बाग्लादेश सरकार हिन्दू और अल्पसंख्यकों का विश्वास अर्जित करने में असफल
बाग्लादेश में हिन्दू और अल्पसंख्यकों का विश्वास अर्जित करने में असफल रहने के कारण वहां की नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनूस की अंतिम सरकार की विश्वसनीयता पर खरोचें आ सकती हैं।
बाग्लादेश सरकार हिन्दू और अल्पसंख्यकों का विश्वास अर्जित करने में असफल |
तीन महीने पहले अगस्त में छात्रों के उग्र और हिंसक आंदोलन के कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना पद छोड़कर भारत निर्वासित होना पड़ा था। तब मोहम्मद युनूस ने छात्र आंदोलन को ‘दूसरे मुक्ति संघषर्’ की संज्ञा दी थी। अगर यह मन भी लिया जाए कि शेख हसीना की सरकार सर्व सत्तावादी और लोकतंत्र को कोई रौंदने वाली थी और छात्रों के हिंसक आंदोलन ने बांग्लादेश में लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने की उम्मीदें जगाई तो दूसरी ओर देश की सांप्रदायिक दरारों को भी उजागर किया।
अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनूस ने पिछले तीन महीनों के दौरान राष्ट्रीय एकता, समावेशी सरकार, लोकतंत्र की पुनस्र्थापना आदि बातें की और हिन्दुओं के तोड़े गए उपासना स्थलों, दुकानों और अन्य व्यापारिक संस्थानों का दौरा भी किया। बावजूद इसके हिन्दुओं के घरों पर हमले होते रहे और उन्हें मारा-पीटा जाता रहा। हैरानी की बात है कि मोहम्मद युनूस के हाव-भाव हिन्दुओं को किसी भी तरह आस्त नहीं कर सका।
ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस्लामी उग्रवादियों के हाथों की कठपुतली बन गए हैं। इस्कॉन के पूर्व सदस्य चिन्मय कृष्ण दास के बाद वहां की सरकार ने दो और हिन्दू साधुओं को गिरफ्तार किया है। इन गिरफ्तारियों से जाहिर होता है कि अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, मुआवजा और उनके पुनर्वास से संबंधित मांगों को लेकर सड़क पर उतरने वाले प्रदर्शनकारियों पर सरकार की सख्ती बढ़ती जा रही है। अल्पसंख्यक पत्रकारों और वकीलों को भी गिरफ्तार किया जा रहा है।
भारत सरकार वहां की सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की लगातार मांग कर रही है। ममता बनर्जी ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से वहां उत्पीड़ित हिन्दुओं को भारत वापस लाने की अपील की है। शेख हसीना के शासन में अल्पसंख्यक सुरक्षित भले रहे हों, लेकिन उन्होंने सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने का प्रयास नहीं किया। पिछले तीन महीना में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध 2000 से ज्यादा हिंसक वारदात हुए हैं।
यह जाहिर करता है कि युनूस की सरकार लोगों की जान-माल की सुरक्षा करने में असफल साबित हो रही है। उन्हें तत्काल प्रभावी कदम उठाने चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों में सरकार के प्रति विश्वास का पुनर्निर्माण हो सके।
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