केंद्र सरकार नक्सलियों के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध
केंद्र सरकार नक्सलियों के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध है, इस बात के लिए सरकार की सराहना तो करनी ही चाहिए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का यह कथन बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाना चाहिए कि नक्सलियों को अगर शांति के साथ जीवन बिताना है तो उन्हें हथियार छोड़ मुख्यधारा में लौटना होगा।
अमित शाह |
जब से केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्तासीन हुई है, तभी से नक्सलियों के समूल नाश के लिए सरकार की प्रतिबद्धता परिलक्षित हुई है। पिछली कई मुठभेड़ में नक्सलियों को भारी चोट पहुंची है और उन्हें एक सीमित इलाके में रहने को मजबूर किया गया है। यह इस बात का द्योतक है कि सरकार ने नक्सलियों पर पूरी तरह से लगाम कसने का मन बना लिया है।
आंकड़ों की बात करें तो एक वर्ष में 287 नक्सलियों को सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में ढेर कर दिया तो 837 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। यह इस बात का प्रमाण है कि सरकार अब देश के दुश्मनों को बख्शने के मूड में नहीं है। वैसे भी नक्सली होने की आड़ में इन्होंने जितना नुकसान समाज और देश का पहुंचाया है, उतना किसी और संगठन ने नहीं पहुंचाया है। बहरहाल, सरकार की मंशा नक्सलियों को बढ़ने देने की नहीं दिखती है।
चार दशक में पहली बार ऐसा हुआ है कि नक्सली हिंसा में मारे गए आम नागरिकों और सुरक्षा बलों की संख्या 100 से कम रही है। पिछले दस वर्षो में तुलनात्मक रूप से माओवादी हिंसा में बलिदान होने वाले सुरक्षाकमियरे की संख्या में 73 प्रतिशत और नागरिकों की मृत्यु में 70 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है।
दरअसल, केंद्र में मौजूद मोदी सरकार ने माओवादियों की आड़ में समाज में हिंसा फैलाने और देश में विकास कार्य को नुकसान पहुंचाने की साजिश को वक्त रहते समझ लिया और इसके खात्मे की प्रतिबद्धता दिखाई।
हालांकि नक्सलियों की गांव-देहात तक में पहुंच और कथित तौर पर बनाई गई रॉबिनहुड की छवि से सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को भारी दुारियों का सामना करना पड़ा, मगर अंतत: दूरदराज के भोले-भाले लोगों को यह बात समझ में आ गई कि उनकी प्रगति में सबसे बड़ी बाधा ये नक्सली हैं।
लिहाजा, सरकार को भी नक्सलियों के खिलाफ एक्शन लेने में आसानी हुई। बहरहाल, मोदी सरकार ने जिस तरह नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में आने का न्योता दिया है, उससे उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात बदलेंगे।
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