ऐसी ताकते हैं जो इस अवधि में कोई दुस्साहस कर सकती हैं। अभी हाल में यूक्रेन की खुफिया एजेंसियों ने मास्को में एक वरिष्ठ रूसी जनरल की हत्या कर दी।

इसके बावजूद रूस ने यूक्रेन के खिलाफ कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की। अगले 30 दिनों में यूक्रेन की ओर से किसी नई वारदात को अंजाम दिए जाने की पूरी आशंका है। डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनाव अभियान के दौरान यह ऐलान कर चुके हैं कि वह 24 घंटे के अंदर यूक्रेन-रूस युद्ध समाप्त करा देंगे। यह काम आसान नहीं है, लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को यदि इस बात का स्पष्ट आभास हो जाए कि अब उन्हें पश्चिमी देशों का समर्थन नहीं मिलेगा तो वह वार्ता की मेज पर आ सकते हैं। रूस युद्ध में हासिल किए गए यूक्रेनी भू-भाग किस सीमा तक और किस शर्त पर खाली करता है, यह वार्ता पर निर्भर है।

वर्ष 2024 में दो लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष सरकारों का पतन हुआ। बांग्लादेश में छात्रों को मोहरा बनाकर इस्लामी कट्टरपंथियों ने शेख हसीना की सरकार को बेदखल कर दिया। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने पूरे घटनाक्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा अपने पसंदीदा मोहम्मद युनूस को प्रशासक पद पर काबिज करा दिया। कहने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता युनूस एक उदारवादी और लोकतंत्र समर्थक शख्सियत हैं, लेकिन बांग्लादेश में आज उनकी भूमिका एक कठपुतली जैसी है जो इस्लामी कट्टरपंथियों और सेना के इशारे पर नाच रही है। बांग्लादेश में यदि आगामी दिनों में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया तो वहां की भावी पीढ़ियां पाकिस्तान सेना के अत्याचार और अपने मुक्ति संघर्ष के इतिहास को भूल जाएगी।

पश्चिम एशिया में सीरिया में एक दूसरी धर्मनिरपेक्ष सरकार का पतन हुआ। इतना ही नहीं  एक संगठित देश के रूप में सीरिया का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। बांग्लादेश और सीरिया के घटनाक्रम में काफी समानता है। क्षेत्रीय राजनीति की दृष्टि से सीरिया का घटनाक्रम इस्लामी जगत में शिया-सुन्नी वैमनस्य और शक्ति संघर्ष को उजागर करता है। यह आने वाले दिनों में ईरान और इस्रइल ही नहीं बल्कि पड़ोसी सुन्नी देश के साथ संघर्ष में भी तब्दील हो सकता है।

वर्ष 2024 में भारत की विदेश नीति अपनी संतुलनकारी नीतियों के जरिए राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा में सफल रही। साल के अंतिम महीने में भारत और चीन संबंध पटरी पर आते नजर आए। अगले साल के प्रारंभ में ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारतीय यात्रा से दोनों देशों के परंपरागत संबंधों में नई गति आने की संभावना है। वि राजनीति नये साल में क्या रूप लेती है, यह बहुत कुछ अमेरिका के ट्रंप प्रशासन पर निर्भर करेगा। दुनिया में नई शक्ति केंद्र उभरने के बावजूद यह हकीकत है कि अमेरिका फिलहाल दुनिया में युद्ध या शांति की दृष्टि से मुख्य ताकत है।

डॉ. दिलीप चौबे


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