महिलाओं की सुरक्षा के लिए जागरूकता है जरूरी
कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 का देशव्यापी अनुपालन सुनिश्चत करने के लिए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सभी विभागों में आंतरिक शिकायत समिति गठित करने का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए जागरूकता है जरूरी |
अदालत ने कहा, 31 दिसम्बर तक प्रत्येक जिले में अधिकारी नियुक्त किया जाए जो 31 जनवरी, 2025 तक समिति का गठन करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने उपायुक्तों/जिला मजिस्ट्रेटों को निर्देश दिया कि अधिनियम की धारा 26 के तहत आंतरिक शिकायत समिति अनुपालन के लिए सार्वजनिक और निजी संगठनों का सर्वेक्षण करके रिपोर्ट प्रस्तुत करें। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों पर बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकधाम, निषेध एवं निवारण) के तहत उत्पीड़न की शिकायत के निवारण के लिए कई प्रावधान हैं। दोषी को एक से तीन साल की जेल और/या जुर्माना भी हो सकता है।
राज्य महिला आयोगों को इस अधिनियम के विषय में जागरूकता फैलाने और समितियों के गठन का जिम्मा दिया गया। मगर देखा गया कि महिला आयोग राज्य सरकारों का मुंह ताकते रहते हैं। वे उम्मीद मुताबिक काम नहीं कर पाए। जब भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का कोई मामला विवादों में आता है, इस अधिनियम की आवश्यकता पर बहस छिड़ जाती है।
सरकारी तंत्र की लापरवाही तथा महिलाओं की सुरक्षा के प्रति गैर-जिम्मेदाराना रवैया छिपा नहीं है। संगठित ही नहीं, असंगठित क्षेत्र में भी ढेरों कर्मचारियों को स्त्री विरोधी बर्ताव, छेड़छाड़, अभद्रता और उत्पीड़न झेलना पड़ता है। नौकरी जाने के डर से वे प्रतिरोध नहीं जता पातीं।
दुनिया भर में कार्यस्थल महिलाओं को लैंगिक विभेद और उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है। कई बार अदालतों ने सरकारों को सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए परंतु स्त्री अस्मिता को प्राथमिकता में न रखने वाली मानसिकता अभी भी कायम है।
हालांकि झूठी शिकायतों का बहाना बना कर इससे बचना अब संभव नहीं है क्योंकि नई व्यवस्था में शिकायत झूठी या जानबूझकर की गई पाई जाने पर शिकायतकर्ता पर कार्रवाई हो सकती है। महिलाओं को जागरूक होना होगा ताकि अपने हकों को पहचान सकें और डट कर लड़ने को राजी हो पाएं।
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